बच्चे भगवान् का रूप होते हैं | घर में आने वाले ये नन्हे मेहमान घर को खुशियों से भर देते हैं | बधाई और शगुन बांटने का सिलसिला शुरू होता है | परन्तु क्या हर बार ऐसा ही होता है ? उन माता -पिता से पूछिए , नौ महीने इंतज़ार के बाद जिनके घर में फूल खिलता तो है पर आधा -अधूरा …
लघुकथा -तू ही मेरा शगुन
“रीना जल्दी तैयार हो जाओ ,आज डॉ से तुम्हारा चेकअप करा दूँ ।ऐसी स्थिति में देर नहीं करते ?”! रमेश ने कहा ।
” जी आती हूँ” ।
दोनों अपने कार से उतरकर बड़े से नर्सिंग होम में दाखिल हुए ।
“आओ -आओ रीना डॉ नंदनी ने मुस्कुराते हुए स्वागत किया ,कैसी हो “!
आप ही देखकर बतायें कैसी हूँ? ।
डॉ नंदिनी ने चेकअप कर कहा …
“जल्दी से आ जाओ आपको एडमिट करती हूँ , प्रसव-पीड़ा की शुरुआत हो गयी है ।”
डॉ नंदनी ने रीना के पति को कहा “आप घर जाकर कुछ समान ले आये, कुछ ही देर में आपको खुशखबरी देती हूँ “।
रमेश माँ से बोला माँ कुछ समान और रीना के कपड़े दे दो ,तुम जल्दी ही दादी बनने वाली हो ।”अरे मैं भी चलती हूँ ,दोनों हॉस्पिटल चल दिए ,रीना प्रसव -घर में चली गयी थी ।
दो घंटे तक प्रसव-वेदना झेलने के बाद रीना ने बच्चे को जन्म -दिया ।
दर्द के कारण अर्ध-मूर्छित सी हो गयी थी ।
जैसे ही डॉ नंदनी ने बच्चे को देखा —–उसके होश उड़ गए हे भगवान! ये क्या ये तो थर्ड-जेंडर “किन्नर” हैं ।रमेश और माँ के चेहरे और आँखों में अनगिनत खुशियां हिलोरें ले रही थी कब बच्चे को देखे ।
नर्स ने आकर कहा आप रीना जी और बच्चे से मिल सकते हैं ।
रमेश ने पुछा क्या हुआ है लड़का या लड़की ।
आप अंदर देख सकते हो, डॉ नंदनी के मानो हाथ काँप रहे थे बच्चे को जब उसके दादी के गोद में दिया । दादी ने कुछ सिक्के निकालकर “निछावर किया बोली इसे “किन्नरों में बांट देना बेटा बधाई के तौर पर , हमारे “बच्चे को किसी की नजर नहीं लगेगी”।
जैसे ही रमेश ने बच्चे का पूरा मुआयना किया ,उसकी आँखों से अविरल आंशू बह निकले, क्यों ये सजा हमे मिली क्या?रीना जानती है उसे क्या हुआ है । कोमल-गुलाबी हाथ छोटे-छोटे पैर दो आँखे-टुकुर-टुकुर देख रही थी रमेश को ।
रमेश ने प्यार से चिपटा लिया कलेजे में बच्चे को ,बोला मेरे जीवन का बधाई और शगुन भी तू ही है —?।
अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’
पटना कालिकेत नगर
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