लघु कहानी — कब तक ?

लघु कहानी --  कब तक ?

    
कल एक बहुत ही खूबसूरत विचार पढ़ा …

“यह हमारे ऊपर है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही अनुचित परम्पराओं को
तोड़े ….जब वो कहते हैं कि हमारे परिवार में ऐसा ही होता आया है …तो आप उनसे
कहिये कि यही वो बिंदु (स्थान) है जहाँ इसे परिवार से बाहर हो जाना चाहिए”

समाज बदल गया पर आज भी हम परंपरा के नाम पर बहुत सीगलत चीजे ढो रहे
हैं …खासकर लड़कियों के जीवन में बहुत सारे अवरोध इन परम्पराओं ने खड़े कर रखे हैं
1)     
हमारे परिवार की लडकियां पढ़ाई नहीं जाती |
2)     
हमारे परिवार की लड़कियों की शादी तो २० से पहले
ही जाती है |
3)     
हमारे परिवार की लडकियां नौकरी नहीं करती |

4)     
हमारे परिवार की लडकियाँ ….बहुत कुछ आप खुद भी
भर सकते हैं | 

ऐसी ही एक परंपरा को तोड़ती एक सशक्त लघु कथा 

लघु कहानी —  कब तक ?


बचपन से ही उसे डांस का बहुत शौक था । अक्सर छुप छुप कर टीवी के सामने माधुरी के गाने पर थिरका करती थी । जब वह नाचती थी तो उसके चेहरे की खुशी देखने लायक होती थी । 
     मां भी बेटी के शौक के बारे में अच्छे से जानती थी .. कई बार मां ने बाबा को मनाने की कोशिश की थी पर उसका रूढ़िवादी परिवार नृत्य को अच्छा नहीं समझता था । 
    ” क्या ?? नचनिया बनेगी ? ” 
इस तरह के कमेंट से उसका मन भर आता था । 
  एक दिन से ऐसे ही बाबा के काम पर जाने के बाद वह टीवी के सामने थिरक रही थी कि उसके कानों में आवाज आई  ” रश्मि, तैयार हो जा.. डांस एकेडमी चलना है !” 
 रश्मि मां का मुंह देखने लगी । 
“चल , तैयार हो .. देर हो जायेगी । ” मां उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली । 
   अब मां ने फैसला कर लिया था कि बच्ची की इच्छा को यूं नहीं मरने देगी । परिवार के सामने बेटी की ढाल वह बनेगी । आखिर कब तक बेटियां इच्छाओं का गला घोंट घोंट कर जीवित रहेगी ? 
कब तक ?? 

___ साधना सिंह
  गोरखपुर यूपी

लेखिका -साधना सिंह





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