प्रेम, सृष्टि की सबसे पवित्र भावना, ईश्वर का वरदान, संसार की सबसे दुर्लभ वस्तु …कितनी उपमाएं दी गयीं हो प्रेम को पर स्त्री के लिए ये एक वर्जित फल ही हैं …खासकर विवाहित स्त्री के लिए | समाज द्वारा मान लिया है कि विवाह के बंधन में प्रेम का पुष्प खिल ही जाता है | परतु विवाहित स्त्री के रीते मन पर अगर ये पुष्प सामाजिक मान्यता के विपरीत खिल जाए तो …तो ये एक हलाहल है जिसे अपने कंठ में रख निरंतर विष पीती रहती है स्त्री | हमारे आस –पास कितनी स्त्रियाँ के गरल पिए हुए स्याह पड़े कंठ हम देख नहीं पाते | आज अक्सर कहानियों में देह विमर्श की बात होती है, परन्तु देह से परे भी प्रेम है जो सिर्फ जलाता, सुलगाता है और उस विष के साथ जीवन जीने को विवश करता है| सच्चाई ये है कि तमाम देह विमर्शों के परे स्त्री मन का यह बंद पन्ना दबा ही रह जाता है| इस पर पुरुष साहित्यकारों की दृष्टि बहुधा नहीं पड़ती और स्त्रियाँ भी कम ही कलम चलातीं हैं | आज पढ़ते हैं उसी गरल को पी नीलकंठ बनी स्त्री की दशा पर लिखी गयी सोनी पाण्डेय जी की मार्मिक कहानी …
नीलकंठ
अच्छा यह बताओ आप कि आज बात बे बात इतना मुस्कुरा क्यों रही हो ?
प्रिया ने पायल को झकझोरते हुए कहा। पायल मुस्कुरा कर रह गयी।आदतन प्रिया ने दाँत कटकटाते हुए बनावटी गुस्से में चिल्ला कर पूछा- बता दो की तुम इतना क्यों मुस्कुरा रही हो?
पायल अब पत्रिका से मुँह ढ़क कर हँसने लगी।प्रिया उसके पैरों पर सिर रख ज़मीन पर बैठ गयी…मेरी अम्मा, मेरी दीदी,मेरी बहन जी…प्लीज बता दो!..मनुहार करते उसकी आँखें भर आईं थीं।
पायल को दया आ गयी,सिर पर हाथ रख कर दुलारते हुए कहा…तुम बहुत जिद्दी लड़की हो, हठ कर बैठ जाती हो किसी भी बात पर।
उसका गाल सहलाते हुए वह फिरसे मुस्कुरा उठी।
इस बार प्रिया ने तुनक कर कह ही दिया…आपको बताना ही होगा,ऐसे तो आपको पिछले आठ साल में अकेले बैठकर मुस्कुराते नहीं देखा।गले में हाथ डाल कर कहा….पता है, ऐसे लड़कियाँ प्रेम होने पर मुस्कुराती हैं।
पायल को जैसे हजारों वॉल्ट का करेंट का झटका एक साथ लगा हो ,वह सिहर उठी , यह पच्चीस साल की लड़की इतनी अनुभवी है कि मन के कोने में उपजी एक मध्यम सी लकीर जो होठोंं तक अनायास खिंची चली आ रही है को पढ़ लेती है।वह झट पत्रिका को समेट पर्स में रख खड़ी हो गयी। प्रिया पैर पटकती उसके पीछे पीछे चलने लगी…बता दीजिए न प्लीज पायल मैम!
पायल के चेहरे पर तनाव उभर आया था, उसने लम्बी साँस लेते हुए कहा, “आज एक कहानी पढ़ी,उसी को सोच-सोच कर मुग्ध हो रही हूँ प्रिया।”
प्रिया ने मुँह बिचका लिया….बस इतना ही,बक्क! आप बहुत खराब हैं।मैंने तो सोचा…
पायल उसके मुँह से अगला शब्द निकले उससे पहले ही टोकते हुए रोकने लगी।प्लीज प्रिया,एक भी फालतू शब्द मत बोलना,जानती हो यहाँ दीवारों के बहत्तर कान हैं और मैं खामाखां मुसीबत में पड़ जाउंगी।
पायल का दिल धौंकनी की तरह धड़क रहा था…माथे पर पसीने की बूदें चुहचुहाने लगीं,पेट में गुड़गुड़ाहट होने लगी…घबराहट और बेचैनी में वह सामने के खण्डहर हो चुके क्लास रूम में आकर दीवार की टेक ले खडी हो गयी।आज उसे झाड झंखाड से भरे इस कमरे में बिल्कुल डर नहीं लग रहा था…सैकडों साँपों का जमावडा जिस कमरे में बरसात में रहता आज उस भयानक से कमरे की दीवार से चिपकी रोए जा रही थी।उधर प्रिया उसे खोज कर जब थक गयी तो क्लास में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगी।
आज मोहित स्कूल नहीं आया था,मोहित पिछले साल स्कूल में आया नया शिक्षक ,जैसा नाम वैसा ही स्वाभाव।सभी को अपने आकर्षक व्यक्तित्व और विनम्र स्वभाव से मोहित कर लेता।शुरू में सभी को लगा कि मोहित प्रिया को पसन्द करता है।पायल ने एक दिन कह भी दिया कि प्रिया तुम्हारी और मोहित की जोडी बहुत सुन्दर लगेगी.. प्रिया ने लम्बी साँस लेते हुए पायल से कान में कहा था उस दिन…मोहित आपको पसन्द करता है।पायल ने प्रिया को उस दिन बहुत डांटा था।वह समझ ही नहीं पा रही थी कि वह मोहित को कैसे समझाए कि वह जो कहता फिरता है सबके सामने वह एक दिन उसके जीवन में तूफान खड़ा कर सकता है।मोहित पायल से इतना प्रभावित रहता कि उसे दर्द निवारक मैम कह कर हँस पड़ता।चाहे कितनी मुश्किलें सामने हो पायल धैर्यपूर्वक उसका हल खोज निकालती।चाहे बच्चों की समस्या हो या शिक्षकों की वह कुछ न कुछ करके सब ठीक कर लेती।उसके पास हर समस्या का समाधान रहता..हर एक अपनी मुश्किल उसे सुना हल्का हो लेता ,ऐसी पायल अपने अन्दर के असीम तूफान को समेटे हर पल मुस्कुराते हुए सबसे मिलती और मोहित मुग्ध हो उसके गुन गाता फिरता।एक दिन तो इतना तक कह दिया कि यदि आप शादीशुदा नहीं होतीं तो आपसे ही शादी करता और परसों उसने सारी सीमाएँ तोड़ते हुए पायल से कह ही दिया..आई लव यू पायल।पायल ने उसे जोर से चांटा मारा था..वह कल से स्कूल नहीं आया था।पायल को छोड इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी।हाँ प्रिया जरूर मोहित का पक्ष जानती थी और पायल को छेड़ती रहती थी।
पायल के जीवन का यह साल भी अजीब था , शादी के एक दसक खत्म होने को है।चल रहा सब,जैसे हर आम औरत की दुनिया में चलता है।जिस उम्र में प्रेम के कोंपल फूटते हैं उस उम्र में कुछ बनने की धुन में वह लड़कों की तरफ देखती तक नहीं। दिल के बंजर ज़मीन पर कभी प्रेम के अंकुर नहीं फूटे.और अब जो घट रहा था वह अजीब था.।..शादी होनी थी, हुई…पति के लिए वह जरूरत थी,समाज के लिए एक सुखी परिवार, बच्चे ,पति ,घर परिवार से घिरी एक औरत जिसे जरूरत की किसी चीज की कमी नहीं थी वह आखिर क्यों नहीं खुलकर हँसती नहीं थी?उसे खुश रहना चाहिए… औरत को इसी में खुश रहना है और क्या चाहिए उसे।खाओ पहनो घूमो और चुपचाप सबकी जरूरतें पूरी करती रहो।
उसे याद आता है कि काजल उसे देख कैसे बिफर पड़ी थी…क्या पायल! तुम्हारे जैसी जहीन लड़की ने अपना क्या हाल बना रखा है?जानती हो! हम तो तुम्हें लेकर इतने आश्वस्त थे कि तुम हमारे बैच से जरूर आई.ए.एस.बनोगी और तुम आज क से कबूतर पढ़ा कर खुश हो।कहाँ मर गयी तुम्हारे भीतर की वह प्रिया जो अपनी पहचान खुद बनाने में यकीन रखती थी।आई हेट यू प्रिया! उसने नम आँखों से अन्तिम वाक्य कहा था…तुम हम सब की आदर्श थी और आज क्या से क्या हो गयी।
क्या से क्या होना ही तो स्त्री होने की त्रासदी थी…वह बहना चाहती थी पहाड़ी अल्हड नदी की तरह और उसे घर के अन्धेरे कुएँ में कैद कर दिया गया।वह उड़ना चाहती थी चहचहाते परिंदों की तरह और उसके पर कतर ब्याह कर दूर देश भेज दिया गया।वह घर की दीवारों पर बहुरा के दिन जब भित्तिचित्र उकेरती ,लोग उसमें बड़ा चित्रकार देखते।वह जब प्रार्थना में गाती…हमको मन की शक्ति देना sss ,संगीता शिक्षिका उसमें गायिका की संभावनाएं देखतीं।जब वह स्कूल के मंच पर नृत्य करती सखियाँ उसमें सफल नर्तकी देखतीं।क्या कुछ नहीं था उसमें और सब कुछ खत्म होने को था।
जो शेष था उसे छात्रों में बाँटती वह खुश थी कि किसी ने कान में यह कह उसे फिरसे जिन्दा कर दिया था कि मुझे तुम्हारी प्रतिभा से प्रेम है।
प्रेम sssssss
कितना रूमानी शब्द है उसने तीस की उम्र में आकर जाना,….वह खुद को बार -बार झिड़कती है।पागल हो! अब जानकर भी क्या करना।सब खत्म हो जाएगा तुम्हारे चेहरे पर गुलाबी रंगत उभरते।वह रोते -रोते थक चुकी थी…उस खण्हर हो चुके कमरे की दीवार पर शिव का चित्र किसी पेण्टर ने कभी बनाया होगा…चित्र धुँधला हो चुका था।शिव उसके इष्ट.. वह उनकी आँखों में आँखे डालकर बुदबुदा उठती है…आपने एक बार विष पीया महादेव! हम रोज पीते हैं और आकण्ठ विष से भरी हुई हम स्त्रियों का कण्ठ कोई नहीं देखता।आप तो देव संस्कृति के एकमात्र साम्यवादी देवता हैं, अर्द्धनारीश्वर! ..आपकी दुनिया में हमसे केवल प्रेम किया जा सकता है , कभी भी,कहीं भी,किसी हाल में,किसी उम्र में।प्रेम का रंग आपकी दुनिया में चाहे जितना लाल और गुलाबी हो,हमें तो केवल प्रेम में विषपान मिला…हलाहल।देखिए तो कितनी स्याह हो चुकी हूँ मैं, हाँ मुझे प्रेम हुआ है… एक गुनाह जिसका परिणाम बस विष है और मैं विषपान कर रही हूँ।मैं इस बार जीना चाहती हूँ …जी भर जीना।हाँ मैं प्रेम में हूँ..प्रेम मेरा मौलिक अधिकार।वह रोए जा रही थी..
प्रिया की घण्टी खत्म हुई तो वह पायल को खोजने लगी।दोनों बहुत अच्छी दोस्त थीं और एक ही स्कूल में टीचर भी।दोनों एक दूसरे की हमराज… आज जो हुआ उससे प्रिया भी असहज थी।वह चारों तरफ खोज कर थक गयी ,उसे खयाल आया कि वह दोनों जब कुछ खास बातें करतीं तो विद्यालय के पुराने हिस्से में चली आतीं जो विरान हो चुका था।वह भागती हुई आई और सभी कमरों में तलाश लेने के बाद पीछे के कमरे में पहुँची।पायल को सिसकते देख उससे लिपट गयी…पायल ने उसे गले से लगाकर धीरे से कहा…हाँ पायल,मुझे प्रेम हो गया है,एक गुनाह।मैंने प्रेम का ज़हर पी लिया है प्रिया!..देखो न…उसे झकझोरते हुए।मैं स्याह पड़ती जा रही हूँ।इस उम्र का प्रेम विषपान ही तो है एक शादीशुदा स्त्री के लिए।वह रोए जा रही थी।प्रिया ने अपनी पूरी ताकत से उसे अपनी बाँहों में भर लिया और मुँह पर हाथ रख दबा दिया…चुप हो जाइए पायल मैम! यहाँ दीवारों के कान हैं।प्लीज चुप हो जाइए…दोनों बेतहाशा रो रही थीं।यही हासिल था एक स्त्री को प्रेम में…दोनों जल रहीं थी उस आग मेंं जो आकण्ठ विष बन जल रहा था।स्तियाँ प्रेम में बार- बार नीलकण्ठ होती हैं पर किसी सभ्यता की दीवार पर उनके चित्र नहीं मिलते उस रूप में।
सोनी पाण्डेय
आज़मगढ
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