स्त्री या पुरुष दोनों को कहीं न कहीं यह शिकायत रहती है कि अगला उनकी भावनाएं नहीं समझ पा रहा है …… यह भावनाएं कहाँ पर आहत हैं यह समझने के लिए हम दो स्त्री ,दो पुरुष स्वरों को एक साथ लाये हैं ….. आप भी पढ़िए
अटूट बंधन पर आज :भावनाएं (स्त्री और पुरुष की )
एक इच्छा अनकही सी
…. किरण आचार्य
तुम …. दीपक गोस्वामी
तुम मेरे साथ हो …..डिम्पल गौर
ढूढ़ लेते हैं …..डॉ गिरीश चन्द्र पाण्डेय
एक इच्छा अनकही सी
आज फिर गली से निकला
ऊन की फेरी वाला
सुहानें रंगों के गठ्ठर से
चुन ली है मैनें
कुछ रंगों की लच्छियाँ
एक रंग वो भी
तुम्हारी पसंद का
तुम पर खूब फबता है जो
बैठ कर धूप में
पड़ोसन से बतियाते हुए भी
तुम्हारे विचारों में रत
अपने घुटनों पर टिका
हल्के हाथ से हथेली पर लपेट
हुनर से अपनी हथेलियों की
गरमी देकर बना लिए हैं गोले
फंदे फंदे में बुन दिया नेह
तुम्हारी पसंद के रंग का स्वेटर
टोकरी में मेरी पसंद
के रंग का गोला पड़ा
बाट देखता है अपनी बारी की
और मैं सोचती हूँ
अपनी ही पसंद का
क्या बुनूँ
कोई नहीं रोकेगा
कोई कुछ नहीं कहेगा
पर खुद के लिए ही खुद ही,,,
एक हिचक सी
पर मन करता है
कभी तो कोई बुने
मेरी पसंद के रंग के गोले
लो फिर डाल दिए है
नए रंग के फंदे
टोकरी में सबसे नीचे
अब भी पड़ा हैं
मेरी पसंद के रंग का गोला
लेखिका किरन आचार्य
आक्समिक उद्घोषक
आकाशवाणी
चित्तौड़गढ
Add – B-106 प्रतापनगर चित्तौड़गढ (राज.)
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यादों के झरोंखों में देखूं तो
तुम बस तुम ही नजर आते हो
कुछ खोए खोए गुमसुम से
नजर आते हो
कोलाहल के हर शोर में
स्वर तुम्हारे सुनते हैं
रेत के बने घरोंदों में
निशाँ तुम्हारे दीखते हैं
हर विशाल दरख्त की छाया
अहसास तुम्हारा कराती है
तुम हो मेरे आसपास ही
मन में यही आस
जगाती है
——————————-–—————————डिम्पल गौर ‘ अनन्या ‘
बहुत खामियाँ हैं मुझमें,आजा ढूँढ़ लेते हैं
बहुत गुत्थियाँ हैं मुझमें,आजा खोल लेते हैं
बहुत खूबियाँ हैं मुझमें,आजा खोज लेते हैं
बहुत दूरियाँ हैं मुझमें,आजा कम कर लेते हैं
बहुत कमियाँ हैं मुझमें,प्रतीक मान लेते हैं
डीडीहाट पिथोरागढ़ उत्तराखंड
मूल-बगोटी ,चम्पावत
09:57am//07//12//14
रविबार