इको जिंदगी की


सरिता जैन 

एक बच्चे ने अपने पिता से पूंछा ,” पिताजी ये जिन्दगी क्या है | और ये हम सब के प्रति अलग – अलग व्यवहार क्यों करती है |नन्हें बेटे के मुँह से ये प्रश्न सुन कर पिताजी सोंच में पड़ गए | आखिरकार उन्होंने बच्चे को जीवन की पाठशाला से सिखाने का मन बनाया | और वो बेटे के साथ एक ऐसी जगह पर गए जो चरों तरफ से पहाड़ियों से घिरी थी | पिता की अँगुली थामे आगे बढ़ते हुए बेटा बहुत खुश था | अचानक से वो पिता का हाथ छुड़ा  कर तेजी से आगे बढ़ा | 



पर ये क्या वो गिर गया  |  चोट लगने पर
उसके मुंह से निकला
, ‘ आह
तुरंत
पहाड़ों में से कहीं – से आवाज आई –
आह ‘

बेटा
अचरज में रह गया। उसने फौरन पूछा – तुम कौन हो
?
सामने
से वही सवाल आया
, ‘ तुम
कौन हो
?’

बेटे ने कहा :डरपोक
सामने से आवाज़ आयी  :डरपोक

उसने
पिता की ओर देखा और पूछा
, ‘ यह
क्या हो रहा है
?’
पिता
ने मुस्कुराते हुए कहा
, ‘ बेटा
, जरा ध्यान दो।
इसके
बाद पिता चिल्लाया
, ‘ तुम
चैंपियन हो !
जवाब
मिला
,
तुम चैंपियन हो !

बेटे
को हैरानी हुई लेकिन वह कुछ समझ नहीं सका।


इस
पर पिता ने उसे समझाया
, ‘ लोग
इसे गूंज ( इको ) कहते हैं
| मतलब जो हम बोलते हैं वाही पलट कर सामने से आता है | और लगता है की प्रकृति भी हमारे साथ वही बोल रही है | अगर हम डरपोंक कहते हैं तो वो हमें उत्तर देती है डरपोंक अगर हम चैम्पियन कहते हैं तो वो हमें उत्तर देती है चैम्पियन | है ना मजेदार | 
लेकिन ये सिर्फ आवाज़ का पलट कर वापस आना नहीं है | वास्तव  में यह जिंदगी है।

हम जैसा सोंचते हैं वही पलट कर हमारे सामने आता है |

दोस्तों – ये जिंदगी एक इको है आपके विचारों की | आप जैसे विचार रखेंगे वही आपके सामने भविष्य बनकर आएगा | तो क्यों न अच्छा सोंचा जाए | या वो सोंचा जाए जो हम चाहते हैं | फिर आनंद लें जीवन की इको का 



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