वैसे तो आज मूर्खता दिवस है पर लोग एक दूसरे को शुभकामनायें देने से बाज नहीं आ रहे |क्योकि हमें तो दिवस मानाने से मतलब कोई भी दिवस हो हम मना ही लेते हैं ….. वैसे ये आयातित दिवस हैं …. पर हम भारतीय इसे ख़ुशी -ख़ुशी मानते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि भले ही इस दिवस का आविष्कार हमने न किया हो पर मूर्ख बनने का तजुर्बा हमे ज्यादा है …. तभी तो हमारे नेता हमें हर बार गरीबी मिटाओ के नारे के साथ हमे मूर्ख बना कर अपनी गरीबी मिटाते हैं और हम ख़ुशी -ख़ुशी हर ५ साल बाद मूर्ख बनने को तैयार हो जाते हैं खैर ये लेख राजनीतिक ,धर्मिक ,अध्यात्मिक लोगो द्वारा मूर्ख बनाने के ऊपर नहीं है |
आज मूर्ख दिवस पर हमारे दिमाग में एक अक्लमंदी भरी बात आ रही है ….. ये मूर्ख दिवस अक्लमंद लोग मनाते है …. स्वाद परिवर्तन हेतु …. वैसे भी मूर्खों के पास इतना समय नहीं होता कि रोज -रोज नयी मूर्खताएं भी करे और किसी एक दिन उस पर हँसे भी |वो तो हर रोज हँसते हैं | हंसने कि कमी बुद्धिमानो में पाई जाती है एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि जो जितना कम हँसे वो उतना ही ज्ञानी होता है …..जिन लोगो के होठों का हँसते समय पूरा वृत्त बनता हैं उनके दिमाग का स्तर भी अंडाकार होता है|जिनका मुँह एक स्लिट कि तरह खुलता है उनके दिमाग का स्तर ऊँचा होता है | जो बड़ी से बड़ी बात पर बस मुस्कुरा कर रह जाए वो महा ज्ञानी होता है |ऐसे लोग जब कभी अचानक से हंस पड़ते हैं तो आस -पास के लोग हँसना छोड़ कर सोचने लगते हैं कि आखिर कार ऐसी क्या बात है इस बात में |ऐसे ही लोग पार्क में हंस योग करते हैं जो बिना बात हाथ ऊपर उठा कर हँसते हैं “हा हा हा हा “हँसते समय उनका चेहरा भले ही तनाव से भरा हो पर उनको देखने वाले खुलकर हँसते हैं| एक बार उनको हँसते हुए देख कर एक छोटा बच्चा अपने बड़े भाई से पूँछ बैठा “भैया ,भैया ये क्यों हंस रहे हैं ?बड़ा भाई ने विद्वता पूर्ण उत्तर दिया “इनमें हंसी के विटामिन कि कमी हो गयी है ठीक से हँसते जो नहीं हैं “
इन मूर्खों का अक्लमंदो कि दुनिया में विशेष स्थान है चार्ली चैपलिन और शेखचिल्ली के मुर्खता पूर्ण किस्से हमें सदा से हंसाते आये हैं |बचपन में रेडिओ में एक कार्यक्रम आता था “मूर्खाधिपति महाराज मंद -बुद्धि सिंह जिसको सुनने के लिए हम पूरे हफ्ते इंतज़ार करते थे | वैसे मूर्ख होना कोई बुरी बात नहीं है ,सुनते हैं कालिदास भी कभी मूर्ख हुआ करते थे.। आज भी ऐसे मूर्खों कि कमी नहीं है जो जिस डाल पर बैठते हैं ( आश्रयदाता ) उसे ही काटने में लगे रहते हैं। कालिदास जी को तो उनकी पत्नी ने उन्हें बुद्धिमानों कि श्रेणियों में ला कर खड़ा कर दिया | तबसे सभी भारतीय पत्नियों के ऊपर यह दायित्व आ गया कि अपने -अपने पतियों की मूर्खताओं को कम करके उन्हें महान बनाए । एक आम भारतीय नारी “बुद्धू पड़ गया पल्ले ” गाते हुए ससुराल में प्रवेश करती है । आमतौर पर मूर्ख पति जिसे पत्नियों का अत्याचार कहते हैं वह पत्नियों का पतियों को विद्वान् बनाने में किया गया अंश दान हैं।
सुना तो ये भी गया हैं बिजली का आविष्कार करने वाले एडिसन साहब भी बचपन में बड़े मूर्ख थे |वे एक बार अण्डों के ऊपर जा बैठे …. कि जब मुर्गी के बैठने से चूजा निकल सकता है तो मेरे बैठने से क्यों नहीं |आइन्स्टीन तो अपनी बचपन कि मूर्खताओं के कारण स्कूल से निकाले गए थे । दर्शिनिकों की मूर्खताएं विश्व -प्रसिद्ध हैं । सुनने में तो यह भी आया है मुर्खता और दार्शनिकता समानुपात में बढती है.। मेरे विचार से मुर्खता दिवस मनाने के पीछे एक गहरी मंशा है। आज जिसे मुर्ख सिद्ध किया जा रहा है पता नहीं उनमे से कब कौन महाकवि बन जाए ,कौन वैज्ञानिक बन जाए कौन दार्शनिक बन जाए । इसी भावना के तहत अनेकों स्कूल पहली अप्रैल को खुलते हैं । छोटी मोटी मूर्खताओ पर हंसने हसाने के लिए ये दिन बुरा नहीं हैं |तो हसिये -हंसाइये और शान से मुर्खता दिवस मानिए |
वंदना बाजपेई
सभी अक्लमंदों को मुर्खता दिवस कि शुभकामनाएं
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