पुस्तक समीक्षा -भगवतीचरण वर्मा स्मृति : समकालीन कहानी संग्रह
सीमा वशिष्ठ जौहरी जो कि वरिष्ठ साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा की पोती हैं, ने अपने दादाजी भगवतीचरण वर्मा की स्मृति में समकालीन कहानी संग्रह का संपादन कर पुस्तक भगवतीचरण वर्मा स्मृति : समकालीन कहानी संग्रह का प्रकाशन संस्कृति, चेन्नई से करवाया है। सीमा जौहरी बाल साहित्य के क्षेत्र में लेखन में सक्रीय हैं। सीमा वशिष्ठ जौहरी ने इस संकलन की कहानियों का चयन और संपादन बड़ी कुशलता से किया हैं। इस संग्रह में देश-विदेश के सोलह कथाकार शामिल हैं। संग्रह के 16 कथाकारों में भगवतीचरण वर्मा, ममता कालिया, ज़किया ज़ुबेरी, सूर्यबाला, चित्रा मुद्गल, तेजेन्द्र शर्मा, डॉ. हंसा दीप, सुधा ओम ढींगरा, अलका सरावगी, प्रहलाद श्रीमाली जैसे हिंदी के प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों के साथ नयी और उभरते कथाकारों की कहानियाँ भी सम्मिलित हैं। इस संग्रह की कहानियाँ पाठकों के भीतर नए चिंतन, नई दृष्टि की चमक पैदा करती हैं। भगवतीचरण वर्मा स्मृति : समकालीन कहानी संग्रह सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कथाकार भगवतीचरण वर्मा की वसीयत कहानी बेहद रोचक है। कहानी सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि में लिखी गई है। कहानी में संवाद चुटीले और मार्मिक हैं। इस कहानी के द्वारा भगवती चरण वर्मा ने समाज की आधुनिक व्यवस्था पर करारा कटाक्ष किया गया है। इस कहानी में हास्य है, व्यंग्य और मक्कारी से भरे चरित्र हैं। भगवतीचरण वर्मा की किस्सागोई का शिल्प अनूठा है। भगवतीचरण वर्मा की कहानियों में घटनाएँ, स्थितियाँ और पात्रों के हावभाव साकार हो उठाते हैं। वसीयत कहानी एक कालजयी रचना है। भगवतीचरण वर्मा की रचनाएँ युगीन विसंगतियों पर प्रहार करते हुए नवयुग के सृजन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने कहानी दो गज़ की दूरी कोरोना काल की त्रासदी को केंद्र में रख कर लिखी है। कहानी में सहजता और सरलता है। यह नारी अस्मिता की कहानी है। यहां समिधा को सशक्त किरदार में दर्शाया गया है। ममता कालिया ने समिधा की सूक्ष्म मनोवृत्तियों, जीवन की धड़कनों, मन में चलने वाली उथल पुथल को इस कहानी में सहजता से अभिव्यक्त किया है। ममता कालिया विडम्बना के सहारे आज के जीवन की अर्थहीनता को तलाशती हैं। इस कहानी में संबंधों के नाम पर समिधा का पति वरुण झूठ, धोखा, अविश्वास, छल-कपट और बनावटीपन का मुखौटा लगाये संबंधों को जीना चाहता है। ज़कीया ज़ुबैरी की गरीब तो कई बार मरता है अमीना की कहानी है। ज़किया जुबैरी स्त्रियों की ज़िन्दगी में आहिस्ता से दाख़िल होकर उनके मन की परतों को खोलती हैं। भीतरी तहों में दबे सच को सामने लाती हैं। ज़किया जुबैरी की कहानियाँ उनकी बेचैनी को शब्द देती है। ज़कीया ज़ुबैरी हिन्दी एवं उर्दू दोनों भाषाओं में समान अधिकार रखती हैं। ज़कीया ज़ुबैरी की भाषा में गंगा जमुनी तहज़ीब की लज़्ज़त महसूस होती है। अमीना का विवाह समी मियाँ से होता है। अमीना का प्रत्येक दिन समी मियाँ की चाकरी में गुजर जाता है। अमीना चार बच्चों की माँ बन जाती है। समी मियाँ बिज़नेस के सिलसिले में एक महीने के लिए बाहर चले जाते हैं, तब अकेलेपन से बचने के लिए अमीना सत्रह साल की नूराँ को अपने पास बुला लेती है। जब समी मियाँ वापस लौट कर आते है, तब एक दिन सुबह अमीना अपने पति समी मियाँ को उनके बेड रूम में जाकर देखती है कि नूराँ समी मियाँ के बिस्तर पर सोई हुई है। अमीना और नूराँ दोनों चौंक जाती हैं। सूर्यबाला की गौरा गुनवन्ती एक अनाथ लड़की की कहानी है जो अपनी ताई जी के यहाँ रहती है। सूर्यबाला अपनी कहानियों में व्यंग्य का प्रमुखता से प्रयोग करती हैं। सूर्यबाला की कहानियों में यथार्थवादी जीवन का सटीक चित्रण है। इनके कथा साहित्य में स्त्री के कई रूप दिखाई देते हैं। सूर्यबाला के नारी पात्र पुरुष से अधिक ईमानदार, व्यवहारिक, साहसी और कर्मठ दिखाई देती हैं। कहानीकार पाठकों को समकालीन यथार्थ से परिचित कराती हैं और उसके कई पक्षों के प्रति सचेत भी करती हैं। लेखिका जीवन-मूल्यों को विशेष महत्व देती हैं, इसलिए इनकी इस कहानी की मुख्य पात्र गौरा दुःख, अभाव, भय के बीच जीते हुए भी साहस के साथ उनका सामना करते हुए जीवन में सुकुन की तलाश कर ही लेती है। उसमें विद्रोह की भावना कहीं नहीं है। कथाकार चित्रा मुद्गल की कहानी ताशमहल पुरुष मानसिकता और माँ की ममता को अभिव्यक्त करने वाली है। यह एक परिवार की कहानी है, जिसमें संबंध बनते हैं, फिर बिगड़ते है और अंत में ताश के पत्तों की तरह ढह जाते हैं। माता-पिता के झगड़ों में बच्चों पर क्या गुजरती है? इस प्रश्न के उत्तर बारे में केवल माँ ही सोच सकती है। कहानी में बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण भी दिखता है। यह एक सशक्त कहानी है जिसमें कथ्य का निर्वाह कुशलतापूर्वक किया गया है। कथाकार ने इस कहानी का गठन बहुत ही बेजोड़ ढंग से प्रस्तुत किया है। रीता सिंह एक ऐसी कथाकार है जो मानवीय स्थितियों और सम्बन्धों को यथार्थ की कलम से उकेरती है और वे भावनाओं को गढ़ना जानती हैं। लेखिका के पास गहरी मनोवैज्ञानिक पकड़ है। साँझ की पीड़ा एक अकेली वृद्ध महिला विमला देवी की कहानी है जो बनारस में अपने घर में रहती है। एक दिन विमला देवी की बेटी और उनका दामाद विमला देवी के यहाँ आकर बनारस के उस घर को बेच देते हैं और विमला देवी को अपने साथ चंडीगढ़ लेकर चले जाते हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद ही बेटी और दामाद विमला देवी के साथ बुरा बर्ताव करते हैं, तब एक दिन विमला देवी दिल्ली में अपने भाई रघुवीर के घर चली जाती है। रघुवीर के घर में भी विमला देवी के लिए जगह नहीं थी, तब रघुवीर विमला देवी को एक विधवाश्रम में छोड़ कर आ जाते हैं। चार दिन बाद ही रघुवीर के पास विधवाश्रम के संचालक का फोन आता है कि विमला देवी को दिल का दौरा पड़ा है। रघुवीर जब आश्रम पहुँचते हैं, तब तक विमला देवी का निधन हो चुका होता है। तेजेन्द्र शर्मा ने बुजुर्गों के अकेलेपन को खिड़की कहानी के द्वारा बहुत मार्मिकता के साथ बयां किया है। कहानी के नायक जो कि साठ वर्ष के हैं और अब परिवार में अकेले रह गए हैं, की ड्यूटी रेलवे की इन्क्वारी खिड़की पर होती है। वे इस इन्क्वारी खिड़की पर लोगों के साथ संवाद स्थापित कर के, उनकी सहायता कर … Read more