ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

                                       

              

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
ॐ 






 ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः                                                                                  
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा  कश्चिद् दुःखभागभवेत।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 




                                         भारतीय  संस्कृति का यह श्लोक मुझे सदैव प्रभावित करता रहा है। …..
जिसमें प्राणी मात्र की मंगलकामना निहित है।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ,एक का दुःख दूसरे पर प्रभाव डालता  है.इसीलिए  भारतीय दर्शन सदा से सबके सुख की कामना करना सिखाता है। कहीं न कहीं यह “अटूट बंधन “का  यह ब्लॉग बनाने का मेरा उद्देश्य भी यही रहा है। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है ,परन्तु मेरा मानना  है की साहित्य समाज का  दर्पण होने के साथ -साथ समाज को सकारात्मक सोचने पर विवश भी करता है और उसे नयी दिशा देने में उत्प्रेरक का काम भी करता है।साहित्य की भूमिका एक दीपक की तरह होती है , जो किसी भी उद्देश्य से जलाया जाए सब का पथ आलोकित करता है |इस  ब्लॉग में मेरा प्रयास सदैव यही रहेगा की आप को उच्च कोटि की रचनायें , ………. चाहे वो साहित्य आध्यात्म ,धर्म ,सामाजिक सरोकारों से या संस्कृतिक चेतना से  सम्बंधित हो पढ़ने को मिले। इसके अतिरिक्त समस्याओं से घिरे मन को अपनी समस्याओं का सामना करने के लिए सकारात्मक सोंच और नयी दिशा मिले | आशा यहाँ समय व्यतीत करने के बाद आप कुछ शांति ,कुछ उत्साह का अनुभव करेंगे व् आपकी सकारात्मकता  का दायरा विकसित होगा।
                            आइये इस यात्रा में आगे बढें | आप सभी को जीवन में स्वास्थ्य , सफलता और खुशियाँ मिले |

                                                                                  वंदना बाजपेयी