देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें

देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें





देश की दशा पर कवि का ह्रदय दग्ध ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता | वो अपने दर्द को शब्द देकर न सिर्फ खुद राहत पाटा है बल्कि औरों को सोचने को भी विवश करता है | प्रस्तुत है देश की समसामयिक दशा पर ऐसी ही कुछ कवितायें ……….




देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें 


विकास
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बिहार से आ रही है रोज
बच्चों के मरने की खबर
और हम
रोती कलपती माताओं से दृष्टि हटा
नयी मिस इंडिया की ख़बरों में उलझे हैं
सच में हमने विकास कर लिया है
हम मानव से मशीन  बन गए हैं

टी .वी रिपोर्टिंग 
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आइये आइये … अपने टी वी ऑन करिए
देखिये -देखिये कैसे कैसे गरीब बच्चे मर रहे हैं
यहाँ अस्पताल में
इलाज के आभाव में
हाँ  तो डॉक्टर साहब आप क्या कर रहे हैं ?
देखिये -देखिये
वो बच्चा वहाँ  पड़ा उसे कोई पूछ नहीं रहा
आखिर क्या कर रहे हैं आप ?
बताइए -बताइए ?
छोडिये मैडम जाने दीजिये
क्यों जाने दूं
आज पूरा देश देखे
देखे तो सही आप की लापरवाही
मैंने कहा ना मैडम जाने दीजिये
फिर जाने दीजिये
हद है
आप डरते हैं उत्तर देने से
नहीं मैडम डरता नहीं
पर जितनी देर आपसे बात करूंगा
शायद एक बच्चे की जान बचा लूँ
मुझमें और आपमें फर्क बस इतना है कि
आपके  चैनल की टी आर पी
बढ़ेगी बच्चों की मौत की सनसनी से
और मेरी निजी प्रैक्टिस
बच्चो को बचाने से

शरणार्थी
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वो शरणार्थी ही थे
जो रिरियाते हुए आये थे
दूर देश से
दया की भीख मांगते
पर भीख मिलते ही वो
200 लोगों को ट्रक में लाकर
कर देते हैं डॉक्टरों पर हमला
डॉक्टर करते हैं सुरक्षा की मांग
नहीं पिघलती
सत्ता की कुर्सी की ममता
उन्हें नज़र आता है
 सांप्रदायिक रंग
नहीं देखतीं कि उनकी सरपरस्ती में
क्या  है जो गुंडागर्दी पर उतर आये हैं
बेचारे शरणार्थी
और इन दो पाटो के बीच
पिस रहे हैं मरीज
शरणार्थियों के पक्ष में खडी ममता
आखिर क्यों नहीं देख पाती
उन का दर्द
जो अपने मरीज के ठीक होने की आशा में
आये थे इन अस्पतालों की शरण में

संसद में नारे 
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इस बार संसद में गूंजे
जय श्री राम
अल्लाह हु अकबर
जय भीम
जय हिन्द
जय संविधान
के बुलंद नारे
सही है कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में
सबको है स्वतंत्रता
अपने -अपने धर्म -सम्प्रदाय के नारों की आवाज़
बुलंद करने का
नहीं है कोई रोक टोक
बशर्ते
ये नारे ना हों एक दूसरे को नीचा दिखाने लिए
संसद से लेकर सड़क तक
ना बने धर्म
किसी युद्ध की वजह

आधा गिलास पानी
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जब तुम फ्रिज से निकाल कर
हलक से उतारते हो
आधा गिलास पानी
और आधा बहा देते हो नाली में
तो कुछ और सूख जाते हैं
महाराष्ट्र , बुन्देलखंड और राजस्थान के खेत
तीन गाँव पार करने की जगह
अब चार गाँव पार कर
लाती हैं मटकी भर पानी वहां की औरतें
क्या ये सही नहीं कि प्यास के अनुसार
 पिया जाए
सिर्फ आधा गिलास एक बार में
और आधा बच जाए फेंकने से
क्या ये भी बताना पड़ेगा
कि ये धरती सबकी है और
सबके हैं इसके संसाधन

नीलम गुप्ता

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