हर साल मंदिरों में नवरात्रों के दौरान भीड़ बहुत बढ़ जाती है | हर कोई माँ की उपासना करने में लगा होता है | कहते हैं माँ और भगवानों से ज्यादा दयालु होती हैं क्योंकि वो बच्चे की पुकार पर पहले ही दौड़ आती है | लोग इसे सच मानते हैं क्योंकि हर किसी को अपनी माँ के स्नेह का अनुभव होता है …पर क्या देवी माँ के ये उपासक अपनी घर में उपस्थित अपनी माँ के प्रति भी कुछ श्रद्धा रखते हैं ?
घर की देवी
भैया, तुम और भाभी दशहरे में घर नहीं आए। मां बहुत बेसब्री से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थीं। मैंने देखा, तुम लोगों के आने की बात सुनकर वे बेहद प्रसन्न थीं। वे खुशी के अतिरेक में फूली नहीं समा रही थीं। मैंने मां के चेहरे पर खुशी का ऐसा उछाह पहले कभी नहीं देखा। यदि तुमलोग सचमुच आ जाते तो वे खुशी से पागल हो जातीं और तुमलोगों पर आशीर्वाद और दुआओं की घनघोर वर्षा कर देंती।
मगर तुमलोगों ने ऐन वक्त पर आने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और तुमलोग नहीं आए। इससे मां निराशा और दुख के गहरे सागर में चली गईं। तुमलोगों ने दशहरा अपने शहर में ही बनाया। सुना कि तुमलोगों ने खूब सारी तैयारियां कीं। घर में ही मां दुर्गा का भव्य और विशाल दरबार सजाया। दिनभर मां की पूजा-अर्चना की और मंगल आरती उतारी। तरह-तरह के फूल-फल और नैवेद्य चढाए और देवी मां को प्रसन्न किया।
निस्संदेह ऐसी समर्पित पूजा-अर्चना से तुमलोगों को देवी मां का आशीर्वाद मिला होगा। मगर तुम लोगों के आने की सूचना पर मां के चेहरे पर तो अप्रतिम प्रसन्नता खिली थी, उसे याद कर मैं दावे एवं पूर्ण विश्वास से कह सकती हूं कि आपको देवी मां से वह आशीर्वाद नहीं मिला होगा, जो तुम्हारे घर आने पर अपनी बूढ़ी मां के थरथराते हाथों से मिलता। घर आते तो वह एक बड़ी पूजा-अर्चना होती। मैं कुछ ज्यादा या गलत कह गई तो क्षमा करना।
तुम्हारी,
छोटी बहन।
-ज्ञानदेव मुकेश
न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी,
पटना-800013 (बिहार)