किसी घर में शांति क्यों नहीं रहती … क्या इसका कारण महज वास्तु दोष होता है या उन लोगों के स्वाभाव में कुछ ऐसा होता है जो एक अच्छे -भले घर को अशांत कर देता है | पढ़िए वास्तु दोष के आधुनिक चलन पर प्रहार करती रीतू गुलाटी जी की सशक्त कहानी ….
वास्तु दोष
ये कहानी है उस दम्पति की,जो रिश्ते मे मेरे भाई -भाभी लगते है दूर के।शहर की जानी-हस्ती,करोडो की कोठी के रहनुमा,सब सुख सुविधाओ के होते हुऐ भी दम्पति एकाकी जीवन जीने को विवश।
कारण दोनो मे छतीस का आकडा।दोनो की राय बिल्कुल नही मिलती आपस मे।दोनो ही ज्यादा पढे-लिखे भी नही।पतिदेव तो दिन रात अपने बिजनेस को आगे बढाने की फिक्र मे थे।बचपन से ही अपने बिजनेस को आगे बढाने के गुर वो अपने पिता से ले चुका था।पर पत्नी की उम्मीदो पर वो खरा नही उतरा था।जिस परिवार से वो आयी थी वो सब नौकरी वाले थे।वो भी यही चाहती थी मै शाम को पति संग घूमने निकलू,खूब सारी शापिंग करू!पर पति के पास फुर्सत कहां थी।अपने पिता के संग दुकान पर बैढना उसकी भी मजबूरी थी।पर पत्नी कहां समझती ये सब।हार कर वो पत्नी को नोटो की गडडी देकर कहता तुम अपनी पसन्द से जो चाहो खरीद लाओ।बच्चे जब छोटे थे तो वो उनके संग खरीददारी कर लेती पर अब तो वो अकेली थी।
इस तरह दोनो पति पत्नी के बीच तनातनी चलती रही।समय गुजरता गया।तभी किसी मित्र ने उन्हे अपने घर को वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह दी।और घर को वास्तु दोष से बचाने हेतु रेनोवेशन कराने की सोची।घर के वास्तु-दोष को दूर करने के लिये तोडा फोडी शुरु हो गयी। बैडरूम की जगह डांईग रूम व किचन की जगह बाथरूम सब बदल दिया गया।पूरी कोठी को बनने मे पूरा एक साल लग गया।अब कोठी सजकर तैयार थी।
अब घर देखने की उत्सुकता मेरी भी बढ चली थी।किसी काम से मुझे उसी शहर जाना हुआ तो मैने भाभी को मैसेज कर दिया फोन पर।मै निशिन्त होकर अपने पति संग वहां पहुंची तो भाभी डांइग रूम मे सोफे पर लेटी पडी थी।मुझे देख भाभी हैरान सी हो गयी।मेरे पति मुझे अकेला छोड किसी काम से निकल गये।तभी भाभी मुझसे बोली–दीदी आप आ रहे थे तो मैसेज तो कर देते।मै आप लोगो के लिये लंच बनाकर रख देती।मैनै तो आज कुछ बनाया ही नही,तुम्हारे भाई ने तो बाहर ही खा लिया होगा।मैने भी फल वगेरा लेकर दवा खाकर लेट गयी थी।
सामने टी वी चल रहा था,बडी उन्नीदी आंखो से वो बोली,और फिर सोने का उपक्रम करने लगी।खिसयाते हुऐ मैने भाभी को अपने फोन मे भेजे मैसेज को दिखाया।तो भाभी ने अपनी सफाई दी,शायद नेट की समस्या के कारण मुझे मैसेज मिला नही।वैसे आज सुबह से मेरा फोन भी काम नही कर रहा।नौकरानी भी घर की साफ-“सफाई कर जा चुकी थी।पर,भाभी उठी नही फिर सो गयी।मै चुपचाप सारे घर की निरीक्षण करने लगी,सोचा,खुद ही चाय बना लूं!कुछ सोच कर किचन मे पहुंची,पर ये क्या?सब कुछ छिपा हुआ।कुछ भी सामने नजर नही आया।शानदार फिटिग मे सब कुछ मेनैज।हार कर मै वापिस आ गयी।शाम को जब भाभी उठी तब उन्होने ही चाय वगैरा बनायी तब मैने देखा सब समझ गयी,नाम बडे,दर्शन छोटे।।
भाई दुकान से रात को वापिस आया।बडा खुश हुआ बहन को घर देखकर।उदास व खामोश घर मे आज तो कुछ रौनक लगी भाई को।
यूं तो पहले घर मे दो बेटियां व एक बेटा था।घर मे पूरा शोर रहता,अकसर वो आपस मे लडते झगडते थे पर अब घर शान्त था।क्योकि बेटियां दोनो ब्याहकर अपने ससुराल मे चली गयी थी।बेटा पापा का बिजनेस नही पसन्द करता था,उसे नौकरी करना पसन्द था।दोनो बाप बेटा के विचार नही मिले इसीलिये बेटा अपनी पत्नी को लेकर कही और ही रहने चला गया था।
घर मे दो-दो डबलबैड बिछे थे पर भाभी वही सोफे पर व भाई भी पास रखे दिवान पर ही सो गया था।
मै सोच रही कि अब तो वास्तु शास्त्र के हिसाब से बने इस घर मे अब ऐसी क्या कमी थी कि ये इस तरह अलग-अलग रह रहे थे?दोनो ही बीमार चल रहे थे,जहां भाभी के हार्ट ब्लोकेज था भाई को किडनी की समस्या थी।सही मायने मे कोठी कम,भूतिया महल ज्यादा लगा मुझे,घर मे सारे साजो सामान होते हुऐ भीदिल बिल्कुल खाली थे,कोई सम्वेदनाएं तो बची ही नही थी!ना ही कोई आतिथ्य सत्कार बचा था।रिशतो मे भरी उकताहट ने जीवन का माधुर्य सोख लिया था।दोनो का आपस मे कटा-कटा रहना साबित कर रहा था कि वास्तुदोष तो था ही नही!दोष तो उनके स्वयं की सोच का था।एक बरस तक कोठी को तोड फोड कर जो पैसा बरबाद किया था वो अलग।
वो दोनो पहले तो ऐसे ना थे,आखिर जिंदगी के इतने साल उन्होने एक साथ गुजारे थे।पर अब बीमारी के कारण चिडचिडे भी हो गये थे।दोनो को इस प्रकार देख मेरे जेहन मे उलट-पुलट होने लगी,मेरे लिये वहाँ एक रात भी गुजारना मुशकिल हो गया था।
मुझे याद आया जब भाभी ब्याह कर आयी थी तो बहुत सुन्दर लगती थी,कद थोडा छोटा जरूर था,पर फिर भी जचती थी।उनके चेहरे पर हर दम मुस्कुराहट खिली रहती।भाभी नाचती बहुत बढिया थी।ननदो के बच्चो से भी खूब प्यार रखती।पर अब हालत ये थी कि उन्हे देख कर कोफ्त होती।हरदम चिडचिडी सी रहती।बच्चो के बिना सूना घर उसे काटने को दौडता पर फिर भी ऊपर-ऊपर से कहती —-नही–नही मै अकेली खुश हूं ,मेरा मन लग जाता है ऐसा मेरे पूछने पर उन्होने कहा,।पर मै सब समझ रही थी बुढापे मे बच्चे कितना महत्व रखते है मां बाप के सूने जीवन मे।पर भाभी तो ये कुबूल ही नही करना चाहती थी।
उस दिन भाभी के रवैये से तंग आकर भाई ने मुझसे अकेले मे पूछा:-
भाई:-दीदी , भाभी ने आपसे बात की?या चुप ही रही?
बहन:-मैनै भाई का मन रखने के लिये झूठ ही कह दिया,हां,हां,भाभी ने मुझ से बहुत सारी बाते की!भाई:-पर दीदी,मुझसे तो ये आठ-आठ दिन बात नही करती,जब कोई मतलब हो तभी मुंह खोलती है!
बहन:-भाई ये तो गलत बात है
भाई:-समझ मे नही आता,इसे हो क्या गया है।
बहन:-भाई,हिम्मत रख,सब ठीक हो जायेगा।
भाई-बहन दोनो मिलकर एक दूसरे को तसल्ली दिला रहे थे।पर भीतर से भयभीत भी थे।
जब भाभी मां बाऊजी के संग संयुक्त परिवार मे रहती थी तो अलग होने के लिये भाभी ने भाई पर दबाब बनाया था जबकि भाई अलग नही होना चाहता था।आज इतिहास अपनी कहानी दोहरा रहा था।आज भाभी को ये सब खल रहा था कि उसके लाडला बेटा व इकलौती बहू उससे किनारा कर गये थे।आज भाभी को अहसास हो गया था कि जो उसने बोया था ,वही फसल सामने थी।अकेले घर मे सबकुछ था,पर बात करने वाला कोई नही था।सारा दिन टी वी देखती फिर भी सुकून ना मिलता।।डाक्टरो ने बडे-बडे टटैस्ट करवाकर भारी भरकम दवाईयो के बोझ भी लाद दिये थे।हार्ट ब्लाकेज के कारण कोई भी भारी चीज पूडी,पकोडी ,मनपसन्द चीज भी नही खा सकती थी।उबले खाने ने जीभ का स्वाद भी बिगाड दिया था।उधर भाई को भी घूंट चढाने की आदत ने भाभी को परेशान कर दिया था।किडनी की समस्या के चलते मदिरापान मना था।अकसर छोटी-छोटी बातो पर दोनो एक दूसरे की कमियां निकालते,फिर लडाई शुरू कर देते।
दोनो मे सहयोग व समर्पण की बहुत कमी थी।अपनी ईगो के चलते।
वास्तु-शास्त्र के नियमो से बनी ये करोडो रूपयो से बनी सुन्दर कोठी अब मुंह चिढ़ा रही थी।।
रीतू गुलाटी
बेहतरीन रचना
Bahut badhiya article Sir
great information sir
bahut jabardast article hai thnx
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