यूँ तो ये एक कहावत ही है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं , अर्थात नन्हा नाजुक सा बच्चा बड़ा हो कर कैसे स्वाभाव वाला बनेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है | हम सब अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे बच्चों से जरूर रूबरू हुए होंगे जिनकी सफलता के बारे में हमें उनके छुटपन से ही अंदाजा हो गया था | एक ऐसा ही अंदाजा लघुकथा के रूप में पिरोया है रीतू गुलाटी जी ने …
लघुकथा –पालने में पूत के पैर
आज अचानक फेसबुक पर अपने प्यारे छात्र अनु की तस्वीर देख मेरा मन खुशी से उछल पडा।आज कितने सालो के लम्बे अंतराल बाद जो दिखा था।जल्दी से मैने उसका प्रोफाईल चेक किया,जिसे देख आश्चर्य
से मेरा मुंह खुल्ला का खुल्ला रह गया।
वो दिल्ली मे सरकारी जॉब पा गया था वो भी Sectional Officer at Ministry of Housing and Urban Affair department मे।
M.Sc. करके Ph.D. भी कर गया था,Indian Agriculture Research Institute से।वाह वाह,मै तो खिल गयी थी!कंहाँ से कंहा पहुंच गया मेरा वो छात्र,,,,।मै कुछ सोचने लगी,और अतीत के पन्ने बदलने लगी,!मुझे याद आया जब अनु ने मेरे ग्रामीण परिवेश मे बने एक छोटे से स्कूल मे प्रवेश लिया था,!
पतला सा,लम्बा सा,सांवले रंग का वो बच्चा विलक्षण सा लगा।उसकी आँखों की चमक कुछ कहती थी।सीधा-सादा सरल बच्चा नर्सरी से आठवी क्लास तक मेरे संपर्क मे रहा!और आठवीं क्लास के हरियाणा बोर्ड मे 99%नम्बर लेकर वो मेरे स्कूल से लेकर अपने गांव मे चर्चित हो गया था।
उसके माता-पिता भी बडे शरीफ व सीधे -सादे थे।पिता खेती करता व दूध भी बेचता।समय समय पर अनु भी पिता की साथ फसल कटवाता।कच्चे मिट्टी के घर मे वो रहते।और हर छह माह बाद फसल कटने के उपरान्त ही उसका पिता फीस भरता।उसका एक छोटा भाई जो रंगत मे अनु से उलट था फिर भी शैतानी करता पर अनु चुपचाप व गंभीर दिखता,,व पढाई मे जुटा रहता।
एक दिन मै आठवीं क्लास का पढा रही थी,तभी मैनै पढाई से इतर कुछ बाते करनी शुरू कर दी,तभी अनु मुझे बोला–मैम पहले मेरा वो चैप्टर जल्दी से कम्पलीट करा दीजिये।मै मुस्कुरा दी।उसकी पढाई की लगन ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर दिया था ,कि पूत के पैर पालने मे दिख जाते है।।
रीतू गुलाटी ‘ऋतू ‘