होली त्यौहार है मस्ती का , जहाँ हर कोई लाल , नीले गुलाबी रंगों से सराबोर हो कर एक रंग हो जाता है ….वो रंग है अपनेपन का , प्रेम का , जिसके बाद पूरा साल ही रंगीन हो जाता है …आइये होली का स्वागत करे एक कविता से …
कविता -होली आई रे
फिर बचपन की याद दिलाने
बैर भाव को दूर भगाने
जीवन में फिर रंग बढाने
होली आई रे …
बूढ़े दादा भुला कर उम्र को
दादी के गालों पर मलते रंग को
जीवन में बढ़ाने उमंग को
होली आई रे
पप्पू , गुड्डू , पंकू देखो
अबीर उछालो , गुब्बारे फेंकों
कोई पाए ना बचके जाने
होली आई रे
गोरे फूफा हुए हैं लाल
तो काले चाचा हुए सफ़ेद
आज सभी हैं नीले – पीले
होली आई रे
बन कन्हैया छेड़े जीजा
राधा सी शर्माए दीदी
प्रीत वाही फिर से जगाने
होली आई रे
घर में अम्माँ गुझिया तलती
चाची दही और बेसन मलती
बुआ दावत की तैयारी करती
होली आई रे
बच्चे जाग गए हैं तडके
इन्द्रधनुषी बनी हैं सडकें
सबको अपने रंग में रंगने
होली आई रे
जिनमें कभी था रगडा -झगडा
चढ़ा प्रेम का रंग यूँ तगड़ा
सारे बैर -भाव मिटाने
होली आई रे
नीलम गुप्ता
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।