पंडितों के बारे में बचपन से हास-और उपहास की बाते ही सुनती रही थी | वो भोजन भट्ट होते हैं | कभी तोंद देखी है उनकी ,चार पैसे दिखा दो तो पोथी पत्रा ले कर दौड़ते हुए चले आयेंगे | कोई काम नहीं है बस मला फेरो , अरे उस ज़माने में पंडित जब खाना खाने आते थे तो इतना खा लेते थे | चारपाई पर लेट कर जाते थे | जो भी हो पंडितों की छवि बहुत बिगड़ी हुई थी | परन्तु एक घटना ने इनके बारे में फिर से सोचने पर विवश कर दिया |
एक बार मंदिर जाने पर मेरे पास आये और धीमे स्वर में बहुत संकोच के साथ बोले , ” मेरे बेटे की फीस में ३००० रूपये की कमी पड़ रही है , मंदिर में बहुत श्रद्धालु आते हैं सबसे परिचय है , फिर भी संकोच लगता है | हालांकि कुछ लोगों से कहा है पर ईश्वर की इच्छा उनके पास भी इस समय पैसे नहीं हैं , अगर आप मदद कर सके तो … मैं बाद में वापस कर दूँगा ,बच्चे का साल बर्बाद हो जाएगा , २० साल से मंदिर की सेवा में हूँ , यहीं ,मैं आपको जुबान दे रहा हूँ … मैं आप के पैसे अवश्य लौटा दूंगा |
मैंने घर आ कर पैसे निकाल कर उनको दे दिए क्योंकि मुझे उनकी बात में सच्चाई दिखी | मेरे साथ उस समय मेरी पड़ोसन भी गयी थीं , उन्होंने मुझसे कहा ,” कौन लौटाता है , आप उन पैसों को भूल जाइए, मुझे भी उस समय यही लगा कि हो सकता है ऐसा हो , फिर भी मुझे ये तसल्ली थी कि वो पैसे बच्चे की शिक्षा में लगे हैं | इसलिए शाम को मैंने पति को पूरी घटना बताते हुए कहा ,” मैंने एक बच्चे की शिक्षा के लिए वो पैसे दिए हैं , अगर वो नहीं लौटाते हैं तो ठीक है वो उनके बच्चे की शिक्षा में लग गए , अगर लौटा देते हैं तो मैं किसी दूसरे बच्चे की शिक्षा में वो पैसे लगा दूँगी …
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हिन्दू समाज की व्यबस्था जो शायद किसी समय होती हो पर अब तो नहीं ही है … जिसको जैसे माल मिलता है लूटते हैं … धर्म की रक्षा तक के लिए नहीं खड़े होते ये पण्डे जिसके कारण इनकी पारिवारिक व्यवस्था चलती है …