त्रिपाठी जी और वर्मा जी
मंदिर के बाहर से निकल रहे थे ।
आज मंदिर में पं केदार नाथ जी
का प्रवचन था ।
प्रवचन से दोनों भाव -विभोर हो
कर उसकी मीमांसा कर रहे थे ।
वर्मा जी बोले क्या बात
कही है “सच में रूपया पैसा धन दौलत सब कुछ यहीं रह जाता है कुछ भी साथ
नहीं जाता फिर भी आदमी इन्ही के लिए परेशान रहता है”।
त्रिपाठी जी ने हाँ में सर
हिलाया ‘ अरे और तो और एक -दो रूपये के लिए भी उसे इतना क्रोध
आ जाता है जैसे स्वर्ग में बैंक खोल रखा है “। गरीबों पर दया और
परोपकार किसी के मन में रह ही नहीं गया है ।
वर्मा जी ने आगे बात बढाई ‘ रुपया पैसा क्या है , हाथ का मैल है आज हमारा है तो
कल किसी और का होगा‘।
दोनों पूरी तल्लीनता से बात
करते हुए आगे बढ़ रहे थे , तभी वहां से एक ककड़ी वाला
गुजरा ‘ककड़ी ले लो ककड़ी ५ रु की
ककड़ी ‘।
वर्मा जी बोले ४ रु में
एक ककड़ी लगाओ। ककड़ी वाला बोला नहीं साहब नहीं इतने में
हमारा पूरा नहीं पड़ता है । तोल मोल होता रहा पर ककड़ी वाला टस से मस नहीं हुआ । थोड़ी ही देर में तोल मोल
ने बहस का रूप ले लिया ।
वर्मा जी को एक ककड़ी वाले का
यह व्यवहार असहनीय लगा और उन्होंने गुस्से से तमतमा कर ककड़ी वाले का कालर पकड़
लिया और बोले ‘मंदिर के पीछे तो ४ रु में एक
ककड़ी बेंचता है और यहाँ लूटता है “साले ” एक रु क्या स्वर्ग में ले कर
जायेगा ‘।
ककड़ी वाला कहाँ कम था, वो भी तपाक से बोला “तो क्या बाबूजी आप १ रु स्वर्ग
में ले कर जाओगे “।
त्रिपाठी जी निर्विकार भाव से
रूपये की स्वर्ग यात्रा का आनंद ले रहे थे ।
सच है …….. कथनी और करनी मैं बहुत फर्क
होता है ।
वंदना बाजपेयी
कार्यकारी संपादक -अटूट बंधन
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