कहते हैं शक की दवा को हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी | यूँ तो ये भी कहा जाता है कि रिश्ते वही सच्चे और दूर तक साथ चलने वाले होते हैं जहाँ आपस में विश्वास हो और रिश्ते की जमीन पर शक का कीड़ा दूर -दूर तक ना रेंग रहा हो , पर रिश्तों में कभी न कभी शक आ ही जाता है ,खासकर पति -पत्नी के रिश्ते में | लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि कोई जबरदस्ती शक आपके दिमाग में घुसा दे ? ये काम करने वाला कोई जान -पहचान वाला नहीं हो , बल्कि ऐसा हो जिससे आपका दूर -दूर तक नाता ही ना हो , और आप की शक मिजाजी में उसका फायदा हो | इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं हैं | ऐसी ही एक साईट है फिडेलिटी डॉट कॉम और यही है सशक्त कथाकार प्रज्ञा जी की ‘नया ज्ञानोदय’ मई अंक में प्रकाशित कहानी का विषय | हमेशा नए विषय लाने और अपनी कहानियों में आस -पास के जीवन का खाका खींच देने में प्रज्ञा जी सिद्धहस्त हैं | उनकी लंबी -लंबी कहानियाँ पढने के बाद भी लगता है की काश थोड़ा और पढ़ें | उनके हाल में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘मन्नत टेलर्स ‘में ‘उलझी यादों के रेशम ‘, ‘ मन्नत टेलर्स ‘व् कुछ अन्य कहानियाँ पाठक को अपने भाव जगत में डूब जाने को विवश कर ती हैं | उसके बारे में कभी विस्तार से चर्चा करुँगी , फिलहाल फिडेलिटी डॉट कॉम के बारे में …
फिडेलिटी डॉट कॉम :कहानी समीक्षा
ये कहानी एक ऐसी लड़की विनीता के बारे में हैं , जो अपने कड़क मामाजी के अनुशासन में पली है | घर के अतरिक्त कहीं जाना , नौकरी करना उसे रास ही नहीं आता | विवाह के बाद उसके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन होता है , जब उसे अपने पति सुबोध के साथ कोच्चि में रहना पड़ता | अनजान प्रदेश , अजनबी भाषा ऊपर से सुबोध के मार्केटिंग में होने के कारण बार -बार लगने वाले टूर | अकेलापन उसे घेरने लगता है , लोगों से संवाद मुस्कुराहट से ऊपर जा नहीं पाता , और टीवी अब सुहाता नहीं | ऐसे में सुबोध उसे टैबलेट पर फेसबुक और इन्टरनेट की दुनिया से जोड़ देता है | उसके हाथ में तो जैसे खजाना लग जाता है …रिश्तों के विस्तृत संसार के बीच अब अकेलापन जैसे गुज़रे ज़माने की बात लगने लगती है | इन्टरनेट की दुनिया में इस साईट से उस साईट को खंगालते हुए एक पॉप अप विज्ञापन पर उसकी निगाह टिकती है, ” क्या आपको अपने साथी पर पूरा भरोसा है ? क्या करते हैं आप के पति जब काम पर बाहर जाते हैं ? क्या आप जानना चाहती हैं ? ना चाहते हुए भी वो उस पर क्लिक कर देती है | फिडेलिटी डॉट कॉम वेबसाईट का एक नया संसार उसके सामने खुलता है | जहाँ फरेबी पति -पत्नियों के अनेकों किस्से हैं , घबरा देने वाले आँकड़े हैं और खुद को आश्वस्त करने के लिए अपने जीवनसाथी की जासूसी करने के तरीके भी |
दिमाग में शक का एक कीड़ा रेंग जाता है | जो चीजे अभी तक सामान्य थी असमान्य लगने लगतीं हैं | छोटे -छोटे ऊलजलूल प्रश्नों के हाँ में आने वाले उत्तरों से मन की जमीन पर पड़े शक की नीव के ऊपर अट्टालिकाएं खड़ी होने लगतीं है और विज्ञापन की चपेट में आ कर वो , वो करने को हामी बोल देती है जो उसका दिल नहीं चाहता | यानि की फिडेलिटी डॉट कॉम पर क्लिक करके अपनी पति की जासूसी करने का उपकरण खरीदने को तैयार हो जाती है और एक बेल्ट के लिए ओके कर देती है | ये वो जासूसी उपकरण होते है जो ऐसे कपड़ों पर लागाये जाते हैं जो उस व्यक्ति के हमेशा पास रहे | जिससे वो कहाँ जाता है , क्या करता है इसकी पूरी भनक उसके जीवन साथी को मिलती रहे |
हालाँकि बाद में खुद ही उसे इस बात का अफ़सोस होने लगता है कि उसने ये क्यों किया | कहानी में उसके मन का अंतर्द्वंद बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है | जैसे -जैसे कहानी आगे बढती है , पाठक आगे क्या होगा जानने के लिए दिल थाम कर पढता जाता है | कहानी सकारात्मक और हलके से चुटीले अंत के साथ समाप्त होती है परन्तु ये बहुत सारे प्रश्न पाठक के मन में उठा देती है कि इन्टरनेट किस तरह से हमारे निजी जीवन व् रिश्तों में शामिल हो गया है और एक जहर घोलने में कामयाब भी हो रहा है | ऐसी तमाम साइट्स पर हमारी निजता को दांव पर लगाने वाला हमारा अपना ही जीवन साथी हो सकता है | लोगों से जोड़ने वाला हमें अपनों से दूर कर देने का तिलिस्म भी रच रहा है , जिसमें जाने अनजाने हम सब फँस रहे हैं |
एक नए रोचक व् जरूरी कथ्य , सधे हुए शिल्प व् प्रस्तुतीकरण के लिए प्रज्ञा जी को बधाई
वंदना बाजपेयी
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