परहितकारी

लघु कथा -परहितकारी

परहित सरिस धरम नहीं भाई … तुलसीदास जी की यह चौपाई परोपकार को सबसे श्रेष्ठ धर्म बताती है | अच्छे मुश्यों का प्रयास रहता है कि वो परोपकार कर दूसरों का हित करें परन्तु जीव -जंतु भी परोपकार की भावना से प्रेरित रहते हैं | ऐसे ही मूक प्राणियों की परहित भावना को अभिव्यक्त करती लघुकथा …

लघुकथा -परहितकारी 

सुबह-सुबह आसमान में सूर्य की लालिमा उभरने लगी थी। इस लालिमा के स्वागत में पक्षियों का कलरव शुरू हो चुका था। राहुल नींद से उठकर आंखें मल रहा था। तभी उसके बालकनी में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दी। राहुल समझ गया कि चिड़ियां पानी पीने के लिए व्याकुल हो रही हैं। राहुल रोज रात में सोने से पहले बाॅलकनी के मुंडेर पर पानी की कुछ प्यालियां रख देता था। मगर कल रात वह प्यालियां रखना भूल गया था।

वह फौरन किचेन में गया और दो प्यालियों में पानी भरकर बालकनी में आया। उसने मुंडेर पर प्यालियां रख दीं और वह पीछे हट गया। मगर प्यासी चिड़ियां पानी के प्याली तक नहीं आईं। राहुल आश्चर्यचकित था।

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   वही मंुडेर पर कुछ गमले रखे थे। सभी चिड़ियां उन गमलों के पौधे के ईर्द-गिर्द मंडरा रही थीं और चीं-चीं कर रही थीं। राहुल कुछ समझ नहीं पाया। वह चिड़ियों की इस हरकत से परेशान होने लगा। तभी दादी मां बालकनी में आई। उन्होंने राहुल को परेशान देखा तो इसका कारण पूछा। राहुल ने कहा, ‘‘देखो न दादी, चिड़ियां मेरा पानी न पीकर गमलों पर क्यों मडरा रही हैं ?’’

  दादी ने गमलों को गौर से देखा। सभी गमले सूख चुके थे। उनमें पड़ी मिट्टी में दरारें पड़ने लगी थीं। दादी मां सब समझ गईं। उन्होंने राहुल एक बाल्टी पानी और मग लाने को कहा। राहुल पानी और मग ले आया। दादी मां ने जल्दी-जल्दी सभी गमलों में पानी डाला। देखते-ही-देखते गमलों में पड़ी मिट्टी की दरारें खत्म हो गईं।

   तभी राहुल ने देखा, सभी चिड़ियां गमलों पर से मंडराना छोड़कर पानी की प्यालियों की तरफ बढ़ गईं और चोंच डुबाकर पानी पीने लगीं। राहुल के आश्चर्य की सीमा न रही। दादी मां ने राहुल को हैरान देखा तो कहा, ‘‘ये पंछी हैं, मनुष्य नहीं। यह अपनी प्यास से ज्यादा दूसरों की प्यास की फिक्र करते हैं।’

  राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘‘दूसरों की प्यास ? मतलब ?’’

  दादी मां ने राहुल के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘इन सूखे पौधों की प्यास। यही पौधे तो हमें जीवन देते हैं। इन्हें भी तो पानी देना होगा।’’

                                                           
                                                                             
                                             

                                                  – ज्ञानदेव मुकेश

                                                न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी
                                                पटना-800013 (बिहार)

लेखक -ज्ञानदेव मुकेश

                                                       

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