जगत बा
दुर्गा को पूजने वाले इस देश में कब स्त्रियाँ कमजोर और कोमल मान लीं गयीं ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता | आज भी स्त्रियाँ उस परम्परा का आवरण ओढ़े हुए हैं पर सच्चाई ये है कि अगर स्त्री ठान ले तो वो वो काम भी कर लेती है जिसके बारे में उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था | ये कहानी एक ऐसी ही जुझारू स्त्री की कहानी है जिसने अनपढ़ होने के बावजूद गाँव का नक्शा बदल दिया | जगत बा कुछ बरस पहले मैंने अपने सरकारी घर के पीछे के कम्पाउंड में खुलने वाला दरवाज़ा खोला था ,देखा वे हैं -बा ,दो कपडों के लम्बे थैलों में वे अपनी कपड़े ठूंसे खड़ी हैं। झुर्रियों भरा चेहरा ,पतली दुबली ,छोटे कद की देह ,नीले पतले बॉर्डर वाली हलके रंग की साड़ी में अपने छोटे काले सफ़ेद बालों को पीछे जुड़े में बांधे हुए ,एक आम गंवई गुजरातिन। “बा तारा बेन नथी , पानी जुईये [तारा बेन घर पर नहीं हैं , पानी चाहिए ]?“ “पिड़वा दो [ पिला दो ].“कहते हुए वह हमारे घर के आऊट हाउस के दरवाज़े के कुंडी खोलकर थैले रख आईं । बा ,यानि हमारे आऊट हाउस में रहने वाली बाई तारा बेन की सास। दो गिलास फ्रिज का ठंडा पानी पीकर वह तृप्त हो गई। ऐसी गर्मी में गाँव से बस के सफ़र में वह पसीने पसीने हो रही थी। मैंने दिल से आग्रह किया ,“ठंडा शरबत बनाऊं ?“ “अत्यारे नथी मने जमवाणुं छे [अभी नहीं ,मुझे खाना खाना है।]“ “सारू। “मैं कमरे में अंदर आ गई तो छोटा बेटा बोला ,“बा की काफ़ी खातिरदारी हो रही थी। “ “बिचारी बूढ़ी है ,धूप में सफ़र करके आ रही है। “ “बट शी इज़ अ मेड। तारा बेन के घड़े में से भी पानी पी सकती थी। “उसने अपनी छोटी अक्ल लगाते हुए कहा। “आफ़्टर ऑल शी इज़ एन ओल्ड ह्यूमेन बिइंग `.“कहते हुए मैंने अपने को दस सीढ़ी ऊपर चढ़ा लिया कि देखो मैं नौकरानी की सास की भी परवाह करतीं हूँ. इन सात वर्षों से जब जब वे गाँव से आतीं हैं तो तारा बेन निश्चित हो जाती है। वे कभी ,उसकी बेटियों कामी व झीनी के साथ मेरे घर के बर्तनों को साफ़ कर रही होतीं हैं या बाहर पत्थर पर अपने सारे घर के कपड़े धो रही होतीं हैं। बीच में जब समय मिलता है तो चबूतरे पर चावल या गेंहूं बीनने बैठ जातीं हैं या पुराने कपडों की कथरी [दरी ] पर टाँके लगाने बैठ जातीं हैं। बीच बीच में उनका पोता मेहुल उन्हें पानी पिलाता रहता है। मैं उनकी इस मेहनत पर तारीफ़ करती जातीं हूँ तो बहुत समझदारी से मुझे देखते हुए `हाँ `में सिर हिलाती जातीं हैं। जैसे ही मेरा बोलना बंद होता है वे तारा बेन से पूछतीं हैं ,“ए सु कहे छे ?[ये क्या कह रहीं हैं ]? “ तारा बेन हँसते हँसते लोट पोट हो जाती है,“बा ने हिंदी नई आवड़ती एटले [ बा को हिंदी नहीं आती ] . “ कभी ऊंचा नहीं बोलने वाली ऐसी दुर्लभ सास पर मैं मुग्ध होती रहतीं हूँ। तो हाँ ,मैं उस दिन की बात बता रही थी जब मैंने अपने आपको दस सीढ़ी ऊपर चढ़ा दिया था। स्त्री अधिकारों के लिए लड़ने वाली व समाज सेवा सम्बन्धी अपने लेख लिखने के लिए अपने आपको कितने सीढ़ी चढ़ाये रखतीं हूँ ,बताऊँ ?ख़ैर —- जाने दीजिये। एक आज का दिन है। मैं अपने ऊपर शर्मसार हूँ। पाताल क्या उसके भी नीचे कोई जगह हो तो मैं उसमें जा धंसूं .जिसे दो गिलास पानी पिलाकर मैं गौरान्वित हो रही थी। उस अनपढ़ बा ने एक गाँव में प्राण फूंक दिए थे ,सारे गाँव को ट्यूब वैल से निहला दिया था . कहते हैं प्रसवकाल का समय निश्चित होता है तो क्या कहानी के जन्म का समय भी निश्चित होता है ?एक क्रांतिकारी कहानी हमारे ही घर की आऊट हाउस में रहने वाली तारा बेन के दिल में कुछ वर्ष से बंद थी और मुझे पता ही नहीं था। हुआ कुछ यूं कि मैं उस उस सुबह कम्पाउंड की धूप में अख़बार लेकर बैठे अफ़सोस ज़ाहिर कर रही थी ,“देखो कैसे आंधी आई है। बी जे पी को उड़ा ले गई। सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री बनाये दे रही है। “ तारा कत्थई धोती में, बालों में तेल लगाकर चोटी बनाकर टी वी पर समाचार सुनकर काम पर जाने को तैयार थी। मेरी बात सुनकर बोल उठी ,“आंटी! तुम देख लेना सोनिया गांधी एक औरत है देश को अच्छी तरह संभालेगी। “ मुझे हंसी आ गई ,“देश को सम्भालना कोई घर सँभालने जैसा खेल नहीं है। “ “केम नथी ?औरत के दिल में दर्द होता है इसलिए वह दूसरों का दर्द कम करना जानती है। हमारे गामड़ा में कितने सरपंच हुए हैं। किसी ने सरकारी पैसे से गाँव का भला नहीं किया। जब बा सरपंच बनी तो देखो हमारा भानपुरा गामड़ा को गोकुलनगर [आदर्श गाँव ] का इनाम मिला। “ “कौन सी बा ?“मेरी निगाहें अभी भी अख़बारों की सुर्ख़ियों पर फिसल रहीं थीं। “और कौन सी बा ?म्हारी सविता बा ,बसंतभाई नी माँ .“ “क्या ?“मेरे हाथ से अखबार छूटते छूटते बचा। मैं कुर्सी पर चिहुंक कर सीधी बैठ गई। ये तो नहीं कह पाई कि ये दुबली पतली ,अगूँठा छाप सविता बेन कैसे सरपंच हो सकती है ?फिर भी बोली ,“तू ने इतने बड़ी बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?“ “आंटी !आपको मैंने आपको दो वर्ष पहले बताया था कि बा का सरपंच का टैम ख़त्म हो रहा है। वो राज़ीनामा [इस्तीफ़ा ] दे रही है। “ “हाय —मुझे बिलकुल याद नहीं है। तू कहना भूल गई होगी। “ “ना रे ,मैंने आपको बताया था। “ हे भगवान ! लेखक `एब्सेंट मांइडेड `होते हैं ,तो मैं ऐसी ही अवस्था में रही हूँगी। तारा की बात मेरे दिमाग़ के ऊपर से निकल गई होगी। अब मैं आप लोगों के बीच सेअपने आपको व गुजराती भाषा को अंतर्ध्यान कर रहीं हूँ। भानपुरा की सरपंच सविता बा की कहानी ला रही हूँ। ये गरीब घर की थीं इसलिए घरवालों ने पंद्रह वर्ष बड़े दुहाजु से इनका ब्याह कर दिया था।वे पति छगनभाई ,मगनभाई वाणंद के घर के … Read more