आधी आबादी :कितनी कैद कितनी आजाद (चन्द्र प्रभा सूद )











जाने अपने अधिकार 


हिला दिवस पर नारी सशक्तिकरण के लिए भाषण दे देने से या कुछ लेख लिख देने से अथवा कानून बना देने से समस्या का समाधान संभव नहीं  है। सभ्य समाज में नारी उत्पीड़न की घटनाओं में निरंतर  बढ़ोत्तरी हो रही है। पुरुष मानसिकता में बदलाव आता हुआ दिखाई नहीं देता। 
         स्त्री को देवता मानकर सम्मान देने की परंपरा वाले देश हमारे भारत देश में उसकी शोचनीय अवस्था वाकई गंभीरता से विचार करने योग्य है। 
        इस स्थिति से उभरने के लिए नारी को स्वयं ही झूझना होगा। उसे अपना स्वाभिमान बचाने के लिए कटिबद्ध होना पड़ेगा। जब तक वह स्वयं होकर आगे नहीं बढ़ेगी तब तक उसकी सहायता न कोई कानून करेगा और न ही कोई और इंसान।

      शहरों में स्त्री अपनी पहचान बनाने की भरसक कोशिश कर रही है। वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है। शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान, खेलकूद, राजनीति, संगीत, फिल्म आदि सभी क्षेत्रों में  अपना स्थान बना रही है। इसके साथ ही घर, परिवार व समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह भी कर रही है। 
        नारी को सशक्त होने के लिए आर्थिक  रूप से निर्भर होने की आवश्यकता है ताकि उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। इस आवश्यकता को समझते हुए वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है।
        हर वर्ष के आंकड़ों में विविध परीक्षाओं में लड़कियाँ लड़कों से बाजी भी मार रही हैं। अपनी योग्यता के बल पर वह सभी प्रकार के कम्पीटीशन में सफल होकर अपने कैरियर की ऊँचाइयों को छू रही है। देश-विदेश जहाँ भी उसे मौका मिलता है वह उस अवसर का भरपूर लाभ उठा रही है। उच्च पदों पर आसीन होकर बता रही है कि किसी भी क्षेत्र में वह अपने पुरुष साथियों से कमतर नहीं है।
       शहरों के में तो नारियाँ अपने स्वास्थ्य और कैरियर के प्रति सजग हो रही हैं परन्तु गाँवों में भी नारी सशक्तिकरण की उतनी ही आवश्यकता है। शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी उसे आगे बढ़कर अपने स्वाभिमान को बनाए रखना होगा
          स्त्री पर व्यंग्य करना या उसका मजाक बनाना पुरुष मानसिकता है। न जाने किन-किन नामों से उसे संबोधित कर अपने अहम की तुष्टि करते हैं। दिखावा या छलावा करना उनकी फितरत में शामिल है। मौके-बेमौके सबके सामने पत्नी को अपमानित करने से भी नहीं चूकते।
       हर आज्ञा का पालन होते देखने का आदि पुरुष किसी भी कदम पर अपनी अवहेलना सहन नहीं कर सकता। छोटी-छोटी बातों से उसके अहम को ठेस लग जाती है और वह घायल होने लगता है। उसका पुरुषत्व या उसका अहम शायद ऐसे काँच का बना हुआ है जो जरा हल्की-सी चोट लगने से टूटकर किरच-किरच हो  जाता है।
       सड़क पर चलते हुए मनचलों का नवयुवतियों पर फब्तियाँ कसना,  उन पर कटाक्ष करना या अनर्गल प्रलाप करना भी  तो विकृत पुरुष मानसिकता का ही उदाहरण कहलाता है। कुछ मुट्ठी भर ओछे लोगों के कारण जो सारे पुरुष समाज को कटघरे में कर देता है।
       प्रतिदिन फेसबुक, पत्र-पत्रिकाओं में स्त्रियों के लिए अभद्र बातें, अपमानजनक टिप्पणियाँ, व्यंग्य, चुटकुले आदि जिस लहजे में लिखते हैं उन्हें देख-पढ़ कर मन को बहुत पीड़ा होती है। ऐसे घिनौने विचारों के प्रदर्शन से उनकी महानता कदापि सिद्ध नहीं हो सकती।
      व्यंग्यकार, लेखक व कवि स्त्रियों पर अश्लील टीका-टिप्पणी व भद्दे मजाक करके जिस तरह अपनी रोटियाँ सेकते हैं वह बरदाश्त के बाहर हो जाता है। पत्नी या स्त्री के अतिरिक्त अन्य ढेरों सामाजिक विषय हैं जिन पर लिखकर वह अपनी सूझबूझ का परिचय दे सकते हैं।
          मेरा सभी पुरुष मानसिकता वालों से निवेदन है कि महिलाओं की छिछालेदार करने के बजाय सकारात्मक रुख अपनाते हुए समाज के दिग्दर्शक बनें और आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शक।
           इसके साथ ही उसे अपने अधिकारों की अर्थात् कानून की जानकारी भी रखनी होगी ताकि समय आने पर उसे किसी का मुँह न देखना पड़े। वह स्वयं ही बिना किसी की सहायता के सभी समस्याओं से निपटने में सक्षम हो जाए।
        बहुत से कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने हुए हैं। कई सरकारी व सामाजिक संस्थाएँ भी उनकी मदद करने के लिए प्रस्तुत हैं। पर हम चाहते हैं कि आज नारी को किसी पर आश्रित रहना छोड़कर अपनी शक्ति को टटोलना होगा। तभी वह अपनी छाप समाज पर छोड़ सकने में समर्थ हो सकती है। 
           महिलाओं के लिए कुछ कानूनों की जानकारी यहाँ प्रस्तुत है- 
(क) भारत का संविधान मौलिक अधिकारों तथा
नीतिदर्शक तत्त्वों के अंतर्गत महिलाओं के समान अधिकारों के विषय में कहता है-
1.  अनुच्छेद 14- समानता का उल्लेख।
2. अनुच्छेद 15- लिंग जाति व धर्म के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाने का वर्णन।
3. अनुच्छेद 16- रोजगार या नियुक्ति के समान अवसर।
4. अनुच्छेद 19- बोलने व अपनी बात रखने की स्वतंत्रता।
5. अनुच्छेद 21- सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार।
6. अनुच्छेद 39- समान कार्य करने का अधिकार।
7. अनुच्छेद 42- कार्य एवं प्रसव की राहत की सही व मानवीय दशाओं का उल्लेख।
इनके अतिरिक्त निम्नलिखित कानूनों का प्रावधान है-
1. फैक्टरी अधिनियम 1948
2. विशेष विवाह अधिनियम 1954
3. हिन्दू विवाह अधिनियम 1954
4. विधवा विवाह अधिनियम 1955
5. हिन्दू दत्तक ग्रहण व भरण-पोषण अधिनियम 1956
6. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
7. दहेज निषेध अधिनियम व प्रसूति लाभ अधिनियम 1961
8. समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976
9. बाल विवाह प्रतिरोधक अधिनियम 1976
10. दी मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी एक्ट 1972
11. अश्लील चित्रण निवारण अधिनियम 1986
12. प्रसूति एवं नैदानिक तकनीक (दुरूपयोग, नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम 1994
13. घरेलू हिंसा महिला (संरक्षण) अधिनियम 2005
14. कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिला संरक्षण विधेयक 2010
       इनके अतिरिक्त पंचवर्षीय योजनाओं में भी  महिलाओं के लिए विशेष प्रवधान रखे गए हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
Cprabas59@gmail.com





अटूट बंधन


मेरा भारत महान ~जय हिन्द 

2 thoughts on “आधी आबादी :कितनी कैद कितनी आजाद (चन्द्र प्रभा सूद )”

  1. आपका लेख सभी तत्वों को समेटे समृद्ध,सुगठित,सहज सरल भाषा से परिपुष्ट होकर पुरुषो के अस्मिता, नैतिकता, सोच पर प्रश्न-चिन्ह लगाता है। आशा करते हैं कि पुरुष अपने दुर्गन्धयुक्त दोषो पर कड़ी दृष्टी रख कर शर्मिदिगी महसूस करते हुए अपने एवं अपने सोच को सुधारेंगें और स्त्रीयाँ शैक्षणिक, आर्थिक स्तर के साथ आत्मसम्मान बढ़ा कर आजादी की साँस लेंगीं|

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  2. आपका लेख सभी तत्वों को समेटे समृद्ध,सुगठित,सहज सरल भाषा से परिपुष्ट होकर पुरुषो के अस्मिता, नैतिकता, सोच पर प्रश्न-चिन्ह लगाता है। आशा करते हैं कि पुरुष अपने दुर्गन्धयुक्त दोषो पर कड़ी दृष्टी रख कर शर्मिदिगी महसूस करते हुए अपने एवं अपने सोच को सुधारेंगें और स्त्रीयाँ शैक्षणिक, आर्थिक स्तर के साथ आत्मसम्मान बढ़ा कर आजादी की साँस लेंगीं|

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