लेखिका एक दिन की


लेखिका एक दिन की



लोगों को लगता है कि लिखना बहुत आसान है | बस अपने मन की बात कागज़ पर उतार देनी है , पर इसके लिए मन के अंदर कितना संघर्ष होता है वो लिखने वाला ही जान सकता है , खासकर लेखिकाएं | शायद इसी कारण आज जितनी लेखिकाएं दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा लेखिकाएं अपने पहले प्रयास के बाद खुद ही एक गहरे अँधेरे में गुम हो गयीं |

लघु कथा -लेखिका एक दिन की


आज पाँच वर्ष हो गए थे | उस भयानक एक्सीडेंट के बाद निधि के आधे शरीर में लकवा मार गया था | वैसे भी तो वो घर के बाहर नहीं निकलती थी पर अब तो जिंदगी एक कमरे में ही सिमिट कर रह गयी थी | निराशा के दौरे पड़ते तो मृत्यु के सिवा कुछ ना सूझता | अवसाद का इलाज करने वाले डॉक्टर ने ही सलाह दी थी कि जो कुछ आप एक हाथ से कर सकती हैं करिए ताकि मन लगे |

बचपन में लिखने का शौक था | कितने सपने थे लेखिका बनने के ….घर गृहस्थी के बाद सब छूट गया था |उसने लिखने की इच्छा जाहिर की | पति ने अगले ही दिन आई पैड लाकर दे दिया | मन में कुछ उमंग जागी , हाथों में हरकत हुई | फेसबुक अकाउंट भी बना दिया गया |

मेरी डायरी शीर्षक डाल कर कुछ -कुछ लिख दिया | आँख लगने के बाद सबने पढ़ा | सब ने उसके लेखन की तारीफ भी की | एक सशक्त लेखिका उसके अंदर छुपी हुई दिखी |
अगले दिन ऑफिस जाते समय टाई ठीक करते हुए पति ने कहा ,” देखो मेरे बारे में कुछ मत लिखना ….मेरे बारे में मतलब जो कुछ मैंने देखा सुना तुमसे कहा है उस बारे में …. और चाहे जो कुछ लिखो |”

स्कूल जाते समय बच्चे भी कह गए ,” मम्मी हमारी बातों की फेसबुक पोस्ट मत बना देना …न ही हमारे स्कूल की कोई बात लिखना … और चाहें जो कुछ लिखो |

सासू माँ की कमरे से आवाज़ आई , ” अरे तुम लोगों के बारे में नहीं लिखेगी | मेरे बारे में लिखेगी …सासें तो वैसे ही बुरी होती हैं , देखो कुछ भी लिखना मुझे पढ़ा जरूर देना |

वो डर गयी | एक भी अक्षर लिखा नहीं गया |

सब के पूछने पर कह दिया अब लिखने का मन नहीं करता |

और उस पहली पोस्ट के बाद वो एक दिन किलेखिका हमेशा के लिए शब्दों से दूर हो गयी
नीलम गुप्ता
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2 thoughts on “लेखिका एक दिन की”

  1. ये कहानी नहीं सच है ,एक उम्र के बाद अधिकांश महिलाये अपनी ख़ुशी के लिए कुछ करने से पहले सौ बार सोचती है .कम शब्दों में बहुत बड़ी सचाई कही है आप ने .

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