motivational story on bhagya and karma in hindi
संजीत शुक्ला
दोस्तों अक्सर हमारे मन में ये प्रश्न रहता है की भाग्य बड़ा है या कर्म | आज इसी विषय पर एक motivational story आपसे share कर रहा हूँ | कहानी है दो दोस्तों की | जिनके नाम थे गौरव और सौरभ
अब सौरभ था भाग्यवादी और गौरव कर्म को मानने वाला |यूँ तो दोनों गहरे मित्र थे पर अक्सर इस विषय पर दोनों की बहस हो जाती | दोनों अपने point of view को सही बताते |
एक बार की बात है दोनों बतियाते बतियाते शहर से दूर निकल आये | थोडा सा रास्ता भी भटक गए | रात होने वाली थी | वहीँ पास में एक झोपडी थी | दोनों ने वहीँ रात बिताने की सोंची | जैसे ही उन्होंने झोपडी में प्रवेश किया तो देखा वहां एक बड़े पात्र में खीर रखी हुई थी | अब सौरभ बहुत खुश हो गया और चहक कर गौरव से बोला की ,” देखो मेरा भाग्य , मुझे इस झोपडी में खीर मिल गयी | कौन जानता था किसने किसके लिए बनायीं थी पर मेरे नसीब में खाना लिखा था तो मुझे मिली |गौरव चुप रहा |
अँधेरा हो चला था | सौरभ ने खीर खाना शुरू किया | उसने खीर गौरव को भी offer की | पर गौरव ने यह कहते हुए इनकार कर दिया की तुझे भाग्य से मिली है तू ही खा | सौरभ ने खीर खाना शुरू किया | पर अगले ही क्षण वो थू थू कर खीर थूकने लगा | अरे इस खीर में तो कंकण ही कंकण हैं | इसे तो कोई नहीं कहा सकता |
अब गौरव ने खीर का पात्र उठा लिया | फिर सौरभ की तरफ देख कर बोला ,” यूँ तो रात कटेगी नहीं , तू सोजा मैं खीर के कंकण बीनता रहूँगा | कर्म करते – करते रात कट ही जायेगी | सौरभ ने बुरा सा मुँह बनाया और सो गया |
गौरव कंकण अपने रुमाल पर इकठ्ठा करता रहा | सुबह सूरज की रोशिनी में जब गौरव ने कंकण दिखाने के लिए रुमाल खोला तो दोनों की आँखें फटी की फटी रह गयीं | दरसल वो कंकण नहीं हीरे थे | अब खुश होने की बारी गौरव की थी | ये उसके रात भर जाग कर किये गए कर्म का फल जो था |
दोस्तों , i am sure आप भी कर्म और भाग्य की बहस में उलझते होंगे | ये छोटी सी motivational story हमें बताती है की हमें भाग्य के सहारे न बैठ कर कर्म करना चाहिए | भाग्यवादी को भले ही खीर मिल जाए पर diamond तो कर्म वादी के हाथ ही आते हैं
सुबोध मिश्रा
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