सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि हर कोई अपने कंधे पर शर्तों का झोला टाँगे बिना शर्तों वाला प्रेम मांग रहा है |
unconditional love ये शब्द सुनने में जितना खूबसूरत है उतना ही भ्रामक भी है | मनोविज्ञान के अनुसार हर बच्चे को unconditional love चाहिए होता है ताकि वो समय और परिस्थिति सहन करने लिए तैयार हो सके | लेकिन बड़े होकर अपने मित्रों जीवनसाथी और यहाँ तक की माता पिता से भी करता है पर वो बड़े पर मिलना संभव नहीं है |यहाँ मुख्य रूप से वो अपने जीवनसाथी पर उम्मीदों का बक्सा तंग देता है |
परन्तु unconditional love मिलना आसान नहीं है |क्योंकि व्यक्ति यह तो चाहता है कि उससे कोई बदलाव की उम्मीद ना रखे और वो जैसा है वैसा ही उसे स्वीकारे पर क्या वो स्वयं ऐसा अपने जीवनसाथी के साथ कर पाता है ?
कहीं न कहीं ये मांगना बहुत स्वार्थी हो जाता है कि जो मुझे चाहिए वो मुझे दो ….चाहे मैं तुम्हारे साथ जैसा भी व्यवहार करूँ |
रिश्ते अप्क्षाओं से नहीं समझदारी से चलते हैं | यहाँ गुलाब के साथ कांटे भी स्वीकार करने पड़ते हैं | क्या हो जब एक की जरूरत दूसरे से टकरा रही हो ?
प्रेम में जरूरत है स्वस्थ सीमाओं की, ना कहने के अधिकार की | समय पर साथ देने की और समझदारी की |
बिना शर्त प्रेम की जगह प्रेम की ये शर्तें ज्यादा सही है …
हम दोनों खुले ईमानदार , अहिंसक वार्तालाप के लिए सदा तैयार हैं |
हम एक दूसरे की बात दिल से सूने के लिए तैयार हैं साथ ही अपनी कहने की भी |
हम जीवन में प्रेम और परस्पर देखभाल से आगे बढ़ेंगे न ही इसे अपना कर्तव्य और जरूरत समझ कर |
हम मतभेदों को समझदारी से सुलझाएंगे क्योंकिप्रेम का मतलब मतभेद होना नहीं है |