आलीशान कोठी मे रहने वाले दम्पति की बडी खुशहाल फैमली थी।घर की साजो सामान से उनके रहन सहन का पता चलता था।घर के मालिक की उमर चालीस पैन्तालिस के आसपास थी।गठीले बदन घनी-घनी मूंछे उसके चेहरे का रौब बढा देती।रंग ज्यादा गोरा ना था पर फिर भी जंचता खूब था।अपना जमा जमाया बिजनेस था।घर मे विलासिता का सब सामान था।पत्नी भी सुन्दर मिली थी।होगी कोई चालीस बरस की।बडे नाजो मे रखी थी अपनी जीवन संगनी को।कुछ चंचल सी भी थी।पतिदेव को जो फरमाईश कर देती पूरी करवा कर दम लेती।कुल मिलाकर बडी परफैक्ट जोडी थी,यूं कहो मेड फार इच अदर थी।
शादी के दस साल बीत जाने के बाद भी जब कोई औलाद नही हुई तब उन दोनो ने एक बिटिया को गोद ले लिया था। बडा प्यार करते दोनो बिटिया को।मधुरिमा नाम रखा उसका।दिन रात वो दोनो बिटिया के आगे पीछे रहते।उसके लिये अलग कमरा,अलग अलमारी यानि जरूरतो का सारा सामान सजा रहता।दिन पर दिन वो बिटिया सुन्दर होती जा रही थी।गोरा सुन्दर रंग उस पर काले लम्बे बाल।सुन्दर सुन्दर पोशाको मे वो बिल्कुल परी जैसी दिखती।
मेरे पडोस मे ही उनकी कोठी थी। इस मिलनसार फैमली से मेरी खूब बनती।अक्सर छोटेपन मे मधुरिमा हमारे घर भी आती जाती।
समय पंख लगाकर उड रहा था।मधुरिमा अब दसवी क्लास मे पहुंच गयी थी।बडी मासूम व भोली मधुरिमा मुझे भी बहुत भाती।अच्छे स्कूल की कठिन पढाई से निजात पाने हेतु उसने दो-दो टयूशने भी लगा ली थी।सब बढिया चल रहा था।आये दिन उनके घर कोई ना कोई फंक्शन होता,पूरा परिवार चहकता दिखता।
हर साल मधुरिमा का जन्मदिन बडे होटल मे मनाया जाता।
उस दिन मुझे अचानक किसी काम से उनके घर जाना हुआ,तकरीबन ग्यारह बज रहे थे सुबह के।आतिथ्य सत्कार के बाद मै बैठी हुई थी कि मधुरिमा को उसकी मम्मी ने आवाज लगाई……
मंमी–बेटी उठ जा,ग्यारह बज चुके है!नाश्ता कर लो आकर।
मधुरिमा—(चुपचाप सोती रही)
मंमी–बेटी उठ जा,कितनी देर से जगा रही हूं!!!
मधुरिमा–आंखे खोल कर,,,,मंमी की ओर मुंहकर गुस्से से चिल्लाई–मुझे नही करना नाशता वाशता।
मुझे सोने दो,आज मेरी छुट्टी है,मुझे केवल टयूशन जाना है।
मंमी झेप सी गयी व चुप हो गयी,और मेरे पास आकर बातचीत करने लगी।थोडी देर मे वो काटने के लिये सब्जियाँ भी उठा लायी और काटने लगी।तभी मैने उठना चाहा पर उन्होने जबरदस्ती से फिर मुझे अपने पास बिठा लिया।हम दोनो बातो मे लग गये।
देखते ही देखते दो घंटे बीत गये । मधुरिमा की मम्मी ने किचन मे आकर दोपहर का लंच भी तैयार कर दिया था क्योकि उनके पति का डिफिन लेने नोकर आने वाला था।अब एक बजे फिर से मधुरिमा की मम्मी ने बिटिया को उठाने का उपक्रम किया,मगर फिर वही ढाक के तीन पात।हार कर मैनै भी कह ही दिया कि ये इतना सोयेगी,तो कल क्या करेगी?जब स्कूल जाना होगा। उसकी मम्मी बतलाने लगी,छुट्टी के दिन तो ये हमारी बिल्कुल नही सुनती,कहती है मै तो आज ज्यादा सोऊगी।देखना,अभी टयूशन का टाईम होगा तो अपने आप उठेगी।एक बार तो मैने भी मधुरिमा के कमरे का जायजा लिया,देखती क्या हुं,मधुरिमा आंख खोल कर अपने मोबाईल पर टाईम देख ले रही है और फिर सो जाती।
अपने पति का टिफिन नौकर को देकर अब मधुरिमा की मम्मी ने मधुरिमा को उठाने का फैसला किया!लगता था अब उन्हे गुस्सा आ रहा था।हार कर अब मधुरिमा उठी और राकेट की तरह बाथरूम मे घुस गयी।तुरन्त नहाकर टयूशन जाने के लिये तैयार होने लगी।जब वो तैयार हो रही थी तभी उसे घर के बाहर किसी चाट पकोडी बेचने वाले की आवाज सुनाई दी,वो मुस्कुरा दी।
मम्मी ने बार-बार लंच करने को कहा,तो हंसकर मधुरिमा ने कहा-मुझे तो चाट-पकोडी खानी है।मम्मी ने समझाईश देनी चाही।
मम्मी -बेटी मैने तेरी पसन्द का लंच बनाया,सुबह का नाश्ता भी तेरी पसन्द का बनाया,और तूने चखा भी नही।अब चाट-पकोडी की फरमाईश कर रही है।
बिटिया-मम्मी मुझे कुछ नही पता,मैनै जो मांगा है वही मंगाकर दो।सुना आपने।
हार कर मम्मी ने नोकर को भेजकर चाट-पकोडी मंगवाई जिसे लेकर वो मेरे सामने दूसरे कमरे मे बैठकर खाकर खुश होकर बुक्स हाथ मे लेकर अपनी स्कूटी स्टार्ट कर टयूशन के लिये निकल गयी।
मैं सोचने लगी,मधुरिमा जैसी लडकियां जो अपनी मां का कहना नही मानती,ससुराल मे जाकर किस तरह सेटल होगी,कुसूर किसका है?क्या मां बाप के ज्यादा लाड प्यार का?अथवा मां ने ज्यादा ही सिर पर बैठा लिया?
जो मां अपनी बेटी की जमीन शादी से पहले तैयार नही करती,क्या वो शादी के बाद ससुराल मे समायोजन कर पायेगी।मायके मे सब इतना नाज नखरा सहन करेगे क्या ससुराल मे भी ऐसा हो पायेगा?युवा होती इस बिटिया ने मेरे सामने किचन मे झांका तक नही,कया वो हकीकत की दुनिया मे अपने ससुराल जाकर किचन मे पारंगत हो पायेगी।माता-पिता अपने जीवन की सारी पूंजी लगाकर भी क्या अपनी बेटी की खुशियां खरीद पायेगे,हकीकत मे वो एक सुखद गृहस्थी की तारनहार हो पायेगी,?ऐसे अनसुलझे सवालो को लेकर मै अपने घर लौट आयी थी।
रीतू गुलाटी
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जी ऋतू जी |आपका संस्मरण पढ़कर बहुत अच्छा लगा | मेरी भी एक उन्नीस वर्षीय बिटिया है पर उसे घरेलू कामकाज औ सुव्यवस्थित दिनचर्या सिखाने का क्रम जारी है | मेरी सासु माँ और मैं लगे हैं | पर मन आसपास यही सीन देखती हूँ जो आपने लिक्स | आजकल की पढ़ी बेटा हो या बेटी बच्चों के लिए नासूर बन चुके हैं उन्हें काबू करना बड़ा मुश्किल है पर फिरभी हम सदा बच्चो के साथ नही होंगे | उन्हें जीवन के संघर्षों के लिए तैयार करना बहुत जरूरी है अन्यथा वे अपने जीवन साथी , परिवार और कहीं ना कहीं समाज के लिए अकर्मण्यता के चलते नासूर बन जायेंगे | आभार एक बेहतरीन लेख के लिए |
जी ऋतू जी |आपका संस्मरण पढ़कर बहुत अच्छा लगा | मेरी भी एक उन्नीस वर्षीय बिटिया है पर उसेपढाई के साथ घरेलू कामकाज और सुव्यवस्थित दिनचर्या सिखाने का क्रम जारी है | मेरी सासु माँ और मैं लगे हैं | पर मन आसपास यही सीन देखती हूँ जो आपने लिखा | आजकल की पीढ़ी बेटा हो या बेटी माँ बाप के लिए नासूर बन चुके हैं उन्हें काबू करना बड़ा मुश्किल है पर फिरभी हम सदा बच्चो के साथ नही होंगे | उन्हें जीवन के संघर्षों के लिए तैयार करना बहुत जरूरी है अन्यथा वे अपने जीवन साथी , परिवार और कहीं ना कहीं समाज के लिए अकर्मण्यता के चलते नासूर बन जायेंगे | आभार एक बेहतरीन लेख के लिए |