देह धरे को दंड -वर्जित संबंधों की कहानियाँ

देह धरे को दंड

  इंसान ने जब  जंगल से निकल कर जब सभ्य समाज की स्थापना की तो विवाह परंपरा की भी नीव रखी, ताकि परिवार और समाज नियम और कायदों का वहन करते हुए सुचारु रूप से चल सके | इसके पीछे मुख्य रूप से घर के बुजुर्गों और बच्चों का हित देखा गया , परिवार की व्यवस्था देखी  गई |  अगर हिन्दू परंपरा की बात करें तो  धीरे -धीरे आनुवंशिकी का ज्ञान होने पर समगोत्री विवाह भी वर्जित किये गए | सगे रक्त संबंधों में विवाह या  संबंध सिर्फ वर्जित ही नहीं किये  गए बल्कि पाप की दृष्टि से देखे गए | जैसे पिता-पुत्री, माँ -बेटा, ससुर-बहु,साली-जीजा, देवर भाभी आदि | फिर भी ये कम स्तर पर ही सही, चोरी छिपे ही सही, संबंध बनते रहे  .. इसे क्या कहा जाए की तरह तरह से संस्कारित पीढ़ी दर पीढ़ी के बावजूद मनुष्य के अंदर थोड़ा सा जंगल कहीं बचा हुआ है .. किसी खास पल में, किसी  खास स्थिति में उसकी देह में उग आता है , जहाँ सारे नियम सारी वर्जनाएँ टूट जाती हैं और रह जाती  है सिर्फ देह  और उसकी भूख | क्या यही “देह धरे को दंड” है ? देह धरे को दंड -वर्जित संबंधों की कहानियाँ   ग्रीक मइथोलॉजी  में भी ईडीपस की कथा है .. जिसमें  अपने संबंध से अपरिचित माँ और पुत्र का विवाह जानकारी होने पर एक त्रासदी में बदलता है | जहाँ माँ आत्महत्या कर लेती है और पुत्र अपनी आँखें फोड़ लेता है | पुराणों में भी ऐसी कथाएँ हैं | हालांकि पुराण हो या कहीं की माइथोलॉजी उन्हें साक्ष्य  के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है| हालंकी वो हमें बड़ी सुविधाजनक स्थिति में जरूर रखते हैं |हम जब चाहे उन्हे मिथक मान कर कहानी को अपनी तरह , अपनी भाषा में  प्रस्तुत कर दें और जब चाहें उन्हें तर्क के दौरान साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करें | साक्ष्य हों या ना हों  पर कहीं ना कहीं वो इस ओर ईशारा अवश्य करते हैं की लिखने वाले ने अपने समकालीन समाज में ऐसा कुछ अवश्य देखा होगा,जिसे उसने तथाकथित कापनिक आदि पुरुष या देवी देवताओं पर लिख कर उस पर सत्य की मोहर लगाने का  प्रयास  किया |आखिर कार चेतना और देह के मिश्रण बने जीव पर जब तब देह हावी हो जाती रही है | और इसी विचलं नैन, मिथकीय चरित्रों से लेकर  अब तक और विश्व साहित्य से हिन्दी साहित्य तक ऐसी कहानियाँ लिखी गई हैं | जिनमें कई के उदाहरण सपना जी अपने संपादकीय में देती हैं | सपना जी लिखती हैं की “साहित्य में वर्जित या अश्लील कुछ भी नहीं होता |लेकिन साहित्य अखबार में छपी किसी खबर या चटपटी रिपोर्टिंग भी नहीं है |बड़ी से बड़ी बात को भाषा, शिल्प के कौशल से ग्राह्य बनाना ही लेखक की कसौटी है |”   वास्तव में ये कहानियाँ सकरी पगडंडी पर चली है | हर लेखक ने संतुलन बना कर चले का प्रयास किया है | इनमें से कई  कहानियाँ मन में चुभती और गड़ती हैं , प्रश्न पूछती हैं की आखिर सभ्य सामज के लिबास के अंदर ये जंगली बर्बर पशु कब और कैसे बस देह बन जाता है.. आदिम देह, अपनी आदिम भूख के साथ | मेरे अनुसार इस संग्रह की कहानियों को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है |   1) एक वो जो इसकी विभीषिका दिखाते हुए कहीं ना कहीं इसका लॉजिक भी ढूँढने का प्रयास करती हैं | जाहिर  हैं इनमें एकदम निकट के या कहे सगे रक्त  संबंध नहीं आते | और कहीं ना कहीं ये संबंध दोनों की इच्छा से बने हैं |   2)  कुछ कहानियाँ  शब्दों में ढाला गया दर्द और कलम से उकेरे गए आँसू है | यहाँ एक शोषक है और एक शोषित ….जहाँ दुनिया के कुछ सुंदर रिश्ते इतने कलंकित हो गए हैं की अवसाद और निराशा के सिवा कुछ नहीं बचता  | 3) कुछ कहानियाँ इसके गंभीर परिणाम की ओर इशारा करती हैं |   मंटो की कहानी “किताब का खुलासा” एक दुबली पतली लड़की विमला की कहानी है |जो अक्सर लड़कियों के झुरमुट में गुम हो जाया करती | अनवर से उसका वास्ता उसके यहाँ किताब माँगने से है .. वो उसे कुछ बताना चाहती है |पर जिंदगी भी तो एक किताब ही है जो अक्सर बंद ही रह जाती है .. या फिर खुलती भी है तो उस समय जब उसे पढ़ना ही बेमानी हो जाता है |   “खिड़की के साथ लग कर उसने नीचे बड़ी बदरू की तरफ देखा और फिर अनवर से कहा, “जो मैं ख ना सकी और तुम समझ ना सके अब कहने और समझने से बहुत पार चला गया है ….तुम जाओ मैं सोना चाहती हूँ |”   देवर या जेठ के साथ विधवा स्त्री का अक्सर विवाह करा दिया जाता है | पर संबंधों में रहते हुए ये धोखा है, फरेब है बेवफाई है | फिर क्यों बन  जाते हैं ऐसे रिश्ते | ये कहानियाँ उन परिस्थितियों को खंगालती हैं |  सुभाष नीरव जी द्वारा पंजाबी से अनूदित प्रेम प्रकाश  जी की कहानी “हेड लाइन” मरते हुए पुत्र समान देवर को बचाने में लांघी गई लक्ष्मण रेखा है |   सुधा ओम  ढींगरा जी की कहानी “विकल्प” एक ऐसी परिस्थिति  पर है जब परिस्थितियाँ कोई विकल्प ना छोड़े और पूरा परिवार मिल कर ये फैसला ले | इस जटिल स्थिति के वैज्ञानिक कारण उन्होंने दिए हैं | पर प्रश्न वही है की क्या हर स्त्री इस कदम के लिए तैयार हो सकती है ? जेठानी पर अंगुली उठाने वाली देवरानी  इस जटिल स्थिति को जान कर स्वयं  क्या फैसला लेगी ?   वरिष्ठ लेखक  “रूप सिंह चंदेल” जी की कहानी “क्रांतिकारी” युवा क्रांतिकारी  विचार रखने वाले शांतनु और उसकी पत्नी शैलजा की कहानी है | विस्तृत फलक की ये  कहानी में छात्र राजनीति, अपराधियों का पनाहगार बने जेनयू हॉस्टल, घोस्ट  राइटिंग, नौकरी पाने के लिए की गई जी हजूरी और शांतनु की दिल फेंक प्रवत्ति सब को अपने घेरे में लेती है | अंततः ये क्रांति भी बिन बाप की बेटी के नौकरी पाने की विवशता में  रिश्तों के समीकरण को उलटते हुए देह के फलक पर सिमिट जाती  है | … Read more