जब आप सब्जी लेती है तो एक -एक आलू या भिन्डी घंटो चुनती/चुनते है , ठीक नहीं लगती तो अगली दुकान पर जाती हैं | कपड़े खरीदने जाती हैं तो ना जाने कितनी दुकाने पूरी तरह पलटवा देती /देते हैं तब जा कर कोई एक कपड़ा पसंद आता है | और क्यों ना करें आपके सेहत और खूबसूरती का राज भी यही है | लेकिन जब बात रिश्तों में चयन की आती है जो आपके मानसिक स्वास्थ्य , ख़ुशी , और सेहत न केवल शरीर की बल्कि आत्मा की भी … से जुड़ा होता है , तब … तब क्या आप उतने ही सतर्क रहते हैं ?
चुने सही रिश्ते
बहुत पहले एक कॉमेडी फिल्म देखी थी ‘भागमभाग’, उसमें हर कोई एक दूसरे
के पीछे भाग रहा है | फिल्म तो कॉमेडी की थी पर
उसमें जिन्दगी की हकीकत छिपी हुई थी … असली जीवन में भी हर कोई किसी ना
किसी के पीछे भाग रहा है | किसी के पीछे हम भाग रहे हैं और कोई हमारे पीछे भाग रहा
है ,या यूँ कहे कि किसी के पीछे भागने के चक्कर में हम उन लोगों पर ध्यान ही नहीं
देते जो हमारे पीछे भाग रहे हैं | बहुत पहले बिहारी जी भी कह् गए हैं …
के पीछे भाग रहा है | फिल्म तो कॉमेडी की थी पर
उसमें जिन्दगी की हकीकत छिपी हुई थी … असली जीवन में भी हर कोई किसी ना
किसी के पीछे भाग रहा है | किसी के पीछे हम भाग रहे हैं और कोई हमारे पीछे भाग रहा
है ,या यूँ कहे कि किसी के पीछे भागने के चक्कर में हम उन लोगों पर ध्यान ही नहीं
देते जो हमारे पीछे भाग रहे हैं | बहुत पहले बिहारी जी भी कह् गए हैं …
बसे बुराई जासु तन, ताहि को सम्मान
भलो भलो कह टालिए, छोटे ग्रह जप दान
रिश्ते नातों में, मित्रों में , कार्यालय
के सहकर्मियों में , जान पहचान के लोगों में लोग अक्सर उन लोगों के पीछे भागते
रहते हैं यानि खुश करने में लगे रहते हैं जो अक्खड़ , बदमिजाज , गुस्सैल हैं …लगता
है वो खुश हो जायेंगे तो बाकी तो हमारे अपने ही हैं | लेकिन ऐसा होता नहीं है , ये
वो लोग होते हैं जिनकी उम्मीदें बढती जाती
हैं, इस रेस की कोई ‘फिनिश लाइन” नहीं होती | आप लगे रहिये …लगे रहिये और
भावनात्मक रूप से पूरी तरह से निचुड़ जाइए …फिर उनकी एक अगली फरमाइश आएगी | ध्यान
दीजियेगा ये लोग आपके प्रियजनों का एक प्रतिशत से भी कम होते हैं , लेकिन ये बाकी
99 प्रतिशत लोगों का समय खा जाते हैं | जो लोग आपके पीछे भाग रहे हैं यानि जो
रिश्ते बेहतर हैं सींचना उन्हें भी पड़ता है | एक समय बाद वो सूख जाते हैं , जब आप
वापस लौटते हैं तो वहां वो बात नहीं रहती |
के सहकर्मियों में , जान पहचान के लोगों में लोग अक्सर उन लोगों के पीछे भागते
रहते हैं यानि खुश करने में लगे रहते हैं जो अक्खड़ , बदमिजाज , गुस्सैल हैं …लगता
है वो खुश हो जायेंगे तो बाकी तो हमारे अपने ही हैं | लेकिन ऐसा होता नहीं है , ये
वो लोग होते हैं जिनकी उम्मीदें बढती जाती
हैं, इस रेस की कोई ‘फिनिश लाइन” नहीं होती | आप लगे रहिये …लगे रहिये और
भावनात्मक रूप से पूरी तरह से निचुड़ जाइए …फिर उनकी एक अगली फरमाइश आएगी | ध्यान
दीजियेगा ये लोग आपके प्रियजनों का एक प्रतिशत से भी कम होते हैं , लेकिन ये बाकी
99 प्रतिशत लोगों का समय खा जाते हैं | जो लोग आपके पीछे भाग रहे हैं यानि जो
रिश्ते बेहतर हैं सींचना उन्हें भी पड़ता है | एक समय बाद वो सूख जाते हैं , जब आप
वापस लौटते हैं तो वहां वो बात नहीं रहती |
चचा ग़ालिब कह गए हैं …
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरे जुल्फ के सर होने तक
यहाँ पर
इसे रिश्तों में वो अहसास खत्म होने तक लें | इसलिए जरूरी है कि सही उम्र में ये
बात समझ आ जाए | लेकिन अगर किसी कारण वश नहीं आई है तो जब समझ में आ जाए रिश्तों
के चयन पर ध्यान देना शुरू कर दीजिये |
आजकल “ toxic people” पर बहुत बात हो रही है | जितनी जल्दी हो इन्हें पहचानिए और
अपने से दूर करिए |
इसे रिश्तों में वो अहसास खत्म होने तक लें | इसलिए जरूरी है कि सही उम्र में ये
बात समझ आ जाए | लेकिन अगर किसी कारण वश नहीं आई है तो जब समझ में आ जाए रिश्तों
के चयन पर ध्यान देना शुरू कर दीजिये |
आजकल “ toxic people” पर बहुत बात हो रही है | जितनी जल्दी हो इन्हें पहचानिए और
अपने से दूर करिए |
·
यूँ तो
भावनाएं और लोगों को हर रचनाकार बारीकी से निरिक्षण करता है ताकि वो रचनाओं में
उनके मानसिक व् भावनात्मक धरातल पर उतर कर लिख सके | परन्तु पिछले कई सालों से “इस
शहर में हर शख्स परेशां सा क्यूँ है “ मेरे मन में उथल –पुथल मचा रहे हैं …ये कुछ सुझाव उसे शोध का नतीजा हैं |
भावनाएं और लोगों को हर रचनाकार बारीकी से निरिक्षण करता है ताकि वो रचनाओं में
उनके मानसिक व् भावनात्मक धरातल पर उतर कर लिख सके | परन्तु पिछले कई सालों से “इस
शहर में हर शख्स परेशां सा क्यूँ है “ मेरे मन में उथल –पुथल मचा रहे हैं …ये कुछ सुझाव उसे शोध का नतीजा हैं |
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filed under:TOXIC PEOPLE, RELATION, COMFORT IN RELATIONSHIPS, PEACE OF MIND, EMOTIONAL MATURITY