मीना कुमारी -एक दर्द भरी ग़ज़ल

मीना कुमारी -एक दर्द भरी ग़ज़ल

चिंदी चिंदी दिन मिला , तन्हाँ तनहा रात मिली
जितना जिसका आँचल था , उतनी उसको सौगात मिली 




मीना कुमारी के ये शब्द महज़ शब्द नहीं हैं |ये उनके जीवन की दर्द भरी दास्ताँ है | हर दिल अजीज ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी का जीवन सच्चे प्यार के लिए तरसती एक ऐसे ग़ज़ल बन कर रह गया जिसको गा सकना उनके लिए भी संभव नहीं रह सका | तभी तो उसकी अदाकारी के तमाम चाहने वालों के होते हुए भी नाम और शोहरत के आसमान पर बैठी एक उदास और वीरान जिंदगी अपने मन के आकाश की रिक्तता को समेटे महज ४० वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह कर चली गयी |जब भी मैं मीना कुमारी के बारे में सोंचती हूँ तो मुझे याद आती है दिल एक मंदिर में पति और प्रेमी के बीच झूलती मासूम स्त्री , कभी औलाद और पति के प्रेम के लिए तडपती ” साहब बीबी और गुलाम की छोटी बहू तो कभी दूसरे की संतान पर ममता लुटाती ” चिराग कहाँ , रौशनी कहाँ की नायिका | पर मेरी सुई अटक जाती है उस पाकीजा पर जो गाती है , ” ये चिराग बुझ रहे हैं , मेरे साथ जलते -जलते ……….. बुझते हुए चिरागों के साथ बुझती हुई मीना कुमारी की हर अदाकारी बेहतरीन है | क्योंकि कहीं न कहीं ये सारे पात्र उनकी जिंदगी का हिस्सा हैं |चलो दिलदार चलो , चाँद के पार चलो गाने वाली मीना कुमारी न जाने कौन सा चाँद पाने की आरज़ू लिए चाँद के पार चली गयी | इसके लिए मीना के इर्दगिर्द कुछ रिश्तेदार, कुछ चाहने वाले और कुछ उनकी दौलत पर नजर गढ़ाए वे लोग हैं, जिन्हें ट्रेजेडी क्वीन की अकाल मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है

आर्थिक तंगी ने बनाया बाल कलाकार

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
मीना कुमारी को एक अभिनेत्री के रूप में, एक पत्नी के रूप में, एक प्यासी प्रेमिका के रूप में और एक भटकती-गुमराह होती हर कदम पर धोखा खाती स्त्री के रूप में देखना उनकी जिंदगी का सही पैमाना होगा। मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल नामक युवक के साथ भाग गई थीं। विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं। नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भरती हो गईं। प्रभावती की मुलाकात थियेटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई। उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बख्श से इकबाल को तीन संतान हुईं। खुर्शीद, महज़बी (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी)। अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। महजबीं को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने खड़ा कर दिया गया। इस तरह बीस फिल्में महजबीं (मीना) ने बाल कलाकार के रूप में न चाहते हुए भी की। महज़बीं को अपने पिता से नफरत सी हो गई और पुरुष का स्वार्थी चेहरा उसके जेहन में दर्ज हो गया।

 हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही से किया प्रेम विवाह

फिल्म बैजू बावरा (1952) से मीना कुमारी के नाम से मशहूर और लोकप्रिय महजबीं ने अपने पिता की इमेज को धकियाते हुए उससे हमदर्दी जताने वाले कमाल अमरोही के व्यक्तित्व में अपना सच्चा साथी देखा वे उनके नजदीक होती चली गईं। नतीजा यह रहा कि दोनों ने निकाह कर लिया। लेकिन यहाँ उसे कमाल साब की दूसरी बीवी का दर्जा मिला।कमाल अमरोही और मीना कुमारी की शादीशुदा जिंदगी करीब दस साल तक एक सपने की तरह चली। मगर संतान न होने से उनके संबंधों में दरार आने लगी। फिल्म फूल और पत्थर (1966) के नायक ही-मैन धर्मेन्द्र से मीना की नजदीकियाँ, बढ़ने लगीं। इस दौर तक मीना एक सफल, लोकप्रिय तथा बॉक्स ऑफिस सुपर हिट हीरोइन के रूप में अपने को स्थापित कर चुकी थीं। धर्मेन्द्र का करियर डाँवाडोल चल रहा था। उन्हें मीना का मजबूत पल्लू थामने में अपनी सफलता महसूस होने लगी। धर्मेन्द्र ने मीना कुमारी की सूनी-सपाट अंधेरी जिंदगी को एक ही-मैन की रोशन से भर दिया। कई तरह के गॉसिप फिल्मी पत्रिकाओं में छपने लगी । इसका असर मीना-कमाल के रिश्ते पर भी हुआ।

सच्चे प्यार की तालाश में भटकती एक पाकीजा रूह

हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले
शायद फ़िल्मी दुनिया कोा चलन हो | पर मीना कुमारी सच्चे प्यार की तलाश में भटकती रहीं मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जोड़ा गया। फिल्म बैजू बावरा के निर्माण के दौरान नायक भारत भूषण भी अपने प्रेम का इजहार मीना के प्रति कर चुके थे। जॉनी राजकुमार को मीना कुमार से इतना इश्क हो गया कि वे मीना के साथ सेट पर काम करते अपने संवाद भूल जाते थे। बॉलीवुड के जानकारों के अनुसार मीना-धर्मेन्द्र के रोमांस की खबरें हवा में बम्बई से दिल्ली तक के आकाश में उड़ने लगी थीं। जब दिल्ली में वे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन से एक कार्यक्रम में मिलीं तो राष्ट्रपति ने पहला सवाल पूछ लिया कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड धर्मेन्द्र कैसा है? इसी तरह फिल्मकार मेहबूब खान ने महाराष्ट्र के गर्वनर से कमाल अमरोही का परिचय यह कहकर दिया कि ये प्रसिद्ध स्टार मीना कुमारी के पति हैं। कमाल अमरोही यह सुन नीचे से ऊपर तक आग बबूला हो गए थे। धर्मेन्द्र और मीना के चर्चे भी उन तक पहुँच गए थे। उन्होंने पहला बदला धर्मेन्द्र से यह लिया कि उन्हें पाकीजा से आउट कर दिया। उनके स्थान पर राजकुमार की एंट्री हो गई। कहा तो यहाँ तक जाता है कि अपनी फिल्म रजिया सुल्तान में उन्होंने धर्मेन्द्र को रजिया के हब्शी गुलाम प्रेमी का रोल देकर मुँह काला कर अपने दर्द को बयां करने की कोशिश की थी |
छोटी बहू वातव में मीना कुमारी की निजी जिंदगी थी
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू परदे से उतरकर मीना की असली जिंदगी में समा गई थी। मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले खाली किए। धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगीं। जब मौका मिला एक शीशी गटक ली।पति के प्यार को तरसती औलाद को तरसती मीना असली जिंदगी की छोटी बहू ही थी |

तनहा अंतिम सफ़र

ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा
मीना कुमारी के कदम मौत की तरफ बढ़ चुके थे |हमदर्द दादा मुनि अशोक कुमार,जो मीना कुमारी के साथ अनेक फिल्में कर चुके थे। एक कलाकार का इस तरह से सरे आम मौत को गले लगाना उन्हें रास नहीं आया। वे होमियोपैथी की छोटी गोलियाँ लेकर इलाज के लिए आगे आए। लेकिन जब मीना का यह जवाब सुना ‘दवा खाकर भी मैं जीऊँगी नहीं, यह जानती हूँ मैं। इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो। शराब के कुछ घूँट गले के नीचे उतर जाने दो’ तो वे भीतर तक काँप गए।
कामल अमरोही और मीना के अलगाव के कारण अटक – अटक कर बन रही पाकीजा को मुक्कमल करना मीना की आखिरी ख्वाइश थी |शायद वो इसी के लिए चंद साँसे उधर लिए हुए थी |आखिरकार 1956 में मुहूर्त से शुरू हुई पाकीजा 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई | पाकीजा सुपरहिट रही। अमर हो गए कमाल अमरोही। अमर हो गईं ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी। 31 अगस्त 1972 को मीना चल बसी। तमाम बंधनों को पीछे छोड़ तनहा चल दी इस जहाँ के हर झूठे रिश्ते को तोड़ कर चल दी चाँद के पार अपने सच्चे प्रेमी की तलाश में।मगर अस्पताल का अंतिम बिल चुकाने लायक भी पैसे नहीं थे उस तनहा तारिका के पास। उस अस्पताल का बिल अदा किया वहाँ के एक डॉक्टर ने, जो मीना का जबरदस्त प्रशंसक था।वास्तव मीन मीना कुमारी का जीवन एक दर्द भरी ग़ज़ल था …………..
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे



वंदना बाजपेयी


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1 thought on “मीना कुमारी -एक दर्द भरी ग़ज़ल”

  1. आदरणीय वन्दना जी — सिने जगत की रानी हरमनप्रिय मीनाकुमारी को बहुत ही भावुकता से स्मरण करता लेख मन को छू गया | मीनाजी के बारे में बहुत सी नयी बातें पता चली | उनकी फिल्मे मैंने बहुत कम देखि हैं पर जितनी देखि हैं वे बहुत ही उम्दा है | उनकी अदाकारी और दर्द में भीगी आवाज उन्हें खास बनाती है | उनकी स्मृति को शत शत नमन !!!!!!!!

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