आदमी की भूख भी बड़ी अजीब होती है रोज जग जाती है, और कई बार तो मनपसंद चीज सामने हो तो बिना भूख के भी भूख जग जाती है | खाने -पीने के मामले में तो भूख नियम मानती ही नहीं ….लेकिन जब ये और क्षेत्रों में भी जागने लगती है तो स्थिति बड़ी गंभीर हो जाती है…प्रस्तुत है मंजुला बिष्ट की कहानी की समीक्षा
भूख का पता –मंजुला विष्ट
हंस
मार्च 2019 में प्रकाशित मंजुला विष्ट की कहानी भूख का पता जानवर की भूख और
इंसान की भूख में तुलना करते हुए जानवर की भूख को इंसान की भूख से उचित ठहराती है
…. क्योंकि उन्हें आज भी पता है कि उन्हें कब और कितना खाना है , उनकी भूख आज भी
प्राकर्तिक और संतुलित ही है | जब इंसान की भूख
उत्तेजक हिंसक मनोरंजन को जोड़ दिए जाने पर भूख के सही पते खोने लगी है | ये भूख कहीं स्वाद में
ज्यादा खा लेने में है , कहीं
बेवजह हिंसा में है , कहीं
वहशीपन में है … ये भूख बिलकुल भी संतुलित नहीं है | मानवता के गिरने में
इसी असंतुलित भूख का हाथ है |
मार्च 2019 में प्रकाशित मंजुला विष्ट की कहानी भूख का पता जानवर की भूख और
इंसान की भूख में तुलना करते हुए जानवर की भूख को इंसान की भूख से उचित ठहराती है
…. क्योंकि उन्हें आज भी पता है कि उन्हें कब और कितना खाना है , उनकी भूख आज भी
प्राकर्तिक और संतुलित ही है | जब इंसान की भूख
उत्तेजक हिंसक मनोरंजन को जोड़ दिए जाने पर भूख के सही पते खोने लगी है | ये भूख कहीं स्वाद में
ज्यादा खा लेने में है , कहीं
बेवजह हिंसा में है , कहीं
वहशीपन में है … ये भूख बिलकुल भी संतुलित नहीं है | मानवता के गिरने में
इसी असंतुलित भूख का हाथ है |
कहानी
थोड़ा रहस्यमय शैली में लिखी गयी है , जिस कारण वो आगे क्या
हो कि उत्सुकता जगाती है | मुख्य
पात्र एक बच्ची आभा है जो अपने संयुक्त परिवार के साथ रह रही है | बारिश है … दादाजी सो
रहे हैं | आभा
चाहती है वो चैन से सोते रहे परन्तु खेतों में भरा पानी , बिजली का कड़्कना , पेड़ों का गिरना उनकी
नींद तोड़ रहा है | वो
दादाजी की नींद की चिंता करते हुए बीच -बीच में अपनी विचार श्रृंखला से उलझ रही है
|
थोड़ा रहस्यमय शैली में लिखी गयी है , जिस कारण वो आगे क्या
हो कि उत्सुकता जगाती है | मुख्य
पात्र एक बच्ची आभा है जो अपने संयुक्त परिवार के साथ रह रही है | बारिश है … दादाजी सो
रहे हैं | आभा
चाहती है वो चैन से सोते रहे परन्तु खेतों में भरा पानी , बिजली का कड़्कना , पेड़ों का गिरना उनकी
नींद तोड़ रहा है | वो
दादाजी की नींद की चिंता करते हुए बीच -बीच में अपनी विचार श्रृंखला से उलझ रही है
|
आभा
के मन में दस साल की बच्ची के बलात्कार की खबर का दंश है | कैसे वो एक चॉकलेट के
लिए किसी विश्वासपात्र के साथ चल दी जिसने अपनी भूख मिटा कर न सिर्फ उसके विश्वास
का कत्ल किया बल्कि उसे जिन्दगी भर का दर्द भी दे दिया | कैसे है यो भूख जो छल
से किसी को मिटा के मिटती है ?
के मन में दस साल की बच्ची के बलात्कार की खबर का दंश है | कैसे वो एक चॉकलेट के
लिए किसी विश्वासपात्र के साथ चल दी जिसने अपनी भूख मिटा कर न सिर्फ उसके विश्वास
का कत्ल किया बल्कि उसे जिन्दगी भर का दर्द भी दे दिया | कैसे है यो भूख जो छल
से किसी को मिटा के मिटती है ?
आभा
के मन में अपने भाई सलिल के प्रति हमदर्दी है , क्योंकि रिश्ते के
जीजाजी के कहने पर उनके पालतू खरगोश के बच्चे को चाचाजी के लिए पका दिया गया है | चाचाजी व् जीजाजी को आज
निकलना था पर बरसात होने के कारण बाजार से ताज़ा मांस नहीं लाया जा सका | सलिल इस भूख को
बर्दाश्त नहीं पाया जो स्वाद के लिए किसी अपने की बलि चढ़ा दे … देर तक वो रोता
रहा , मांस
के शौक़ीन सलिल ने उस दिन शाकाहारी खाना ही खाया | घर के कुत्ते भाटी ने
भी उस बोटी को नहीं खाया … शायद उसे भी परिचित गंध आ रही थी | जबकि घर के बाकी लोग
उसे स्वाद ले –लेकर
खाते रहे | जीजाजी
ने तो पेट भर जाने के बाद भी इतना खाया कि देर तक उन्हें डकार आती रही |
के मन में अपने भाई सलिल के प्रति हमदर्दी है , क्योंकि रिश्ते के
जीजाजी के कहने पर उनके पालतू खरगोश के बच्चे को चाचाजी के लिए पका दिया गया है | चाचाजी व् जीजाजी को आज
निकलना था पर बरसात होने के कारण बाजार से ताज़ा मांस नहीं लाया जा सका | सलिल इस भूख को
बर्दाश्त नहीं पाया जो स्वाद के लिए किसी अपने की बलि चढ़ा दे … देर तक वो रोता
रहा , मांस
के शौक़ीन सलिल ने उस दिन शाकाहारी खाना ही खाया | घर के कुत्ते भाटी ने
भी उस बोटी को नहीं खाया … शायद उसे भी परिचित गंध आ रही थी | जबकि घर के बाकी लोग
उसे स्वाद ले –लेकर
खाते रहे | जीजाजी
ने तो पेट भर जाने के बाद भी इतना खाया कि देर तक उन्हें डकार आती रही |
इन
सब के बीच आभा को इंतज़ार है खरगोश के नए फाहों के जन्म का … जो शायद सलिल का
दर्द कम कर सकें | खरगोश
के पिंजड़े से आती आवाजें उसे आश्वस्त कर रहीं हैं कि आज सलिल का दर्द कम हो ही
जाएगा … नए फाहों को देखकर वो पुराने बच्चे को भूल जाएगा | परन्तु जब आवाज़ बंद
नहीं हुई तो सबका शक गया | पिंजड़ा
खाली था , माँ
अपने बच्चों के लिए तड़फ रही थी | उसकी चीखें सबको आहत कर
रहीं थीं पर सवाल था आखिर बच्चे गए कहाँ ? सब का शक पालतू कुत्ते
की तरफ चला गया | वो
आज कब से बिस्तर पर ही बैठा था …शायद उसका पेट जरूरत से ज्यादा भर गया होगा |तभी आलस दिखा रहा है | अवश्य ही पिंजरे का
दरवाजा ठीक से बंद ना होने के कारण पानी में गिरे बच्चे पालतू कुत्ते भाटी ने खा
लिए होंगे | उसका
आलस यही तो बता रहा है , फिर
क्यों न खाता , आखिर
उसकी जुबान पर अपनों के मांस का स्वाद जो लग गया था | जानवर जो ठहरा |
सब के बीच आभा को इंतज़ार है खरगोश के नए फाहों के जन्म का … जो शायद सलिल का
दर्द कम कर सकें | खरगोश
के पिंजड़े से आती आवाजें उसे आश्वस्त कर रहीं हैं कि आज सलिल का दर्द कम हो ही
जाएगा … नए फाहों को देखकर वो पुराने बच्चे को भूल जाएगा | परन्तु जब आवाज़ बंद
नहीं हुई तो सबका शक गया | पिंजड़ा
खाली था , माँ
अपने बच्चों के लिए तड़फ रही थी | उसकी चीखें सबको आहत कर
रहीं थीं पर सवाल था आखिर बच्चे गए कहाँ ? सब का शक पालतू कुत्ते
की तरफ चला गया | वो
आज कब से बिस्तर पर ही बैठा था …शायद उसका पेट जरूरत से ज्यादा भर गया होगा |तभी आलस दिखा रहा है | अवश्य ही पिंजरे का
दरवाजा ठीक से बंद ना होने के कारण पानी में गिरे बच्चे पालतू कुत्ते भाटी ने खा
लिए होंगे | उसका
आलस यही तो बता रहा है , फिर
क्यों न खाता , आखिर
उसकी जुबान पर अपनों के मांस का स्वाद जो लग गया था | जानवर जो ठहरा |
परन्तु
नहीं बेहद मार्मिक तरीके से कहानी बताती है कि भाटी ने उस बच्चों को खाया नहीं
बल्कि पानी में डूब कर मर जाने से ना सिर्फ बचाया बल्कि सारी रात बिस्तर पर अपनी
पूछ के नीचे छिपा कर उन्हें अपने बदन की गर्मी भी दी | जानवर होंने पर भी उसकी
भूख गलत दिशा में नहीं बढ़ी |
कहानी
इसी नोट के साथ समाप्त होती है कि कुत्ता … एक ऐसा शब्द जो गाली के रूप में
इस्तेमाल होता है वो इंसानों से कहीं बेहतर है …. उसकी भूख संतुलित है , वो अपनों का मांस नहीं
चूसती , कब
क्या खाना है कितना खाना है उसे पता है … स्वाद उसकी भूख को पथभ्रमित नहीं कर
रहा , उसकी
भूख हवस में नहीं बदल रही … कभी सुना है किसी जानवर ने किसी का बालात्कार किया
हो ?
इंसानी
भूख ने अपना पता बदल लिया है वो जीभ लपलपाते हुए हर तरफ बढ़ रही है … बेरोकटोक , बेलगाम
इसी नोट के साथ समाप्त होती है कि कुत्ता … एक ऐसा शब्द जो गाली के रूप में
इस्तेमाल होता है वो इंसानों से कहीं बेहतर है …. उसकी भूख संतुलित है , वो अपनों का मांस नहीं
चूसती , कब
क्या खाना है कितना खाना है उसे पता है … स्वाद उसकी भूख को पथभ्रमित नहीं कर
रहा , उसकी
भूख हवस में नहीं बदल रही … कभी सुना है किसी जानवर ने किसी का बालात्कार किया
हो ?
इंसानी
भूख ने अपना पता बदल लिया है वो जीभ लपलपाते हुए हर तरफ बढ़ रही है … बेरोकटोक , बेलगाम
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