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प्रियंका गांधी , चुनाव नहीं लड़ रही हैं पर वो अपने भाई राहुल गांधी व् कोंग्रेस के प्रचार को मजबूती प्रदान करने केव लिए राजनीति के दंगल में उतरी हैं | प्रस्तुत कविता इस दूषित राजनीति में प्रियंका के कदम रखने पर अपने विचार व्यक्त करती है …
प्रियंका–साँप पकड़ लेती है
कभी नदी———
कभी नाव पकड़ लेती है,
मोदी न आये सत्ता में,
इस डर से,
सपेरो के यहां जा——-
प्रियंका साँप पकड़ लेती है.
यही तो लोकतंत्र है,
कि इस तपती धूप में,
महलों की रानी,
अपने पति और भाई के लिए
गांव की पगडंडी ,
अपने आप पकड़ लेती है,
और सपेरो के यहां जाके—
प्रियंका साँप पकड़ लेती है.
हँसती है,घंटो बतियाती है
इस डर से-
कि कही अमेठी से
भाजपा की स्मृति न जीत जाये,
हाय! ये काग्रेंस की आबरु का सीट
बचाने के लिये प्रियंका——-
अपने दादी की छाप पकड़ लेती है.
और सपेरो की बस्ती में—–
साँप पकड़ लेती है.
जनता जानती है,समझती है
कि क्यो——
चुनाव के समय ही,
ये प्रियंका सपेरो के यहा जाके—-
साँप पकड़ लेती है.
लेकिन ये जनता साँप नही,
कि कोई पकड़ ले,
ये वोटर है,
जो चुनाव से पहले ही,
इन रंगे सियारी नेताओ का—-
हर पाप पकड़ लेती है.
मोदी सत्ता में न आये,
इस डर से,
सपेरो के यहां जाके —-
प्रियंका सांंप पकड़ लेती है.
रचनाकार –रंगनाथ द्विवेदी
जज कालोनी,मियांपुर
जिला–जौनपुर
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डिस्क्लेमर – कविता , लेखक के निजी विचार हैं , इनसे atootbandhann.com के संपादक मंडल का सहमत/असहमत होना जरूरी हैं
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