जीवनदाता

जीवनदाता

गर्मी का मौसम शुरू हो गया है | इन्सान तो क्या , जीव -जंतु , पेंड -पौधे सब का हाल बुरा है | तपती हुई धुप में कितनी बार हम लोगों को लगता है कि कहीं से बस दो बूँद पानी मिल जाए तो जीवन चल जाये | शायद ऐसा ही तो जीव -जंतु , पेंड पौधे भी कहा करते होंगे , पर क्या उनकी आवाज़ हम सुन पाते हैं ? ये आवाज़ महसूस की एक नन्हे बच्चे ने … 

लघुकथा -जीवनदाता 



गर्मी के दिन थे। सुबह होते ही सिर पर तेज-कड़ी धूप निकल आती थी। सिंटू ने सुबह-सुबह अपनी किताब से पेड़-पौधों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। तभी उसे प्यास लगी तो वह कमरे से निकल कर मां के पास आया। मां ने एक ग्लास पानी देते हुए कहा, ‘‘बेटा, पानी बर्बाद मत करना। आजकल इसकी बड़ी किल्लत हो गई है।’’


घर के अंदर उमस हो रही थी। सिंटू ग्लास लेकर छत पर निकल आया। वहां उसने देखा, गमले के पौधे सूख रहे हैं। वह अपनी प्यास भूल गया। उसने ग्लास का सारा पानी गमले में उड़ेल दिया। तभी मां बाहर आ गई और यह दृश्य देखकर चैेक पड़ीं। उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुमने क्या किया ?’’


सिंटू ने कहा, ‘‘मां, हम पानी के बिना कुछ दिन रह सकते हैं। मगर आक्सीजन के बगैर बिल्कुल नहीं। मत भूलो, ये पौधे हमें आॅक्सीजन देकर जीवन देते हैं। इनका खयाल पहले रखना जरूरी है।’’

                                                           -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                               पटना- (बिहार)    
                                                    e-mail address –             gyandevam@rediffmail.com

                                                                  

लेखक -ज्ञानदेव मुकेश

                                                                                           

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