मै आज कई वर्षो से हर पार्टी के चुनावी घोषणापत्र को—काफी भावुक तरीके से पढ़ता व सुनता हु लेकिन हर मर्तबा मेरे हिस्से “एक ना खत्म होने वाला विस्फोटक दुख हाथ आता है,और वे दुख मेरे लिये विश्व के प्रथम दुख की तरह है” अर्थात–घोषणापत्र के किसी भी क्रम मे वे लाइन आज तक नही दिखी कि इस देश अर्थात प्रदेश के कुँवारो के लिये,खासकर जो विषम आर्थिक तंगी की वजह से”स्त्री-पुरुष के अश्वमेध मिलन से वंचित है -उन पिड़ित कुँवारो को हमारी सरकार बनते ही,सर्वप्रथम उन्हे एक योग्य व सुशील कन्या की व्यवस्था कर वैवाहिक जीवन से आहलादित किया जायेगा”।
अगर एैसा संभव न हुआ तो जनपद स्तर पर किन्ही अन्य देशो से या यहां न मिलने की सुरत मे बाहरी गरीब देशो की कुँवारी लड़कियो का आयात कर उनकी गरीबी दुर करने के साथ ही समुचित सरकारी अनुदान की व्यवस्था के साथ ही एक हफ्ते का निःशुल्क हनिमून पैकेज दे उन्हे पती-पत्नी की मुख्यधारा मे लाने का अलौकिक प्रयास करेगी।
अब इस बार तो किसी तरह बस दुखी मन से मतदान कर फिर किसी अगले चुनाव में “ये राष्ट्रीय दुख लिये इंतजार करुंगा-—शायद किसी पार्टी या नेता को हमारे इस बड़े विकराल और असह्य कुँवारेपन के दुख का आभास हो और वे इस क्रांतिकारी पिड़ा को अपने चुनावी घोषणापत्र में जगह दे हमारे इस विशाल बंजर हृदय में दुल्हन रुपी सुरत की हरितक्रांति ला इस पिड़ा का नैसर्गिक निदान करे”।
रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर।