सीमा जो मात्र 14 साल की रही थी ,बैठ कर सील रही है अपनी इज्जत की चुन्नी को आशुओं की धागा और वेवसी की सुई से ।
कल ही लौटी है बुआ के घर से ।वहाँजाते वक्त सुरमयी सी कौमार्य को ओढ़ कर गयी थी ।पर आते वक्त सब कुछ बिखर गया था ।
बड़े मान से बुआ ने बुलाया था प्रसव के दिन नजदीक आ रहे थे ।बुआ फिर से माँ बनने बाली थी ,पहले से वह इक प्यारी सी तीन साल की बिटिया की माँ थी ।
वहाँ वह हँसती खिलखिलाती बुआ का सारा काम करती ,फूफा जी भी बात – बेबात उसे प्यार करते रहते ।
सीमा खुश हो जाती पिता तुल्य वात्सल्य से भरा प्यार।पर कभी कभी चौंक जाती पापा तो ऐसे प्यार नहीं करते ।ऐसे नहीं ‘छूते’, ।
धीरे – धीरे हँसी खोने लगी ,उदासी की परत चढ़ने लगी उसकी मासूमियत पर ।
बूआ पूछती क्या हुआ मन नहीं लग रहा है देखो फूफा जी कितना मानते हैं जाओ साथ में कहीं घूम के आ जाओ ।
पर सीमा बूआ को कभी उस ” मरदाना प्यार ‘के बारे में नहीं बता पाई ।
कभी – कभी सोचती चीख -चीख कर बता दे सब को पर बुआ की गृहस्थी का क्या जो फिर एक और बेटी माँ बन लोगों के ताने झेल रही है ।
कौन उठाएगा बुआ और उनके दोनों बेटियों का बोझ ।
माँ तो खूद अनाथ बुआ को देखना नही चाहती ।
और वह बहुत शिद्द्त से सिलने लगती है अपनी फटी चुन्नी ।