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दादी ने आँगन की धुप नहीं देखी और पोती को आँगन की धप्प देखने का अवसर ही नहीं मिलता | दोनों के कारण अलग -अलग हैं | एक पर पितृसत्ता के पहरे हैं जो उसे रोकते हैं दूजी को मुट्ठी भर आसमान के लिए दोगुना, तीन गुना काम करन पड़ रहा है | ये जो सुपर वीमेन की परिभाषा समाज गढ़ रहा है उसके पीछे मंशा यही है है कि बाहर निकली हो तो दो तीन गुना काम करो …बराबरी की आशा में स्त्री करती जा रही है कहीं टूटती कहीं दरकती | महिला दिवस मनना शुरू हो गया है पर असली महिला दिवस अभी कोसों दूर है ………
असली महिला दिवस
वो जल्दी ही उठेगी
रोज से थोड़ा और जल्दी
जल्दी ही करेगी , बच्चों का टिफिन
तैयार ,
तैयार ,
नीतू के लिए आलू के पराठे
और बंटू के लिए सैंडविच
पतिदेव के लिए पोहा , लो
कैलोरी वाला
कैलोरी वाला
ससुरजी के लिए पूड़ी
तर माल जो पसंद है उन्हें अभी भी
सासू माँ का है पेट खराब
उनके लिए बानाएगी खिचड़ी
वो देर से ही बनेगी
उनके पूजा -पाठ के निपट जाने के बाद
गर्म –गर्म जो परोसनी है
उतनी देर में वो निबटा लेगी
कपडे -बर्तन और घर की सफाई
फिर अलमारी से कलफ लगी साडी निकाल कर
लपेटते हुए
हर बार की तरह
नज़रअंदाज करेगी ताने
जल्दी क्यों जाना है ?
किसलिए जाना हैं ?
उफ़ !ये आजकल की औरतों ?
और दफ्तर जाने से पहले
निकल जायेगी
‘महिला दिवस ‘पर
महिला सशक्तिकरण के लिए
आयोजित सभा को
संबोधित करने के लिए
जहाँ इकट्ठी होंगी वो सशक्त महिलाएं
जिन्होंने ओढ़ रखे हैं
अपनी क्षमता से दो गुने , तीन गुने काम
महिला सशक्तिकरण की बात करते हुए
वो नहीं बातायेंगी कि
मारा है रोज
नींद का कितना हिस्सा
नींद का कितना हिस्सा
रोज याद आती है फिर भी
माँ से बात करे
भी हो जाते कितने दिन
भी हो जाते कितने दिन
बीमार बच्चे को छोड़ कर काम पर जाने में कसमसाता है दिल
पूरी तनख्वाह ले कर भी पीना पड़ता है विष
अपनों से मिले
ये काम, वो काम, ना
जाने कितने काम ना कर पाने के
जाने कितने काम ना कर पाने के
तानों के दंश का
कभी पूछा है कि अपनी
माँ , बहन पत्नी से
माँ , बहन पत्नी से
कि सपनों को पूरा
करने की
करने की
कितनी कीमत अदा कर
रही हैं ये औरतें ?
रही हैं ये औरतें ?
चुपचाप
इस आशा में
कि कभी तो बदलेगा
समाज
समाज
जब मरे हुए सपनों और
दोहरे काम के बोझ से
दबी मशीनी जिन्दगी में से
दबी मशीनी जिन्दगी में से
नहीं करना पड़ेगा
किसी एक का चयन
किसी एक का चयन
वो दिन … हाँ वो
दिन ही होगा
दिन ही होगा
असली महिला दिवस
वंदना बाजपेयी
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filed under-hindi poem women issues, international women’s day, 8 march, women empowerment, women
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सच कहा वंदना दी कि हर महिला अपने सपने पूरे करने के लिए काम के अत्यधिक बोझ तले दबी हुई हैं।
बहुत संजीदा शब्द चित्र!