सूर्योपासना का महापर्व छठ – धार्मिक वैज्ञानिक व् सामाजिक महत्व
सूर्योपासना का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है |षष्ठी को मनाये जाने के कारण इसे छठ कहते हैं | हालांकि ये पर्व चार दिन चतुर्थी से ले कर सप्तमी तक चलता है | परन्तु इसका मुख्य दिन षष्ठी ही होता है | छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है | पहली बार चैत्र व् दूसरी बार कार्तिक में | कार्तिक में मनाये जाने वाले छठ को कार्तिकी छठ भी कहते हैं | वैसे मूलत : यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है | परन्तु धीरे – धीरे अपनी सरहदों से निकलकर यह पूरे भारत व् विश्व के कई देशों में मनाया जाने लगा हैं | लोक आस्था के महापर्व छठ को स्त्री पुरुष सामान रूप से करते हैं | व्रत करते हैं और ढलते व् उगते सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं | इस पर्व में बिहार उत्तर प्रदेश व् देश के अन्य शहरों में नदी तालाब पोखरों के घाटों की विशेष सफाई की जाती है | ताकि छठ पूजा के व्रती सुविधापूर्वक उपासना कर सके व् सूर्य को अर्घ्य दे सके | हर घाट पर व्रती हाथ में सूप व् सूर्यदेव को अर्पित किये जाने वाले सामान लेकर उत्साह के साथ दिखाई पड़ते हैं | छठ मैया के मनभावन भक्ति पूर्ण गीतों से सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है | मान्यता है आज के दिन छठ मैया से जो भी मांगों वो मिल जाता है |घाट में उपस्थित हर व्यक्ति अपने ह्रदय में आस्था लेकर छठ मैया से अपनी मनोकामना को पूर्ण करने की प्रार्थना करता है | सूर्योपासना का महापर्व छठ छठ मुख्यत : सूर्य उपासना का पर्व है | सूर्य हिन्दुओं के प्रमुख देवता है | सूर्य ही वो देवता हैं जिनका हम साक्षात दर्शन कर सकते हैं | सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ ही शुरू हो गयी थी | सूर्य पूजा का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में मिलता है | उपनिषद व् हिन्दुओं के अन्य धर्म ग्रंथों में भी सूर्य को आदि देव मान कर उनकी उपासना का वर्णन हैं | धीरे – धीरे सूर्य की कल्पना मानवाकार के रूपमें होने लगी | पुराणों के समय में सूर्य की मूर्ति की पूजा होने लगी | व् देश के अनेकों भागों में सूर्य मंदिर बने | पौराणिक काल में सूर्य की किरणों के आरोग्यकारी गुणों की खोज हुई | पाया गया की कुछ खास दिनों में सूर्य की ये आरोग्यकारी किरणे प्रचुर मात्र में निकलती हैं | संभवत : वो षष्ठी रही हो और तभी से छठ एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा हो | छठ के साथ एक ख़ास बात और है इसमें सूर्य के साथ – साथ उसकी शक्ति की भी अराधना होती है | कहा जाता है सूर्य की शक्ति उसकी पत्नियों उषा व् प्रत्युषा में निहित है | छठ में सूर्य के साथ – साथ उसकी दोनों शक्तियों की भी संयुक्त रूपसे उपासना होती है | प्रात: काल में सूर्य की पहली पत्नी ऊषा व् सांय काल में सूर्य की दूसरी पत्नी प्रत्युषा को अर्घ्य दे कर नमन किया जाता है | किस प्रकार मनाया जाता है छठ छठ चार दिन का पर्व है | यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू हो कर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है | इस दौरान व्रती ३६ घंटे का व्रत रखते हैं | चतुर्थी (नहाय खाय ) ये छठ पूजा का पहला दिन है | इस दिन घर की साफ़ सफाई कर के उसे पवित्र बनाया जाता है | फिर व्रती स्नान करके शुद्ध शाकाहारी ढंग से बनाया हुआ भोजन ग्रहण करते हैं | इसमें सेंधा नमक से बनी हुई कद्दू की सब्जी व् अरवा चावल होते हैं | घर के अन्य लोग व्रती के बाद ही भोजन करते हैं | पंचमी ( लोखंडा और खरना ) इस दिन पूरे दिन का उपवास होता है | शाम को प्रसाद लगाया जाता है | जिसमें घी चुपड़ी रोटी , गन्ने के रस में बनी हुई चावल की खीर का भोग लगाया जाता हैं | प्रसाद लेने के लिए आस – पास के लोगों को भी बुलाया जाता है | व्रती एक बार भोजन ग्रहण करते हैं | षष्ठी (संध्या अर्घ्य ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या अर्घ्य देने का विधान है | इस दिन प्रसाद बनाया जाता है | प्रसाद में ठेकुये व् चावल के आते के लड्डू बनाए जाते हैं | इसके आलावा छठ मैया को अर्पित करने के लिए मौसमी फल व् सांचा भी लिया जाता है | सभी सामन को बांस की बनी एक टोकरी में सूप में रखा जाता है | व्रती के साथ – साथ उसके परिवार के लोग भी जाते हैं | सूर्य देव को दूध व् जल का अर्घ्य दिया जाता है | अर्घ्य सामूहिक रूप से दिया जाता है | जो अप्रतिम दृश्य उत्पन्न करता है | सूप की सामग्री छठ मैया को समर्पित की जाती है | सप्तमी (परना , ऊषा अर्घ्य ) सप्तमी को ऊषा अर्घ्य या उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है | यह सुबह के समय बिलकुल संध्या अर्घ्य की तरह होता है | व्रती वहीँ अर्घ्य देते हैं जहाँ उन्होंने एक दिन पहले अर्घ्य दिया होता है |वहीँ प्रसाद वितरण होता है | व्रती व्रत खोलते हैं जिसे परना या पारण भी कहा जाता है | क्यों विशेष है सूर्योपासना का महापर्व छठ छठ व्रत की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित है … यह एक कठिन व्रत है | जिसे पुरुष व् महिलाएं दोनों कर सकते हैं | पर मुख्यत : महिलाएं हीं इस व्रत को करती हैं | व्रत में साफ़ – सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है | जिस घर में कोई व्रती है वहां मांस , लहसुन , प्याज़ नहीं पक सकता | व्रत के दौरान सात्विक आचरण ही करना पड़ता है | व्रती को बिस्तर का त्याग करना पड़ता है | फर्श पर कम्बल या चादर के सहारे ही रात बितानी पड़ती है | अर्घ्य देते समय नए कपडे पहनने होते हैं | कपडे सिले नहीं होने चाहिए | इसलिए महिलाएं साड़ी व् पुरुष धोती पहनते हैं | एक बार संकल्प लेने के बाद यह व्रत तब तक करना होता है जब तक अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इस व्रत … Read more