स्त्री संघर्षों का जीवंत दस्तावेज़: “फरिश्ते निकले’
अनुभव अपने आप में जीवंत शब्द है, जो सम्पूर्ण जीवन को गहरई से जीये जाने का निचोड़ है। एक रचनाकार अपने अनुभव के ही आधार पर कोई रचना रचता है,चाहे वे राजनीतिक, समाजिक, आर्थिक विषमातओं की ऊपज हों, या फिर निजी दुख की अविव्यक्ति। मैत्रैयी पुष्पा ऐसी ही एकरचनाकार हैं जिन्होनें स्त्रियों से जुडे मुद्दे शोषण, बलात्कार, समाज की कलुषित मन्यातओं में जकड़ी स्त्री के जीवंत चित्र को अपनी रचनाओं में उकेरने का प्रयास किया है। ‘फरिश्ते निकले‘ मैत्रेयी पुष्पा द्वरा रचित ऐसा ही एक नया उपन्यास है जो पुरुष द्वरा नियंत्रित पितृसतात्मक समाज में रुढ़ मन्यताओं का शिकार होती बेला बहू के संघषों की कहानी है। इस उपन्यास कि नायिका बेला बहू समाज के क्रूर सामंती व्यवस्था के तहत गरीबी और पितृविहीन होने के कारण बाल- विवाह और अनमेल- विवाह की भेंट चढ़ जाती है। विवाह के उपरांत बेला बहू का संघर्ष शुरु होकर डाकू के गिरोह में शामिल होने के बाद नैतिकता कि भावना से स्कूल खोलती है। आस-पास के कुछ बच्चें दो दिन पाठशाला में आकर मानवता की भावना को ग्रहण करें और समाज से शोषण को मिटाने के लिये नैतिकता का मार्ग अपनायें। इस तरह बेला बहू एक फरिशता बनकर आगे आने वाली पीढ़ी को समाज की कलुषित मन्याताओं से मुक्त कराकर मानवीय गरिमा का संचार कर उन्हें सही राह पर चलने कि प्रेरणा देती है। इस तरह बेला बहू विवाह के पश्चात और डाकू के गिरोह में शामिल होने के बीच कई संघर्षों का सामना अदम्य जिजीविषा के करती हुई एक निडर स्त्री की छवि को भी अंकित करती है। हमारा देश जहाँ विकास की अंधी दौड़ में आगे बढ़ रहा है वही कुछऐसे गाँव और अंचल भी हैं जहाँ अभी तक विकास के मायने तक पता नहीं हैं अर्थात विकास की चर्चा भी उनलोगों तक नहीं पहुँची है। ऐसे ही गाँव में जन्मी बेला अर्थात बेला बहू उपन्यास के कथा का आरम्भ पितृविहिन बालिका जिसने अभी- अभी अपने पिता को खो दिया है,उसकी माँ पर घर कीपूरी जिम्मेदारी मुँह बाये खड़ी है। बेला की माँ किसी तरह अपना और अपनी बेटी का पालन-पोषण करती है। शुगर सिंह नाम का अधेड़ व्यक्ति जब उन माँ और बेटी को आर्थिक लाभ पहुँचाना शुरु करता है, इसके पीछे उसकी मंशा तब समझ में आती है जब बेला के साथ उसकी सगाई हो जती है।इस तरह ग्यारह वर्ष की बेला का विवाह अधेड़ उम्र के शुगर सिंह के साथ हो जाता है। ना जाने कितने अनमेल विवाह के किस्सों को याद करती बेला ससुराल में निरंतर पति की हवस का शिकार होती है।अन्य लोगों के अनमेल विवाह के कृत्यों को दर्शाती बेला बहू के बारे में स्वय मैत्रैयी जी भी कहती हैं-” बेला बहू तुम्हारा शुक्रियाकि कितनी औरतों की त्रासद कथाएँ तुमने याद दिला दी।” ” ससुराल में बेला बहू पति के निरंतर हवस का शिकार होती रही धीरे-धीरे सुगर सिंह की नपुंसकता का पता बेला को लग जाता है क्योकि विवाह के चार वर्षोंबाद भी संतान का ना उत्पन्न होना और मेडिकल रिपोर्ट की जाँच में बेला के स्वस्थ और उर्वरा होने का प्रमाण मिल जाता है और शुगर सिंह की नपुंसकता बेला बहू के सामने आ जाती है।” विडम्बना तो देखिये गाँव के लोग और स्वयं सुगर सिंह भी बेला बहू कोही बाँझ मानते हैं। बेला बहू येह सोचती है कि – ” उम्र के जिस पड़।व से वह गुजर रही है उसकेउम्र के लड़कियों के हाथ अभी तक पीले नहीं हुये वहीं उसपर बाँझ का आरोप गले में तौंककि तरह डाला जा रहा है।”अजीब विडम्बना है ना पुरुषों के कमियों की सजा भी स्त्री को ही भूगतनी पड़ती है। इन सब सवालों से टकराती हुयी मैत्रैयी पुष्पा समाज की वास्त्विक स्थितियों से हमारा साक्षत्कार कराती हैं। “पति और गाँव के लोगों द्वरा उपेक्षित होने पर वह अपनी ज़िंद्गी को नये सिरे से जीने के लिये भरत सिंह के यहाँ जाकर रहती है, पर मुसीबतें वहाँ भी उसका साथ नहीं छोड़्ती हैं,मानों परछायी की तरह उसके साथ-साथ चलती हैं।” “भरत सिंह का चरित्र गांव और कस्बों में उभरते उन दबंग नये राजनीतिक व्यवसायियों का है जो अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिये अनैतिकता के किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।”5 बेला भरत सिंह और उसके भाइयों द्वारा निरंतर उनकी हवस का शिकार बनती जाती है। और अंत में आक्रामक रवैया अपनाते हुये भरत सिंह के भाइयों को आग के हवालेकर देती है। वह पूरे साहस के साथ अपने अत्याचार का बदला भी लेती है और जेल जाने से भी नहीं डरती। जेल में उसकी मुलाकात डाकू फूलन देवी से होती है औ रइस तरह दोनो के बीच बहनापा रिश्ता कायम हो जाता है शायद दोनों के ही दुख एक से हैं। बचपन के दोस्त बलबीर द्वारा जेल से छूटे जाने पर पर वह कुख्यात डाकू अजय सिंह के गिरोह में शामिल होती है। डाकू की गिरोह में बेला बहू का शामिल होना पाठकों को थोड़। अचम्भितज़रुर करता है पर बेला बहू का उद्देश्य महज़ डकू बनकर लुटपाट करना नहीं है। बल्कि वह उन लोगों का फरिश्ता बनकर साथ निभाती है, उसी की तरह सतालोलुप हवस प्रेमियों और कम उम्र में ही यौन शोषण का शिकार बनकर परिस्थितीवश गलत पगडंडियों पर चलनें को मज़बुर होतें हैं। बेला बहू के डाकू बनकर भी फरिश्ता बने रहने के उपरांत भी उपन्यास कि कहानी खत्म नहीं हो जाती बल्कि मैत्रैयी जीने कुछ और घटनाओं के ताने बाने को भी पिरोया है।जिनमें उजाला और वीर सिंह केप्रेम प्रसंग का चित्रण मर्मिक्ता से ओतप्रोत है। उजाला लोहापीटा की बेटी है जबकी वीर सिंह अमीर घराने में पला बढा। वीर सिंह के पिता को जब इस प्रेम प्रसंग का पता चलता है तो वह उजाला के मौत की साजिश तक रच डालतें हैं पर बेला बहू के सद्प्रयासों से उजाला मौत के भंवर से बाहर निकल आती है। कितनी अजीब बात है ना पुरुष प्रधान समाज स्त्री का जमकर शोषण करता है और उसे गुलाम बने रहने पर मज़बूर करता है। इस सम्बंध में रोहिणी अग्रवाल का कहना है-“यौन शोषण पुरुष की मानसिक विकृति है या पितृसतात्मक व्यवस्था के पक्षपाती तंत्र द्वारा पुरुष को मिला अभयदान? वह स्त्री को गुलाम बनाये रखने का षडयंत्र है या जिसकी लाठी उसकी … Read more