दोष-शांति

कहानी -दोष-शांति

55 वर्षीय राधेश्याम गुप्ता और 58 वर्षीय सीताराम पाण्डेय  एक ही मुहल्ले में रहते थे | दोनों में अच्छी दोस्ती थी | दोनों शाम को रोज साथ -साथ टहलने जाते और दुनिया भर की बातें करते फिर अपना मन हल्का कर वापस लौट आते और अपने घर में व्यस्त हो जाते | पर आजकल उनकी बातों का दायरा दुनिया से सिमिट कर उनके बच्चों तक आ गया था | क्यों ना आता , आजकल वो थोड़े परेशान  जो थे | परेशानी का कारण था उनके बच्चों की शादी  | दोनों बच्चों की शादी की उम्र थी , माता -पिता प्रयास भी बहुत कर रहे थे पर शादी कहीं तय नहीं हो रही थी | अक्सर दोनों की बातचीत में यह रहता कि किसी पंडित को जन्म कुंडली  दिखा कर दोष शांति कर ली जाए तो शायद काम बन जाए |

 लघु कहानी -दोष शांति 

पहले मिलते हैं राधेश्याम गुप्ता जी के बेटे से … उनका बेटा यूँ तो इंजिनीयर था , प्राइवेट कॉलेज में  बड़ी मुश्किल से एडमिशन करवाया था राधेश्याम जी ने | पर लड़के का मन पढाई में नहीं लगता , हाँ जैसे कैसे करके पास हो जाता | उसका मन रमता था  म्यूजिक कंपोज करने में | ये शौक उसको बचपन से था ,  पिताजी के डर से इंजीनियरिंग तो कर ली पर मन तो आखिर मन ही है, उसे जहाँ जाना है वहीँ जाएगा  | अलबत्ता कॉलेज के दिनों में ही  कुछ दोस्तों के साथ  मिलकर अपना एक बैंड बना लिया , और एक यू ट्यूब चैनल भी शुरू कर दिया |  फिर शुरू हुआ यू  ट्यूब पर अपने बैंड द्वारा कम्पोज की गयी धुनों को डालने का सिलसिला | ये सब काम पिताजी से छुप -छुप कर हुआ था |

चैनल के आंकड़े बढ़ ही रहे थे कि इंजीनीयरिंग की डिग्री हाथ आया गयी और पिताजी के कहने  पर नौकरी भी ज्वाइन कर ली |  जैसा कि उसे खुद ही उम्मीद थी , मन नहीं लगा और जनाब महीने भर में नौकरी छोड़ कर आ गए | पिताजी से कह दिया कि वो नौकरी नहीं करेंगे औरर अपने यू ट्यूब चैनल से ही पैसा इतना कमाएंगे की कहीं बाहर जा कर नौकरी की जरूरत ही ना पड़े | शुरू में तो  राधेश्याम जी ने इनकार कर दिया | घर में बहुत कोहराम भी मचाया पर उनका बेटा कान पर हाथ दिए अपने काम में लगा रहा | उसकी मेहनत रंग लायी और उसकी कमाई  इतनी हो गयी कि राधेश्याम जी ने कहना बंद कर दिया | दो साल तो ठीक से कटे पर जब ब्याह की बात शुरू करी तो लड़की वाले दुबारा दरवाजे का रुख ही ना करते |

उधर सीताराम जी की बिटिया  निजी कंपनी में काम कर रही थी | लड़की देखने में भी ठीक -ठाक भी थी | पर उसके पास इतना समय नहीं होता कि घर के अन्य काम जो एक लड़की को “वाइफ मेटीरियल ” बनाते  हों सीख सके | देर से ऑफिस से आना और खा कर सो जाना उसकी दिनचर्या थी | माता -पिता देखते थे कि बिटिया अपने सपनों के लिए कितनी मेहनत कर रही है तो कुछ कहते भी नहीं थे | परन्तु जब शादी की बात शुरू हुई तो अनेकों समस्याएं आने लगीं, जैसे  … लड़के की नौकरी दूसरे  शहर में है तो कौन नौकरी छोड़े ? लड़के की सैलरी लड़की से कम है तो कहीं बाद में सामंजस्य में दिक्कत ना हो , क्योंकि लड़की आत्मनिर्भर है इसलिए वो  ऐसे परिवार के साथ कैसे सामंजस्य कर पाएगी जो पूराने दकियानूसी विचारों के हों , शायद ऐसा ही कुछ -कुछ संशय उन लड़के वालों के मन में भी रहता इसीलिये बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी |

इस तरह से सीताराम जी व् राधेश्याम जी दोनों ही परेशान  थे | जब मिलते तो अपनी परेशानी बताते कि बच्चों की शादी नहीं हो पा रही है उम्र बढती जा रही है क्या करें |  आम पिताओं की तरह उनकी भी इच्छा थी कि अपने बच्चों को सेटल कर सकें तब चैन से बैठे | दोनों चिंतित तो होते ,  फिर एक दूसरे को दिलासा देते कि हमारे बच्चों के लिए भी भगवान् ने जोड़ा बना ही रखा होगा , जब उसकी इच्छा होगी मिल ही जाएगा |

लेकिन इन्ही सब चिंता फिकर की वजह से सीताराम जी को हार्ट अटैक भी आ गया | राधेश्याम जी हॉस्पिटल में कई बार मिलने तो गए थे पर उसके बाद घर आने पर उनकी मुलाक़ात  लगभग ना के बराबर होने लगी , क्योंकि सीताराम जी घर में ही कैद होकर रह गए थे और राधेश्याम जी अपनी समस्या की कैद तो तोड़ने के प्रयास में लगे हुए थे | कुछ समय बाद सीताराम जी भी धीरे -धीरे स्वस्थ हो कर बाहर निकलने लगे | एक दिन रास्ते में जब दोनों एक दूसरे से टकराए तो सीताराम जी को देख राधेश्याम जी ख़ुशी से बोले ,” अरे वाह , आप रास्ते में ही मिल गए , मैं आज आपके ही घर आने वाला था , दरअसल बेटे की शादी तय हो गयी है | सीताराम जी भी बधाई देते हुए चहक कर बोले वाह , ये तो बड़ी अच्छी खबर है | मेरे पास भी एक ख़ुशी की खबर है ,” मेरी बिटिया की भी शादी तय हो गयी है |

दोनों मित्र आल्हादित होकर एक दूसरे के गले मिले | फिर सीताराम जी ने पूछा ,” भाई साहब , क्या आपने किसी पंडित को दिखा कर दोष शांति करवाई थी |

राधेश्याम जी बोले , ” अरे नहीं , बेटे पर दवाब डाल कर यू ट्यूब चैनल छुडवा  कर नौकरी ज्वाइन कराई | अभी अहमदाबाद में है | नौकरी ज्वाइन करते ही मेरे ऑफिस के सहकर्मी ने ही अपनी बेटी का विवाह प्रस्ताव रख दिया ,  हो गयी दोष शांति ,और आपने ? क्या आपने दोष शांति करवाई थी ?”

सीताराम जी बोले , ” बहुत पहले  एक जगह बात चल रही थी जिन्हें पढ़ी -लिखी , सुंदर , गृह कार्य में दक्ष कन्या चाहिए थी , वहीँ बात बन गयी | दरअसल मैंने अपनी बेटी की नौकरी छुडवा दी और हो  गयी दोष शांति |

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3 thoughts on “दोष-शांति”

  1. क्या बात है बड़े ही रोचक लेकिन यथार्थवादी तर्कों से भरा लेख कहूँ या संस्मरण | मेरा बेटा भी बीटेक कर रहा है मन मार कर पर संगीत में कैरियर बनाना चाहता है | पतिदेव भी यही कहते हैं कि कोई नौकरी कर लेना अनहि तो शादी में दिक्कत आयेगी समाज की संकुचित सोच पर अफ़सोस होता है जहाँ कला और शिक्षा दोनों ही उपेक्षित हैं आज भी | सादर —

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  2. आज की भागम भाग जिंदगी का कडुवा सच …
    बदलाव या आधुनिकता या मजबूरी … पर सच तो यही है …
    अच्छी कहानी …

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