जीवन एक पहेली सा लगता है | ये पहेली भी हमने ही बनायी है | और खुद ही उसमें उलझ गए हैं | ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि कुछ बाते जानकार भी हम उनसे अनजान बने रहते हैं | आज ऐसे ही कुछ सूत्र लाये हैं जो जीवन को आसान बनाते हैं |
जीवन दर्शन – 5 सूत्र जो आप जानकार भी अनजान हैं
1) ईश्वर है की नहीं ?
अगला जन्म है की नहीं ?
गोरा या काला ?
सही या गलत ?
जीवन की सबसे बड़ी समस्या ये है कि हम जीवन के अधिकतर प्रश्नों के उत्तर हां या नहीं में चाहते हैं … परन्तु उत्तर एक होता ही नहीं है या उत्तर इन दोनों के बीच में होता है | जब हम मान लेते हैं कि काले और सफ़ेद के बीच यानि ग्रे शेड ही असली जीवन है या कुछ प्रश्नों का प्रश्न बने रहना ही जीवन की खूबसूरती है |
जरा गौर करिए कि अगर अगला जन्म है भी तो इस तरह से कि हमें याद ही नहीं रहता … यानि है भी तो नहीं होने की तरह |
एक बॉल आधी काली -आधी सफ़ेद है जो काली तरफ से देख रहे हैं … वो चिल्ला रहे हैं बॉल काली है ,जो सफ़ेद तरफ से देख रहे हैं वो भी चिल्ला रहे हैं … बॉल सफ़ेद है | दोनों के पास अपना सच है… दोनों के पास अपने तर्क है , लेकिन दोनों ही सही नहीं है |
कबीर दास जी कहते हैं कि
कहे कबीर सो जीवता , जो दुई में कड़े ना जाए
ये बात जीवन के हर क्षेत्र में है |
जब ये स्वीकार्यता आ जाती है तो प्रश्न गिर जाते हैं , अधीरता मिट जाती है … तर्क थम जाते हैं … यहीं से जीवन शुरू होता है |
जीवन का आनंद प्रश्न -उत्तरों में उलझने में नहीं उसे जीने में है |
2)क्रिकेट का मैच चल रहा है |दो खिलाड़ी बैटिंग कर रहे हैं | बाकि खिलाड़ी पवेलियन से मैच देख रहे हैं | जो पवेलियन से मैच देख रहे हैं उन्हें खेल की हर बारीकी समझ आ रही है | उन्हें समझ आ रहा है कि बल्लेबाज कहाँ गलती कर रहा है और गेंदबाज कहाँ गलती कर रहा है | वो सोचते हैं कि जब वो मैदान में उतरेंगे तो ऐसे खेलेंगे या ऐसे नहीं खेलेंगे | कितना आसान है खेलना | वही खिलाड़ी जब मैदान में उतरता है तो कभी जीरो पर ही आउट हो जाता है तो कभी कुछ देर खेलने के बाद एक आसान सी गेंद पर , जो उसने पहले समझी हुई थी आउट हो जाता है |
इस उदहारण से समझने की बात ये है कि जिन्दगी क्रिकेट का एक खेल ही तो है …. जब हम किसी की आलोचना कर रहे होते हैं कि उसने ऐसा किया , वैसा किया … ये सही किया वो गलत किया तब हम मैदान में खेल नहीं रहे होते हैं , पवेलियन में बैठ कर बारीकी से दूसरे के खेल का मुआयना कर रहे होते हैं | जब वही गेंद हम सामना करेंगे तो क्या पता हम उससे भी बुरा खेलें | एक बार अच्छा खेल लेने के बाद भी गारंटी नहीं है कि अगली बार जब उस गेंद को खेलेंगे तो सही ही खेंलेंगे |
कोई भी पूर्ण नहीं है …. हर गेंद पर हर किसी के सामने बेहतर खेल पाने या आउट हो जाने का खतरा बना हुआ है |
अगर आप आलोचना कर रहे हैं तो जान लीजिये कि आप पवेलियन में बैठे हैं , गेंद का सामना नहीं कर रहे हैं | अति उत्साही हो कर अपना खेल मत खराब करिए |
अगर आप आलोचना के शिकार हैं तो समझ लीजिये कि जो आलोचना कर रहे हैं वो पवेलियन में बैठे हैं , गारंटी नहीं है कि जब वो खेलेंगे तो आपसे बेहतर ही खेलेंगे | इसलिए अपने मनोबल को गिरने मत दीजिये |
खेलिए और खेलने दीजिये, जीवन का मजा खेल में है
3) हम अपनी समस्याओं का खुद निर्माण करते हैं ….. सजग हो जाइए समस्याएं अपने आप कम हो जायेंगी |
शायद ये बात आपकी समझ ना आये पर ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि मनुष्य अपने दुखों का निर्माण खुद करता है | मुझे रामधारी दिनकर जी की कविता की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं …
एक दिन यूँ कहने लगा मुझसे गगन का चाँद
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ,
उलझने अपनी बनाकर आप ही फंसता ,
और फिर बेचैन हो जगता ना सोता है
अगर आप अपने जीवन में देखेंगे तो पायेंगे कि कितनी समस्याएं आपने खुद बनायी हैं |
बिजली के बिलजमा करने की आखिरी तारीख में लम्बी -लम्बी लाइन का सामना करना पड़ता है , कई बार पूरे दिन की दफ्तर से छुट्टी भी लेनी पड़ती है | तनाव अलग बढता है | अगर शुरू में ही जमा करा दे तो मुश्किल से पांच मिनट का काम होता है |
कई बार कोई फैसला इतना ज्यादा टाला जाता है कि वो समस्या बन जाता है |
कई बार बिलकुल बिना विचारे किये गए काम ढेर सारी समस्याएं ले कर आते हैं |
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सास -बहु , नन्द भाभी , दो दोस्तों आदि के झगड़े जो कभी खत्म नहीं होते … उसका कारण भी यही है कि हमें समझ आ रहा होता है कि हमारे विचार नहीं मिलते फिर भी सारी कोशिश दूसरे को बदलने की होती है , सारे तर्क , सारा क्रोध और सारी असफलता भी इसी बात की है …. दूसरे को उसकी पसंद के जीवन जीने की आज़ादी ना देना ही समस्याओं का मूल है |
किसी भी समस्या के लिए जरूरी है उसे समझा जाना …. फिर अगर आप कुछ नहीं कर सकते तो उसे जीवन के रूप में स्वीकार करें , जैसे डायबीटीज स्वीकारी थी … और कुछ ही दिनों में सहजता से बिना शक्कर का जीवन जीना सीख लिया |
जिन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है उन्हें करिए और आगे बढिए | उसी में उलझे रह कर रोज उसके बारे में बात कर उसे बढाइये नहीं |
समस्या को स्वीकार कर या तो उसके साथ अनुकूलन करिए या फिर समाधान
४ )वो बहुत ज्यादा प्यार करता है …. याद रखिये नफरत भी वही बहुत ज्यादा करेगा |
इंसान की प्रकृति तीन भागों में विभक्त है …
ज्यादा … तो हर चीज में ज्यादा ………प्रेम में नफरत में उत्साह में , अवसाद में सबमें ज्यादा
कम …..तो हर चीज में कम …
मध्यम …. हर चीज में मध्यम
ये इंसानी स्वाभाव का ख़ास रूप है … जहाँ आपका गुण दोनों विपरीत दिशाओं में सफ़र करता है |
इसे ऐसे समझें ….
आपने फेसबुक पर जब आप प्रोफाइल पिक बदलते है तो आपने देखा होगा कि बार आती है … आप उसे बढ़ा या घटा सकते हैं … आप ही रहेंगे पर कभी आप का केवल चेहरा ज्यादा में….यानि आपका चेहरा बहुत पास व् साफ़ दिखेगा , तो कभी छोटा और कम साफ़ , लेकिन किसी भी हालत में आप दूसरे नहीं बन जाते |
अब जरा गौर करिए … अगर आपने अपना गुण पहचान लिया है तो आप को विशेष ध्यान देने की जरूरत है …. उसी की अधिकता अवगुण बन जायेगी …. अपना बार एडजस्ट करिए |
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अ ) आप अपने गोल पर फोकस्ड हैं … आपको सिर्फ गोल नज़र आ रहा है , पेरिफेरल विजन गायब भी हो रहा है | मतलब आप बहुत तरक्की करेंगे पर रिश्ते नाते छूटते जायेंगे | आप के बच्चों और पति /पत्नी को पूरा समय नहीं मिलेगा | सफलता की चोटी पर जब आप दायें -बायें देखेंगे तो आप को एक भी अपना नहीं दिखेगा |
ब ) अगर आप बहुत चुप रहते हैं , तो निश्चित तौर पर आपको ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं होती …. अकेली ही सही पर आप की अपनी एक दुनिया है …. विरोधाभास ये हैं कि आप एक अच्छे श्रोता है | हर कोई अपनी समस्याएं आपको सुनाने लगेगा | कुछ समय बाद आप की अपनी अकेली शांत दुनिया में उनकी समस्याएं घुस जायेगी |
स ) अगर आप बहिर्मुखी हैं … तो आप खूब लोगों से मिलते हैं , अच्छा समय व्यतीत करते हैं | नए -नए खतरे उठाते हैं …. मुंह के बल भी आप ही गिरते हैं |
सफल जीवन के लिए जरूरी है की अपना गुण पहचानिए और अपनी बार एडजस्ट करिए | कम ज्यादा पर नहीं बीच पर ……….
जो आप का गुण है वही अवगुण भी है
5)
परफेक्ट फिगर
परफेक्ट लुक
परफेक्ट लेखन
परफेक्ट ज्ञान
अगर आप भी उनमें से हैं जो परफेक्ट की तरफ भाग रहे हैं तो इसका सीधा सा मतलब है की आप खुद से नफरत करने की तरफ भाग रहे हैं |
एक उदहारण के लिए क्या हमारी दादी नानी खूबसूरत नहीं होती थीं | उनमें कोई सौदर्य चेतना नहीं थी | फिर भी वो सुंदर थीं | आज बाज़ार ने हमें हमारे नुक्स बताकर परफेक्ट सुन्दरता की अंधी दौड़ में शामिल कर लिया है | हर कोई दुखी है …. किसी का वजन ज्यादा या कम है किसी की नाक या ठोड़ी ठीक नहीं है , कोई रंग से संतुस्ट नहीं | परफेक्ट बनने की दौड़ में हर कोई असंतुष्ट है |
एक तरफ हम सीखना चाह्ते हैं खुद से प्यार करना … दूसरी तरफ बाज़ार हमें हमारी सौ कमियाँ बता रहा है |
परफेक्ट बनने के स्थान पर कमियों को स्वीकार करिए
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