कहानी -उसका जवाब
४० की उम्र कोई,
एक ऐसी
उम्र होती है जब हर औरत एक हिसाब में उलझती है| वो हिसाब होता है उसके बीते वर्षों का | जहाँ उसने बेटी, बहन पत्नी और माँ का किरदार
तो तो बखूबी से निभाया होता है, अपने लिए उसकी जिंदगी की
किताब के पन्ने कोरे ही रहते हैं | इसीलिए बहुधा इसी उम्र में एक तड़प सी उठती है अपने लिए कुछ करने की | मोहिनी भी ऐसी ही कुछ पशोपेश
में थी | बरसों हो गए अपनी जिन्दगी
पीछे छूटे हुए| आज अपनी पुरानी रैक साफ़ कर
रही थी कि आयल पेंट्स की ट्यूब दिखाई दी | ट्यूब्स तो सूख गयीं थी पर उन्हें देख
कर उसके सपने जिंदा हो गए| उसने खुद को जी लेने की
ख्वाइश में पेंटिंग करने का मन बनाया| रात को खाने की टेबल पर
उसने अपनी इच्छा को पवन को बताया|
जोर से हंसे की गिलास का पानी छलक गया | फिर खुद को संयत कर के बोले “अरे भई ये क्या सूझ रहा है तुम्हे
इस उम्र में | मेरी जान तुम तो मेरे जीवन
में रंग भरती हो … उतना ही काफी है |”
चुभ गयी |
करना चाहती हूँ |”
धंधा-पानी बंद हो जाएगा और सब तुम्हारी आरती उतारने
लगेंगे| बेकार समय बर्बाद करोगी | यूँ ही घर में कुछ रंगना चुनना है,
तो किसने
रोका है |” पवन बिना रुके बोलता गया |
अनजान थी | ये वो पवन हैं जिनकी एक-एक
इच्छा के लिए वो अपनी जान भी कुर्बान करने
को तैयार रहती थी, और वो उसे मानसिक रूप से
थोडा सा सहारा भी देने को तैयार नहीं थे | मोहिनी खाना आधा छोड़ कर
कमरे में चली आई | तकिया मुँह में दबा कर घंटों रोती रही | तभी उसका छोटा भाई श्याम
आया | उसे रोता देख कर अचम्भे में पड़ गया | श्याम ने इतने सालों तक उसे
हँसते–मुस्कुराते हुए ही देखा था| उसके सुखों की मिसाल दी जाती थी | घबरा कर श्याम ने उसके सर
पर हाथ रख कर पूछा , “क्या हुआ दीदी, सब ठीक तो है?”
हूँ | बच्चे भी तो अब
हॉस्टल चले गए हैं, खाली समय काटने को दौड़ता है बस उसी को भरने के लिए मैंने
पेंटिंग्स बनाने की सोची है , लेकिन सिर्फ घर के स्तर पर नहीं, मैं चित्रकारी में अपना भविष्य
बनाना चाहती हूँ | पर तुम्हारे जीजाजी नहीं
मान रहे हैं, ऊपर से ताना और देते हैं कि इस उम्र में चित्रकारी करोगी” मोहिनी ने रोते हुए कहा |
जायेंगे |” श्याम के इन शब्दों ने उसका हौसला बहुत बढ़ा दिया |
बनाया व् फेसबुक अकाउंट भी | जहाँ वो चित्र डालने लगी | उसके चित्र पसंद किये जाने लगे , पर ये वो दिन थे जब उसे अपनी क्षमता
और प्रतिभा पर विश्वास नहीं था, वो कभी कभी डरते डरते पवन से कहती कि, “प्लीज देख लीजिये मेरे चित्रों को
कितने लोग पसंद कर रहे हैं, एक बार आपकी स्वीकृति की भी मोहर
लग जाती | पवन मुंह
बना कर जवाब देता , “अब इन फ़ालतू कामों के लिए समय नहीं है मेरे पास | दिन भर ऑफिस में खटो फिर बीबी
के
चित्रों पर वाह-वाह करो|” उसका मन दुखी हो जाता | क्यों बनाए, किसके लिए बनाए ये चित्र | बाहर वाले तो दिल खोलकर तारीफ कर रहे हैं पर जिसे सबसे ज्यादा खुश
होना चाहिए को तो देखना गंवारा ही नहीं है
|
बेरंग होने लगे | कई दिन हो गए चित्र बनाना तो दूर एक लाइन भी नहीं खींची गयी |
बहुत दिन बाद फेसबुक खोल कर देखा, मित्र उससे नए चित्र की माँग कर रहे थे | इन
बेगाने लोगों के अपनेपन ने उसे अंदर तक भिगो दिया | पर एक सच्चाई ये भी थी कि बाहर
के लोगों के प्रेरणा से चलती हुई
गाड़ी तो खिंचती पर रुकी हुई गाड़ी नहीं स्टार्ट नहीं होती …उसके लिए
किसी उसका बल जरूरी होता है जो बहुत पास हो | पहले ख्याल आया कि थोड़ी सी प्रेरणा
के लिए बेटी को फोन लगाए पर अपने ख्याल को यह सोच कर दफ़न कर दिया कि वो
बेचारी अपनी जिन्दगी के तनाव झेल ही रही
है , उसकी इच्छा जानते ही उसे समझने में
देर नहीं लगेगी कि पापा ने मम्मी का साथ
नहीं दिया है | उसके मन में अपने पापा की एक आदर्श छवि है वो उसे नहीं
टूटने देना चाहती थी |
किया ,” हेलो, भैया मेरे चित्र मेरे ब्लॉग पर बहुत पसंद किये जा रहे हैं | प्लीज देखना |”
मन खुश हो गया और वो फिर रंगों में उलझने लगी | एक दिन ऐसा भी आया जब एक
वेबसाइट ने उसे चित्रों के लिए हायर कर लिया | अब उसे उस वेबसाइट में डाली
जाने वाली कहानियाँ व् लेख पढ़ कर उन्हीं के मुताबिक चित्र बनाने थे | इसके बदले में उसे तनख्वाह मिलनी थी|
वो बहुत
खुश हो गयी |ये आत्मनिर्भरता का सुख था , जिसकी मिठास के आगे दुनिया की हर मिठाई
फीकी थी |
उसे पता ही नहीं चला | उसने पवन को बड़े उत्साह
के साथ
दिखाया,” देखो ना , मैंने कहानी के लिए चित्र
बनाया है |”
दोगी या
नहीं | मुझे आज अपना नावेल पढ़ कर खत्म करना है| तुम्हारे चित्रों के लिए समय नहीं है मेरे पास |”
आहत मन ने एक बार फिर मलहम की तलाश मे श्याम को फोन किया | शायद प्रेम के दो शब्द सुनने के लिए |
ये मन भी
कितना अजीब है | जब वहां से प्यार नहीं
मिलता , जहाँ उसे तलाश होती है तो आभाव के
उस गड्ढे को भरने के लिए कोई दूसरा दरवाज़ा खटखटाता है | पर ऐसा कहाँ होता है की एक गहरे
रिश्ते
से उत्पन्न हुए गड्ढे को कोई दूसरा भर दे| ये गड्ढे जिसके नसीब में
होते हैं उन्हें उसी के साथ जीना सीखना होता है |
लेकिन ,
इतनी गहरी समझ तो ठोकर खाने के बाद ही आती है | इसीलिये सुधा को समझ आने के लिए ठोकर लगना लाजिमी था |
उसने
ख़ुशी से बताया ,” भैया मुझे एक वेबसाइट में
जॉब मिल गया है | उन्होंने मेरे ब्लॉग पर
मेरा काम देख कर ही मुझे काम दिया है | तुमने मेरा ब्लॉग देखा ?”
मुझे नहीं मिला |”श्याम की कहने पर उसे सहज विश्वास नहीं हुआ |
नहीं है | खैर टाइम मिलने पर देखता
हूँ |”श्याम ने टका सा जवाब दिया |
भी उसकी उन्नति , ख़ुशी और काम में कोई दिलचस्पी नहीं थी | उसने अपने को संभाला | अपनों से प्रशंसा के दो बोल सुनने की
आशा छोड़ उसने अपनी पूरी ताकत अपने
काम में झोंक दी | अब उसे पत्रिकाओं के कवर पेज भी बनाने को मिलने लगे| एक प्रतिभा जो
घर के तहखाने में बंद थी , अपना आसमान छूने लगी |
थी उतना ही पवन उससे चिढ़ते जा रहे थे | घर के कामों को लेकर उनकी अक्सर खिट-खिट होती थी| अक्सर पवन उलाहना देते ,” हाँ , हाँ लगी होगी अपने चित्रों के साथ
क्यों
ध्यान रहेगा मेरी शर्ट प्रेस करने का | “वो शर्ट हाथ से खींच लेती , “लाओ , मैं अभी कर देती हूँ | दरअसल कल जब प्रेस कर रही थी तब लाईट चली गयी | इस कारण यह बिना प्रेस के रह गयी |” पर पवन उसके एक्सप्लेनेशन को अनसुना करते हुए ताना मारते, “अरे तो लाईट कभी आ भी तो गयी होगी |
पर जब
बाहर से वाहवाही मिल रही हो तो क्यों घर का काम सुहाएगा |” वो बस आँखों में आँसू भर कर रह जाती | जब वो चित्रकारी नहीं कर रही थी तब भी तो पवन ने ऐसे कभी नहीं कहा | बल्कि उसके कहने पर कि, “ सॉरी, मैं शर्ट प्रेस नहीं कर
पायी |” उसे बाहों में भर कर कहते ,” अरे केवल एक वही शर्ट तो नहीं है मेरे पास जो मेरी रानी इतना परेशान हो रही है | पर अब …?”
है तो औरतें बहुत खुश होती हैं उन्हें लगता है ये सफलता उनकी अपनी है पर जब पत्नी
सफल होती है तो पति को लगता है ये सफलता उसकी नहीं है सिर्फ पत्नी की है | बल्कि कहीं न कहीं उसे ये भी लगने लगता है कि ये सफलता उन्हें अपने
घर के उत्तरदायित्वों को न निभा पाने की कीमत पर मिली है |
है ?
और काम में लग जाती | उसका काम निखरता गया उसे बहुत सारे अवार्ड मिलने लगे पर उसकी प्रतिभा उसकी
प्रसिद्धि उसके अपनों की नज़र में उसका कसूर थी |
उसके
किसी अवार्ड फंक्शन में किसी उपलब्द्धि पर उसके घर से कोई नहीं जाता| हमेशा उनके पास समय नहीं होता था |
मन अपनी
खुशियाँ बाँटना चाहता पर उसके पास कोई नहीं था जिससे वह अपनी खुशियाँ बाँट पाती,…क्योंकि अब वो बाहर काम करने लगी थी इसलिए भाई हो या पति घर का
कोई पुरुष उसका साथ देने को तैयार नहीं था| जब वो काम नहीं कर रही थी तो यही सब
कितने अपने थे| वो उस गली में लौट सकती थी जहाँ उसकी भावनाएं तृप्त होती पर
आत्मसम्मान कुचल जाता| वो घंटों सोंचती, “ क्यों ये चुनाव उसके हिस्से में आ रहा
है ? मर्दों
को औरत बेसहारा ही क्यों अच्छी लगती है ?”
इच्छा पर जान कुर्बान करने वाली सुधा ने इस बार निर्णय कर लिया था कि चाहें कोई साथ दे न दे वो अपना काम जारी
रखेगी , वो अपनों से अपेक्षा छोड़ कर अपना मन पत्थर कर लेगी
| वैसे ही जैसे की
उसकी
उम्र की सब औरतों ने ,जो अपना सपना खोजने निकली हैं अपना दिल पत्थर किया है, न
जाने कितनी सफल औरतों की जीवनियाँ इसकी गवाह हैं … कि जो औरत दूसरों के सपनों के लिए दरिया बन
कर बहती है वो अपने सपनों के लिए पत्थर बनने को विवश हो जाती है |
समय दे ही दिया जिसका उसे बेसब्री से इंतज़ार था |
आश्चर्य
की एक ही दिन में उसकी दोनों हसरतें पूरी हो गयीं |
से लौट कर आये और बोले, ” मुझे ऑफिस की तरफ से बेस्ट
इम्प्लोई का अवार्ड मिला है , मिनिस्टर आ रहे हैं देने, कल शाम को तैयार रहना चलना
है |” इससे पहले की वो कुछ कह
पाती श्याम का भी फोन आ गया , ” कैसी हो दी ? मैंने भी कुछ तस्वीरें बनायी हैं व
अपने नए बनाये ब्लॉग पर पोस्ट की हैं, देख कर बताना कैसी हैं ? “ सुधा मुस्कुराते हुए बोली ,” जरूर अच्छी ही बनी होंगी, पर देखों न आज तुम लोगों की तरह मेरे पास भी समय नहीं है| एक महीने
तक तो बिलकुल भी नहीं देख पाऊँगी , तुम्हारे जीजाजी के अवार्ड
फंक्शन में भी नहीं जा पाऊँगी , बेचारे वो भी कभी समय की
कमी के चलते कभी मेरे साथ जा ही नहीं पाए | ये समय भी बहुत अजीब है कब
किसका साथ दे जाए और किसका साथ देने से इनकार कर दे कहा ही नहीं जा सकता “, कहते हुए उसने फोन काट दिया | पवन को भी उसका जवाब मिल चुका था वो भी सर झुकाए दूसरे कमरे में चला गया |
तूलिका उठा ली और सफ़ेद कैनवास पर रंग भरना शुरू कर दिया | उसे लग रहा था कि उसके दिल से एक बड़ा सा पत्थर हट गया है| वो बहुत खुश थी | ये कोई छोटी बात भी तो नहीं
थी , समय की तारीख पर उसका जवाब अंकित हो गया था कि आज
के दिन से औरत ने भावनाओं के स्थान पर आत्म सम्मान को वरीयता देना सीख लिया है |
वंदना बाजपेयी
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