तन की सुंदरता में आकर्षण, मन की सुंदरता में विश्वास

सुंदर काया
और मोहक रूप क्षणिक आकर्षण पैदा कर सकते हैं लेकिन आंतरिक सुंदरता सामने वाले के
मन को हमेशा के लिए वशीभूत कर लेती है। जो लोग रूप पर टिके रह जाते हैं वे अपनी
आंतरिक क्षमताओं की तलाश नहीं कर पाते। रूप उनके लिए एक ऐसा जाल बन जाता है जिसे
तोडऩा आसान नहीं होता। इसके उलट शरीर से निर्विकार रह कर मन की ताकत पर एकाग्र
रहने वाले लोग महानता के शिखर चढ़ जाते हैं।
 


शक्‍ल से
खूबसूरत लोग दिल से भी खूबसूरत हों
, ऐसा जरूरी नहीं है। आत्‍मा की सुंदरता पाने
के लिए तो व्यक्ति में गुणों का होना जरूरी है। दिखने में बुरा होते हुए भी अगर
कोई गुणवान और प्रतिभावान हो तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है
,
क्योंकि
जीवन की लंबी दौड़ में साँझ की तरह ढलते रूप की नहीं
,
बल्कि सूरज
की तरह अँधेरे में उजालों को रोशन करने वाले गुणों की कद्र होती है। चरि‍त्र अच्‍छा
हो और सीधा-साधा मन हो तो आप सबको जीत सकते है। हमारे संस्कार हमें अंदर से सुंदर
बनाते हैं और इन संस्कारों के बि‍ना तो ऊपरी सुंदरता कि‍सी काम की नहीं है।

मन विचार
करता है और संकल्प लेता है। अच्छे संकल्प मन को शुद्ध करते हैं और शक्तिशाली बनाते
हैं। अच्छे विचार और अच्छे संकल्प मन को लगातार निर्मल करते रहते हैं। मन की
सुंदरता के लिए ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। जिस तरह
 
शरीर तभी तक
सेहतमंद और सुंदर रह सकता है जब तक कि उसके अंदर का मैल बाहर निकलता रहे
,उसी तरह मन
की सुन्दरता के लिए भी यह जरूरी है कि मन का मेल बाहर निकलता रहे. हमारे भीतर बहुत
से नकारात्मक और फ़ालतू विचार जमा हो जाते हैं और प्रायः वही हमारे मन में घूमते
रहते हैं
,जिससे मानसिक सौंदर्य प्रभावित होता है.इसलिए हमें निरंतर कुविचारो से मुक्ति
के लिए प्रयासरत रहना चाहिए.
 
जीवन को
सुंदर बनाने के लिए सुंदर मन की आवश्यकता है। यदि मन पवित्र
,
स्वस्थ्य
तथा मजबूत है तो जीवन स्वयं ही सुंदर और आनंदमय बन जाता हैं। मन शरीर को नियंत्रित
करता है और इस प्रकार हमारे कर्मो को निर्धारित करता है।

हमारा
व्यवहार ही प्रशंसा व निंदा का कारण बनता है। गुरू
,
पीर,
पैगम्बरों
तथा धार्मिक ग्रंथों ने अपना संदेश मन को ही दिया है। मन वाहन में स्टेयरिंग की
भांति है। मन ही मानव को इधर-उधर घुमाता है अथवा सुरक्षित रूप से लक्ष्य पर
 
पहुंचाता
है। जब मन को पथ का ज्ञान हो जाता है
, तब लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य ही हो जाती है।
वाह्य
सौंदर्य भ्रामक है
, वास्तविक सौंदर्य तो आंतरिक है। यही वजह है कि भगवान श्रीराम ने शबरी को
भामिनी कहकर संबोधित किया था। भामिनी का भाव सुंदर स्त्री से है। जबकि यह सभी
जानते हैं कि शबरी की बाहरी नहीं बल्कि आंतरिक सुंदरता की ख्याति है। बाहरी सौंदर्य
तो क्षणभंगुर है। आयु के साथ-साथ ढल जाता है। लेकिन मन की सुंदरता हमेशा बनी रहती
है। प्राचीन काल में सौंदर्य की परिभाषा संतुलित थी लेकिन आधुनिकता के दौर में
इसका पैमाना भी बदल गया है। सभी ने सादा जीवन और उच्च विचार वाली गरिमयी पद्घति को
छोड़कर भौतिकतावादी शैली को गले लगा लिया है। आजकल सुंदरता के मायने ही बदल गए
हैं। वाह्य सुंदरता की होड़ में आंतरिक सुंदरता अपना स्थान खोती जा रही है.तन को
सुन्दर बनाने की दौड़ में मन का सौंदर्य लोग भूलते जा रहे है
,जबकि मन की
सुन्दरता सिर्फ दूसरो के लिए ही नहीं
,बल्कि खुद के लिए भी आनंददायी होती है .

ओमकार मणि त्रिपाठी 



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