ए भैया कितने का दिया ?
100 रुपये का |
100 का , ये तो बहुत ज्यादा है लूट मचा रखी है | 50 का लगाओ तो लें |
अरे बहनजी ८० की तो खरीद है , क्या २० रुपये भी ना कमायें , सुबह से धूप में खड़े हैं |
ठीक है 70 का देना हो तो दो , वर्ना हम चले |
ठीक है , ठीक है , सिर्फ आपके लिए |
मोल -मोलाई की ये बातें हम अक्सर करते और सुनते हैं | ये सब दुकानदारी का एक हिस्सा है , जो थोड़ा सा झूठ बोल कर चलाई जाती है | पर क्या सब ये कर पाते हैं ?
लघुकथा-दुकानदारी
ये उन दिनो की बात है जब नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद हमने नया-नया कोल्ड डिंक का काम शुरू किया!चूकि सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे।दुकानदारी के दाव-पेच मे हम कोरे पन्ने थे।पहले सीजन मे जोश-जोश मे खूब माल भर लिया था!अनुभव व चालाकी के अभाव मे ज्यादा सेल नही कर पाये,नतीजन माल बचा रहा,!
आफ सीजन नजदीक आता देख व बचे माल को देख हमे अपनी अक्ल पर पत्थर पढते दिखाई दिये।हमने आव देखा ना ताव,अपने सारे माल को लेकर उसी होलसेलर के पास जा पहुंचे पर ये क्या,वो तो माल लेने से बिल्कुल मुकुर गया!
मेरे यहाँ से ये माल गया ही नही?ये माल तो एक्सपायर हो गया है!इसकी डेट भी निकल चुकी है!कस्टमर तो लेगा ही नही।
हम भी आपे से बाहर हो गये,कभी दुकानदारी की नही थी ,सिर मुडाते ही ओले पढे,वाली हालत हो गयी थी हमारी।उसे कुछ भी कहना,कागज काले करने वाली बात थी।
एक्सपायरी माल हम तो बेच नही सकते थे। क्योंकि हमारा जमीर ही हमारा साथ नही दे रहा था।हारकर हमने उसे ही कोई हल बताने को कहा!उसने हंसकर कहा-एक बात हो सकती है….अगर तुम अपना सारा माल मुझे आधे दाम पर दे दो तो मै इसपर लिखी तारीख को तेजाब से साफ करके नये रेट से ही शराबखाने मे डाल मुनाफा कमा लूगा।क्योकि वहां आने वाले नशेडिय़ों, शराबियो ने कौन सी छपी तारीख पढनी है।हमे उसकी सलाह माननी पड़ी पर ये खरीद-बेच का गणित हमे समझ नही आया,और फिर हमे ये दुकानदारी बंद करनी पडी।।
सोचने लगे थे मुनाफे के चक्कर मे,अपनी दुकानदारी चमकाने के चक्कर मे इंसान कितना नीचे तक गिर सकता है,ये वाक्या हमे मुंह चिढा रहा था।।
ऋतु गुलाटी
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गिरगिट
तीसरा कोण
गलती
सही कहा कि दुकानदारी करना हर किसी के बस की बात नहीं हैं।