धनश्री

धनश्री

दीपावली का त्योहार आते ही महिलाओं की जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं |धन की देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर का कोन -कोना साफ करना, ढेर सारा सामान खरीदना और पकवान बनाना |ऐसे में अगर स्वास्थ्य साथ ना दे तो इतना काम संभालना मुश्किल होता है | न कर सकने  की स्थिति में मन में एक अपराध बोध रहता है | ऐसी ही सतही से गुजरती नंदनी को दीपावली से ठीक पहले धनश्री मिलती है पर एक अलग रूप में | आइए पढ़ें घरेलू कामों और स्त्री के श्रम के महत्व को बताती कहानी…. धनश्री  सितंबर का माह खत्म होनें को था, और चारों तरफ गुलाबी धूप का बसेरा शुरू हो चुका था। त्यौहारों का मौसम भी हर दुकान चौराहे पर रौनक़ बड़ा रहा था। बाज़ार में नये नये सामान की दुकानें  सजने लगीं थी। नई सजावटी सामान का अंबार हर साल खुशियों की सौग़ात लिए बाज़ार में चमक रहा था। साल भर के त्यौहार दीपावली आने की फैलती खुशबु छुटपुट पटाखों के फूटने से पता पड़ने लगी थी । उस दिन  लगभग बीस दिन बाद नंदनी बिस्तर से उठी थी। हाथ की हड्डी के फ़्रैक्चर के साथ पैर में भी मौच आ जाने से उसने  जो बिस्तर पकड़ा था वो उस साल के पूरे बीस बाइस दिन ले गया था ।  नंदनी अपने घर की छत पर पहले की तरह  चाय का बड़ा कप लिए धीरे धीरे  घूम रही थी यह सोचते हुए कि माह के आख़िर में ही दीपावली है। आपरेशन के बाद ज़्यादा भारी काम के लिए डॉ ने मना किया था। घर के बहुत से छोटे बड़े काम अभी भी छूटे थे। पिछले साल से ही पुताई करवाने का सोच रही थी। इसबार दीपावली की पुताई तो करवाना ही थी,सोचाथा  भले पूजा के कमरे और चौके में हो जाये ।यह भी सोचा था कि पुराना सामान भी कबाड़ी को दे देना है तभी नये सामान की खरीदी  करेगी और सबके मन पसंद के अनुसार घर की सजावट करके सबको खुश कर देगी । मगर हाय रे क़िस्मत  उसी उठा पटक में स्टूल से गिरी थी की उल्टे हाथ में फैक्चर हो गया और पैर अलग मौच खा गया था।तब तक तो घर फैल चुका था और उसके  गिरने से  सारे काम आधे अधूरे ही रह गये थे।  अब तो दीपावली को कम दिन ही रहे उनको पूरा करना ही होगा मगर किसी की मदद लेनी होगी अब अकेले नहीं हो पायेगा इस बार चंद्रा से मदद माँगूँगी कि तभी ज़ोर से दरवाज़े पर घर की घन्टी बजी …टिन…टिन …टिन … अरे !…कौन है जो इतनी सुबह घन्टी पर घन्टी बजा रहा है ,नंदनी सोच में थी कि बड़ी बेटी ने दरवाज़ा खोला और आवाज़ दी “मम्मा आंटी आई है ….” “कौन सी आंटी ?” “अरे मैडम… मैं हूँ ! हँसते हुए काम वाली चंद्रा नंदिनी के सामने जा खड़ी हुई।” “अरे !आज इतनी  सुबह जल्दी आ गई ?” “मुझे छुट्टी चाहिए…….  मैडम “ “क्यों ?…  तू सुबह से यह छुट्टी का क्या राग आलाप करने लगी, क्यों चाहिए छुट्टी?” “ पिछले सप्ताह भी एक टाइम की तो छुट्टी ली थी। फिर पिछले महीने भी  छुट्टी लेकर  अपने ससुराल घर गई थी ?” नंदिनी के सवाल पर चंद्रा ने दुखी सा मुँह बनाया और बोलने लगी “मैडम… मेरी नानी बहुत बीमार है, आज मरी कि कल ऐसा चल रहा है, और सात दिन बाद मेरे इकलौते भाई की सगाई भी है।” फिर  चंद्रा थोड़ा दयनीय होकर बोली “दिवाली बाद देव उठने पर ही शादी होगी माँ ने मुझे काम में मदद के लिए ही बुलाया है।  उनके पास भी कोई नहीं है।।पहले सगाई की फिर दिपावली  फिर शादी की तैयारीकरना है, और नानी की खराब तबीयत के साथ सब काम  माँ नहीं  सँभाल  पायेगी।” चंद्रा कुछ लड़ियाते हुए बोली। “ फिर राखी के बाद अब जा रही हूँ अपने माँ के घर।” थोड़ी देर रुककर चंद्रा तेज़ आवाज़  में और अधिकार के साथ फिर बोली “देखो आप अब ठीक हो जब आपकी तबीयत ख़राब थी तो मैंने  भी छुट्टी नहीं ली थी।” मानों एहसान जता रही हो कि अब तो छुट्टी जाकर ही रहेगी। “हाँ ना मैडम  …” एक मिनिट रुककर वो नंदनी के चेहरे के हाव भाव देख पढ़ती रही फिर बोली “एक बात और कुछ पैसे भी एडवांस  चाहिए; घर जाकर इस बार दीवाली पर पायलें ख़रीदना हैं” इतनी बातें नंदनी को सुनाकर चंद्रा फिर से उसका मुँह देखने लगती है। “अच्छा !..कब जाना है तुझे ?” नन्दनी के सवाल पर चंद्रा ने झट उत्तर दिया “आज ही जाना है शाम को , पूरे पंद्रह दिन… धीमे से कहते हुए चंद्रा काम करने लगी ।” नंदनी स्तब्ध सी हो गई उसके सोचे काम का अब क्या होगा? सोचने लगी । “अरे मैं किसी को देखती हूँ  कोई और मेरी जगह काम कर दे ,आप चिन्ता मत करो मैडम”  चंद्रा ने हंसते हुए कहा । नंदनी स्वयं को  लाचार महसूस करते हुए अंदर से खूब परेशान हो गई थी पर बिना ना-नुकुर करते हुए बुदबुदाई अब जो होगा देखा जायेगा सोचती हुई घर के काम में व्यस्त हो गई। हाथ के हड्डी के आपरेशन के बाद नंदनी सारे काम भी संभाल नहीं पा रही थी।एक दूसरी काम वाली को मदद के लिए चंद्रा ने भेजा जो बस झाड़ू -पोछा,बर्तन करके चली जाती थी। आठ दिन तक पुताई के चलते नंदनी काफी परेशान हो चुकी थी और गर्दन में (स्पंडालाइसिस का कॉलर) कमर में बेल्ट लगा कर काम कर रही थी ।बार -बार काम वाली और दीपावली को अपनी इस हालत का दोषी मान रही थी।ठीक दीपावली के एक सप्ताह पहले नंदनी की तबीयत और खराब हो गई और घर के लोग भी त्यौहार के चलते अधिक काम से परेशान होने लगे ।जहाँ दीपावली खुशियों का त्यौहार है वही सभी मुँह लटकाये बस काम किये जा रहे थे। चंद्रा ने तो काम वाली भेजी  मगर पाँच छ: दिन बाद ही उसने आना बंद कर दिया था। पता पड़ा की उसके बेटे का स्कूटर से एक्सीडेंट् हो गया है और वो अस्पताल में है।अब और परेशानी नंदनी ऐसे में जाकर किसे पूछे। अब तो  घर के लोगों की एक दूसरे पर खीज ही निकल रही थी। घर … Read more