श्रृंगार रस के दो रूप होते हैं संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार ….वियोग में प्रेम की तीव्रता देखते ही बनती है | ऐसे में हम लायें हैं वियोग श्रृंगार रस में डूबे कुछ दोहे ……..
वियोग श्रृंगार के दोहे
१..
पढ़ कर पाती प्रीत की , भीग रहे हैं नैन |
आखर -आखर बोलते , साजन हैं बेचैन ||
२…
मैं उनकी हो ली सखी , पर वो मेरे नाही |
एकतरफा अग्नि प्रेम की , नाहि जाए बुझाहि ||
३ ..
रूठे साजन से कहूँ , कैसे हिय की बात |
ऊँघत तारों के तले , कटती है हर रात ||
४…
मुझे होता जो भान ये , साजन हैं चितचोर |
मनवा रखती खींचकर , नहीं सौपती डोर ||
५…
जबसे बालम ने किया , दूर देश में ठौर |
तबसे देखा है नहीं ,दर्पण करके गौर ||
६…
घड़ी चले घड़ियाल सी , इस वियोग में हाय |
तडपत हूँ दिन -रैन मैं , पर साजन ना आय ||
७…
संदेशा तू प्रेम का , बदरा ले जा साथ |
बूँदों -बूँदों में छिपा , कहना हिय की बात ||
8….
रिमझिम सावन भी गया , गयी घाम औ शीत |
दिवस -दिवस बढती रही , मेरे उर की प्रीत ||
9 ..
नून घुले ज्यूँ नीर में , घुलती है यूँ देह |
थामे रहतीं प्राण को , साँसें भर कर नेह ||
10…
तुम भी तो होगे पिया , उतने ही बेचैन |
लिखना खत हमको कभी , कटती कैसे रैन ||
11…
मैं हुई हलकान पिया , नाम तुम्हारा टेर |
अब तो आजा बालमा , नहीं करो अब देर ||
वंदना बाजपेयी
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वंदना दी,सभी दोहे बहुत अच्छे हैं।
So nice