सिंदूर खेला – पति –पत्नी के उलझते –सुलझते रिश्तों की कहानियाँ

सिंदूर खेला  “सिंदूर खेला” रंजना बाजपेयी जी का नया कहानी संग्रह है | इससे पहले उनके दो उपन्यास “अनावरण” और “प्रराब्द्ध और प्रेम” प्रकाशित हो चुके हैं | ये उनका पहला कहानी संग्रह व् तीसरी किताब है जो Evincepub Publishing से आई है | रंजना बाजपेयी जी काफी समय से लेखन में सक्रीय हैं | ख़ास बात ये हैं कि लेखन के साथ –साथ वो गायन में भी पारंगत हैं | ऐसी में उनकी किताब के प्रति सहज उत्सुकता थी | ये किताब मैंने पुस्तक मेले से पहले ही खरीद ली थी पर व्यस्तता के कारण तब नहीं पढ़ सकी | आखिर कार आज इसको पढ़ ही लिया |   सिंदूर खेला दरअसल एक त्यौहार है जो पश्चिमी बंगाल में मनाया जाता है | दशहरा के बाद देवी विसर्जन के दिन महिलाएं देवी प्रतिमा के पास एकत्र हो कर उन पर सिंदूर चढ़ाती हैं | फिर वही सिंदूर एक दूसरे के गाल, माँग, चूड़ियों, गले में लगाती हैं | ऐसा करके वो माँ से अखंड सौभाग्य का वरदान मांगते हुए उनके फिर अगले साल आने की कामना कसरती हैं | अगर देखा जाए तो सिंदूर भारतीय स्त्री के सौभाग्य की निशानी है | इस लिए उसके लिए बहुत अहम् स्थान रखता है | पति –पत्नी को तो ये सिंदूर बांधता ही है |  प्रेमी प्रेमिका के रिश्ते का रंग भी सिंदूरी ही है | ये प्रणय का रंग है मिलन का रंग है | उगता हुआ सूरज सिंदूरी आभा लिए पूरी धरती को हरित बना देता है तो दिन और रात के मिलन की साक्षी बनी संध्या के आकाश का रंग सिंदूरी ही है | ये अलग बात है कि आज शहर में महिलाएं सिंदूर नहीं लगाती है पर फिर भी पति –पत्नी के रिश्ते का रंग सिंदूरी ही है | जो ना लाल है ना पीला …उनके बीच का, उनके शारीरिक ही नहीं आत्मिक मिलन  का प्रतीक | अगर मैं सिंदूर खेला की बात करूँ तो इसकी सारी कहानियाँ पति –पत्नी के रिश्तों के ही अलग –अलग आयाम को प्रस्तुत करती हैं | कहीं कहीं वो रिश्ता प्रेमी –प्रेमिका का भी है पर वो गहरा आत्मिक प्रेम  लिए हुए है |  वैसे इसमें “ सिंदूर खेला “ नाम की कहानी भी है | जो संग्रह का शीर्षक रखे जाने को सिद्ध करती है | सिंदूर खेला – पति –पत्नी के उलझते –सुलझते रिश्तों की कहानियाँ कहानियों के बारे में रंजना जी कहती हैं कि, “किसी रचना का बीजारोपण यथार्थ की मरुभूमि पर होता है | फिर वो लेखक के मानस  और ह्रदय में पनपती और रोपित होकर आकार पाती है | तत्पश्चात हमारी कल्पना के विशाल वृहद् आकाश में उन्मुक्त विचरण करती हुई विसातर पाती है तब अक्षर यात्रा का शुभारंभ होता है और रचना प्रकट होती है | मेरा मानना है कि यथार्थ और कल्पना लोक का सफ़र ही होता है लेखन |” इसी को सिद्ध करते हुए उनकी कहानियों के ताने –बाने के धागे यथार्थ के करघे पर चढ़ कल्पना के रंग भरते जाते हैं और कहानी कुछ जानी पहचानी सी लगने लगती है |   पहली कहानी “वापसी” एक ऐसे ब्राह्मण परिवार की कहानी है | जिनका परिवार मांस –मदिरा से दूर थोड़े में संतुष्ट है | कला और संस्कृति की उन्नति ही उनके जीवन को सरस बना रही है | परिवार की दो बेटियाँ हैं इरा और इला | इरा का विवाह माता –पिता धूम –धाम से करते हैं | पर थोड़े दिन में  कितना पता लगाया जा सकता है | उस परिवार का मूल मन्त्र है पैसा …कमाना और उड़ाना | मांस मदिरा किसी चीज से परहेज नहीं | इला  बिलकुल विपरीत वातावरण में इरा सामंजस्य बिठाने की असफल कोशिश करती है और अनन्त : घर वापसी का इरादा कर लेती है | छोटी बहन को अरेंज मैरिज से भय हो जाता है | वो अपनी पसंद के लड़के से विवाह की बात करती है | परिवार उसकी बात मान लेता है | पर प्रेम कोई यूं हो जाने वाली चीज नहीं हैं | उस प्रेम को समझने, मानने  स्वीकार करने की यात्रा है वापसी |   आज लडकियां कैरियर बनाते हुए विवाह की उम्र से आगे निकल जाती हैं | पहले उनका फोकस केवल कैरियर पर होता है | फिर धीरे धीरे उन्हें विवाह से ही विरक्ति हो जाती हैं | “प्रेम की नदियाँ सूखने लगती हैं | ऐसी ही एक कहानी है “प्रीटी लेडी” यानी  इला की  | लड़की क्या  स्त्री है इला , लगभग 45 वर्ष की | लगभग ५० वर्ष का नदीम उर्फ़ आकाश जो फेसबुक के माध्यम से फेक आई दी द्वारा उस से प्रेम  प्रदर्शित कर तो कभी किसी अजनबी के रूप् में उसे आते –जाते उसे जी भर निहार कर उसके मन मेंअपने प्रति अच्छा महसूस कराकर उसके मन में प्रेम  के अंकुर उत्पन्न  कर देता है | फिर रास्ते से हट जाता है | अभी तक कैरियर से संतुष्ट रहने वाली इला को  जीवन में प्रेम की कमी महसूस होने लगती है और इस बार वो माँ के पसंद के लड़के के लिए बिना देखे हाँ कर देती है | कहानी स्वीट सी है फिर भी मैं फेक आईडी पर ज्यादा बात ना करने की सलाह ही दूँगी लड़कियों को | क्योंकि हर कहानी सुखान्त  नहीं होती |   “दूसरी औरत” कहानी एक ऐसी स्त्री के दर्द की कहानी है जिसका पति उसे प्यार तो करता है, उसका हर तरीके से ख्याल रखता है परन्तु अपनी एक महिला मित्र को अपनी पत्नी के ऊपर हमेशा वरीयता देता है | यहाँ तक कि खाने पर उसे परिवार समेत बुलाने पर अपनी पत्नी के बनाए खाने के स्थान पर उस महिला दोस्त द्वारा बनाए गए व्यंजनों की तारीफ़ करता है | महिला मित्र का पति कहीं बाहर रहता है इसलिए उनके घर की जरूरतों और मेहमानों को स्टेशन से लाने , ले जाने का जिम्मा भी वो खुद ही ओढ़े रहता है | ऐसे में पत्नी को खुद का दूसरी औरत या द्वितीय प्राथमिकता  समझना गलत नहीं है | उस महिला मित्र द्वारा भी कभी –कभी खल चरित्र व्यक्त हो ही जाता है | अन्तत: बच्चों के विवाह के बाद पत्नी एक कठोर फैसला लेती है | … Read more