अक्सर शारीरिक श्रम को मानसिक श्रम की तुलना में कमतर आँका जाता है पर क्या पेट भरा ना हो तो चाँद पर जाने के ख्वाब पाले जा सकते हैं या फिर सड़कों पर लगे कूड़े के ढेर हमारे घरों को साफ़ रखने की तमाम कोशिश के बावजूद हमारे शरीर को बीमार बना ही देंगे | और इन सबसे बढ़कर हम महिलाएं जो कुछ घर के बाहर निकल कर काम कर पा रही हैं उनके पीछे हमारी घरेलु सहायिकाओं की अहम् भूमिका से भला कौन इंकार कर सकता है | तो क्या क्या जरूरी नहीं है कि हम शारीरिक श्रम का भी सम्मान करना सीखें |
श्रम का सम्मान
आज जब सुबह घरेलु सहायिका कमला के लिए दरवाजा खोला तो रोज की तरह ना वो मुस्कुराई , ना दुआ , ना सलाम | चेहरा देख कर लगने लगा कि का मूड बहुत ख़राब है |
पूछने पर कहने लगी , ” सरू भाभी के कल रूपये चोरी हो गए …कल शाम को ही घर फोन पहुँच गया ,बात नहीं बताई , बस तुरंत ही बुलाया | हम भी आनन -फानन में रिक्शा कर के उनके घर गए | घर पहुँचते ही मुझसे पूछने लगीं , मेरे रुपये खो गए हैं , बड़ी रकम थी , तुम ने ही लिए हैं , तुम्हीं कपड़े धोती हो , बता दो ? दे दो ?
मैं तो एकदम सकते में आ गयी | कितने रुपये थे , पूछने पर बताया भी नहीं | फिर थोड़ी देर बाद दूसरे कमरे में जाकर बेटे से बात की फिर आ कर खुद ही कहने लगीं ठीक है घर जाओ , साथ में ताकीद दी कि किसी को बताना नहीं | शायद मिल गए …पर वो भी बताया नहीं | बस जी में आया तो इल्जाम लगा कर गरीब की इज्जत उछाल दी |
बताइये भाभी , दस साल से काम कर रहे हैं , हमेशा इधर -उधर पड़े पैसे उठा -उठा कर देते रहे , वो सब भूल गयीं | उनके घर में इतने मेहमान आये हुए हैं , उनमें से किसी से नहीं कहा , क्या उनका ईमान नहीं डोल सकता ? लेकिन उनसे कहने की हिम्मत नहीं पड़ी | सारे दोष गरीब में ही नज़र आते हैं … अमीर क्या कम पैसा मारते हैं |
भाभी, मैंने काम छोड़ दिया , साथ ही उन्हें सुना भी आई, ” आप को काम वालों की इज्ज़त करना सीखना चाहिए | हम भीख नहीं मांग रहे हैं , मेहनत कर के पैसे कमा रहे हैं , वैसे ही जैसे आप पढ़े लिखे हैं आप लिखाई -पढाई वाली नौकरी कर के पैसे कमा रहे हैं …. इज्ज़त दोनों की बराबर है … और अगर आप कुछ तीज – त्यौहार पर कुछ दे देती हैं तो आप को जहाँ आप काम कर रही हैं वहाँ बोनस मिलता हैं…. दुनिया को दिमाग के काम की जरूरत है तो हाथ के काम की भी जरूरत है |हम लोगों को काम की कमी नहीं है , काम की कमी पढ़े -लिखों को हैं …. वो बोले जा रही थी , बोले जा रही थी …
और मैं अपनी मेहनत पर भरोसा रखने वाली उस स्वाभिमानी स्त्री के आत्मसम्मान पर गर्व के आगे नतमस्तक हुई जा रही थी |
वंदना बाजपेयी
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तन्हाँ
सुरक्षित
बहुत सार्थक है।श्रम को सम्मान मिलना चाहिए।
धन्यवाद आशा जी
बहुत बढ़िया..
सही कहा वंदना दी कि काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता। कामवाली हैं तो क्या हुआ उनकी भी इज्जत हैं।