श्री राम के जीवन मूल्यों की धरोहर बच्चों को सौंपती -श्री राम कथामृतम 

श्री राम कथामृतम

      “ राम तुम्हारा चरित स्वंय ही काव्य है,   कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है।“                        मैथिली शरण गुप्त    दशरथ पुत्र राम, कौसल्या नंदन राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम .. राम एक छोटा सा नाम जो अपने आप में अखिल ब्रह्मांड को समेटे हुए है| हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार राम विष्णु का अवतार हैं | अवतार धरती पर तब ही अवतरित नहीं होते जब पाप बढ़ जाते हैं | अवतार के जन्म के पीछे सिर्फ मानव समाज का उद्धार ही नहीं बल्कि इसके पीछे उद्देश्य यह भी होता है कि साधारण मानव के रूप में जन्म ले कर उसे यह सिखा  सकें कि कि उसमें वो क्षमता है कि विपरीत परिस्थितियों का सामना कर ना सिर्फ हर बाधा पार कर सकता है अपितु  अपने अंदर ईशरत्व के गुण भी  विकसित कर सकता है | जन -जन के मन में व्याप्त राम हमारे धर्म का, इतिहास का हिस्सा है | कुछ लोग राम कथा को मिथक मानते हैं | फिर भी सोचने वाली बात है कि इतिहास हो या मिथक समकालीन वाल्मीकि से लेकर आज तक ना जाने कितनी कलमों ने, कितनी भाषाओं और कितनी शैलियों में, कितने क्षेपकों-रूपकों के साथ  राम कथा से अपनी कलम को पुनीत किया है |  सवाल ये उठता है कि, “आखिर क्या कारण है कि इतने युग बीत जाने के बाद भी राम कथा सतत प्रवाहमान है | इसका उत्तर एक ही है ..  श्री राम का चरित्र, जो सिखाता है कि एक साधारण मानव का चरित्र जीते हुए भी व्यक्ति कैसे ईश्वरीय हो जाता है | इतिहास की इस धरोहर को बार -बार कह कर सुन कर, पढ़कर हम उन गुणों को अपने वंशजों में पुष्पित -पल्लवित करना चाहते हैं | आज तक राम के चरित्र को लिखने में दो तरह की दृष्टियों का प्रयोग होता  रहा है | एक तार्किक दृष्टि दूसरी  भक्त की दृष्टि | तर्क और बौद्धिकता की दृष्टि किसी चरित्र को समझने के लिए जितनी जरूरी है, भक्त की दृष्टि उन गुणों को ग्रहण करने के लिए उतनी ही जरूरी है | भक्त की दृष्टि से लिखी गई  राम चरित मानस की लोकप्रियता इस बात की पुष्टि करती है |  घर -घर पढ़ी जाने वाली राम चरित मानस ने हमारे भारतीय परिवेश में धैर्य, सहनशीलता, क्षमा, परिवार में सामंजस्य आदि गुण तिरोहित होते रहे हैं | श्री राम के जीवन मूल्यों की धरोहर बच्चों को सौंपती -श्री राम कथामृतम  समय बदला और  इंटरनेट की खिड़की से पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति भी देश में आई | ग्लोबल विलेज के लिए ये जरूरी भी है और इसके कई सकारात्मक पहलू भी हैं पर “माता -पिता का आदर करो” के  स्थान पर “पापा डोन्ट प्रीच” बच्चों के सर चढ़ कर बोलने लगा | बड़ों का आदर कम हुआ, परिवार बिखरने लगे, बच्चों में असहनशीलता, अवसाद, अंकुरित होने लगे | घबराए माता-पिता ने संस्कार देने के लिए राम कथाओं की शरण लेनी चाही तो उनका नितांत अभाव दिखा | ऐसे में कि रण सिंह जी सुचिन्तित योजना के तहत बच्चों के लिए श्री राम कथामृतम ले कर आईं |   अपनी संस्कृति से बच्चों को जोड़ने के अभिनव प्रयास और सुंदर छंदबद्ध गेयता से समृद्ध इस पुस्तक को केन्द्रीय हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश के बाल साहित्य को दिए जाने वाले 2020 के सुर पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है |   चैत मास की नवमी तिथि को  जन्म लिए थे राम  कथा सुनाती हूँ मैं उनकी  जपकर उनका नाम     अपने आत्मकथ्य में वो कहती हैं कि “कौन बनेगा करोंणपति” देखते हुए उन्हें यह अहसास हुआ कि राम के जीवन से संबंधित छोटे- छोटे प्रश्नों के उत्तर भी जब लोग नहीं बता पाते हैं तो राम के गुणों को अपने अंदर आत्मसात कैसे कर पाएंगे | उन्होंने एक साहित्यकार के तौर पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बच्चों को राम के चरित्र व गुणों से अवगत कराने का मन बनाया | क्योंकि बच्चे कविता को जल्दी याद कर लेते हैं इसलिए ये कथा उन्होंने बाल खंडकाव्य के रूप में प्रस्तुत की है |जिसमें 16 कथा प्रसंग  प्रांजल भाषा में लिखे गए हैं |    बाल रूप श्री राम                गुरुकुल में बच्चे कैसे रहते थे | मित्रता में राजा और -प्रजा बाधक नहीं थी | ये पढ़कर बच्चे समझ सकते हैं कि वो स्कूल में अपने मित्रों के साथ कैसा व्यवहार करें | साथ ही किसी से मित्रता करने का यह अर्थ नहीं है कि आप उसके जैसे बन जाए | हम अपने  गुणों और अपनी विशेष प्रतिभा के साथ भी मित्रता निभा सकते हैं ..    राजा -प्रजा सभी के बच्चे  रहते वहाँ समान  कठिन परिश्रम से करते थे  प्राप्त सभी हर ज्ञान  …… बने राम निषाद गुरुकुल में  अच्छे -सच्चे मित्र  उन दोनों का ही अपना था  सुंदर सहज चरित्र    ताड़का वध  व अहिल्या उद्धार    धोखे से इन्द्र द्वारा छली गई पति द्वारा शापित अहिल्या का राम उद्धार करते हैं | राम उस स्त्री के प्रति संवेदना रखने की शिक्षा देते हैं जिसका शीलहरण हुआ |    छूए राम ज्यों ही पत्थर को  शीला बनी त्यों नार  पतित पावन रामचन्द्र ने  दिया उन्हें भी तार    राम -सिया और लखन का वन गमन  राम, पिता की आज्ञा  मान  कर वन चल देते हैं | उस समय तार्किक मन  ये कह  रहा होता है कि राम के साथ गलत हो रहा है | परंतु राम के राम रूप में स्थापित होने में इस वन गमन का कितना बड़ा योगदान है ये हम  सभी जानते हैं | जो परिस्थितियाँ आज हमें कठिन दिख रहीं हैं, हो सकता है उनका हमारे जीवन को सफल आकार देने में बहुत योगदान हो |    खुशी -खुशी आदेश जनक का राम किये स्वीकार  कौशल्या से आज्ञा  लेने  आए हो तैयार    भरत मिलाप   आज हम जिस रामराज्य की बात करते हैं हैं वो भाई -भाई के प्रेम की नींव पर ही टिक सकता है | जहाँ निजी स्वार्थ के ऊपर आपसी प्रेम हो, देशभक्ति की भावना हो | मान  राम की बात भरत ने  रखी एक फिर शर्त  राजा होंगे राम आप ही  क्योंकि आप समर्थ    सीता हरण   रावण द्वारा सीता का हरण एक दुखद प्रसंग है |फिर भी वो … Read more