बिमारी के नाटक को आम देसी भाषा में मक्कर कहा जाता है | अक्सर औरतों को थकन महसूस करने पर आराम करने पर मक्कर की उपाधि दी जाती है |
लघु कथा -मक्कर
सुमित के घर आते ही माँ ने बोलना शरू कर दिया ,” आज मुझे फिर से रोटियाँ बनानी पड़ी , तुम्हारी देवी जी तो मक्कर बना कर बैठी हैं कि थकान सी महसूस हो रही है | कब तक चलेगा ये सब ? अरे भाई हम ७५ की उम्र में रोटियाँ थापे और वो ४५ की उम्र में मक्कर बनाये बैठी रहे | एक हमारा जमाना था बुखार में भी पड़ें हो तो भी सास को रसोई में ना घुसने देते थे | लेट -बैठ कर जैसे भी किया बना कर खिलाया | वो जमाना ही और था तब अदब था बुजुर्गों के प्रति |
“देखता हूँ अम्माँ” कह कर सुमित अपनर कमरे में चला गया | मीरा बिस्तर पर लेटी आँसूं बहा रही थी | उसके कमरे और बैठक में दूरी ही कितनी थी | मन भर आया | सोचा सुमित तो समझेगा | जब से ब्याह कर आई है अपना पूरा शरीर लगा दिया सास -ससुर की सेवा करने में | दोनों ननदों के ब्याह में भी ना काम में ना ली -देने में कोई कमी करी | फिर आखिर क्यों उसकी तकलीफ को कोई समझ नहीं पा रहा है | दिनों -दिन उसकी बढती थकान को क्यों सब मक्कर का नाम दे रहे हैं |
उसकी आशा के विपरीत सुमित भी उसे देखकर बोला , ” देखो मीरा अब बहुत हो गया ये नाटक , आखिर कौन से जन्म का बदला ले रही हो तुम मेरे माँ -बाप से , महीना हो गया तुम्हें बिमारी का बहना करते -करते | दिखाया तो था डॉक्टर को , खून की कमी बताई है बस टॉनिक और दवाई समय पर लो और काम करो |
“तो क्या तुम्हें लगता है मैं खुद ठीक नहीं होना चाहती ?,”मीरा ने प्रश्न किया |
ठीक होना , अरे तुम बीमार ही कब थीं , माँ सही कहतीं है मक्कर , काम करते -करते ऊब गयीं और आराम करने कए बहाना चुन लिया , अभी उस टेस्ट की रिपोर्ट भी आ जायेगी जो डॉक्टर ने बस यूँही मेरा खर्चा करने के लिए किया था , फिर किस तरह से सबको अपना मुँह दिखाओगी ” कहते हुए सुमित कमरे के बाहर चला गया |
रात भर रोती रही मीरा , सुबह उठने की ताकत भी ना बची | घर की बहु देर तक सोती रहे | घर में कोहराम मचना तय था | अम्माँ ने पूरा घर सर पर उठा लिया | दोपहर तक ननदें भी आ गयी | छोटी ननद खाना बना कर लायी और बोली , ” खा लो भाभी , अपनी अम्माँ की ये दुर्गति मुझसे तो देखी ना जायेगी , अब जब तक तुम्हारे मक्कर ठीक नहीं हो जाते तब तक मैं यहीं रहूँगी |
मीरा अपना दर्द पीने के आलावा कुछ ना कर सकी | दो दिन घर में उसी के मक्कर की चर्चा होती रही |
तीसरे दिन जब सुमित घर लौटे तो थोड़े उदास थे | हाथों में उसकी रिपोर्ट थी | अम्माँ ने डॉक्टर की फ़ाइल देखते ही कहा , ” का हुआ , पता चल गया सब नाटक है |” ननदों ने हाँ में हाँ मिलते हुए कहा , ” हाँ , मक्कर पर मुहर लगे तो हम भी अपने घर लौटें |”
सुमित धीरे से बोले , ” अम्माँ , किडनी बहुत ख़राब है , एडमिट करना पड़ेगा | वो डॉक्टर पकड नहीं पाया |
घर में सन्नाटा छा गया |
अपने कमरे में लेती हुई मीरा सब सुन रही थी | ना जाने क्यों उसे अपनी बीमारी की रिपोर्ट बिना डायगनोस कर के थमाई गयी मक्कर की रिपोर्ट से कम तकलीफदायक लग रही थी |
वंदना बाजपेयी
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ऐसी स्थितियां उन घरों में आम है जहाँ बेटे माँ बाप की अच्छी देख्भाक कर रहे हैं और उनके सम्मान में ज्यादा बोल नही पाते | और सासु माएं बहू को कब बख्शती हैं ? जरा सा मौक़ा मिला तो तीर सीधे बहू पर | जीवन का एक छद्म सच उजागर करती सार्थक कथा के लिए बधाई आदरनीय वन्दनाजी |सादर और सस्नेह |