भानपुरा की लाड़ली बेटी- मन्नू भंडारी

भानपुरा की लाड़ली बेटी- मन्नू भंडारी

संसार अपनी धुन में लगातार चलते हुए मारक पदचिह्न छोड़ता चलता है। जिस रास्ते को वह तय कर लेता है, उस पर कभी मुड़कर नहीं देखता। न ही किसी चट्टान पर बैठकर ये प्रतीक्षा करता है कि कोई प्रबुद्ध-समृद्ध व्यक्ति आकर उसके पाँव की छाप लेकर धरोहर के रूप में सुरक्षित कर ले। लेकिन इस सबके बावजूद भी सब कुछ लिखा जाता है। कोई है, जिसके इशारे पर हवा चलती है और सूरज दहकता है। उसके यहाँ जितना हाथी का मोल है, उतना ही चीटीं का। जितनी बरगद की आवश्यकता है, उतनी ही छुईमुई की ज़रूरत है। कहने का मतलब जो कुछ भी पृथ्वी पर क्रियात्मकता के साथ घट रहा होता है, उसको कलमबद्ध करने का काम लिपिक स्वयं करता चलता है। तो फिर इस संसार का लिपिक है कौन ? जब सवाल उठा तो पता चला कि संसार का लिपिक और कोई नहीं काल स्वयं है। वही उसके निहोरा घूमता है, या हो सकता है कि संसार स्वयं अपने लिपिक के प्रति निहोरा हो! कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। लेकिन एक बात पक्की है कि कला और काल को कोई मात देकर यदि बाँध लेता है, वह और कोई नहीं, जाग्रत चेतना का लेखक ही होता है। लेखक अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और संवेदना से लबालब हृदय की कलम से बाह्य और अंतर जगत को लिख डालता है। लेखक की कलम में आकाश-पाताल, सागर-गागर, नदियाँ-कुँए,सूरज-चाँद-सितारे और समस्त प्रकृति एक साथ और एक समय में छिपकर रहते हैं और साथ में रहती है उसकी अपनी मौलिक तार्किकता,समाज को समझने की समझ और सही बात कहने की छटपटाती दृढ़ता। उसी की दम से एक जगा हुआ लेखक सात कोने के भीतर की घटनाओं-दुर्घटनाओं को घसीटते हुए संसार के सम्मुख शब्दों में लपेटकर रख देता है। भानपुरा की लाड़ली बेटी- मन्नू भंडारी मैं जिसकी बात कहने जा रही हूँ, वे भी बेहद निर्भीक तटस्थ लेखिका थीं। उनका नाम ‘मन्नू भंडारी’ लेते हुए मन श्रद्धा से भर जाता है। अभी हाल ही में भारत की प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित कथा लेखक मन्नू भंडारी जी का निधन हो गया है। साहित्य सरोवर के महान तट से उनका तम्बू उखड़ जरूर गया है लेकिन उनके अनेक पाठक हैं, जिनके मन में उनकी अमिट छाप अभी भी अंकित है और बनी रहेगी। मन्नू जी के गोलोक धाम जाने की खबर जिसने सुनी उसकी आँखें नम हो गयीं। लेखिका के प्रति भावुक होने के सभी के पास दो कारण हैं। एक तो उनका भावनात्मक समृद्ध-सुदृढ़ रचना संसार जिसमें मानव-पीड़ा की कहानियाँ भरी पड़ी हैं। दूसरे उनके विशालकाय एकाकीपन की जंगम नीरवता का लगा उनके कोमल मन पर दंश था। वे जितनी बड़ी और महान लेखिका थीं उतनी ही बड़ी मानवीय पीड़ा की भोग्या भी रहीं। लेखकीय जीवन के विस्तार के बाद उनके हिस्से आया उनका अवसादीय जीवन जो घट-घटकर भी कभी घट न सका। अन्ततोगत्वा उनको इस निस्सार संसार को उसके हवाले छोड़कर जाना ही पड़ा। हालाँकि सुनने में ये भी आया कि मन्नू जी ‘मरने’ के नाम पर कहती थीं कि “मेरे पास मौत के लिए वक्त नहीं, अभी लिखना बहुत बाकी है।” लेकिन काल के गाल से कौन बच सका है। ईश्वर उनकी आत्मा को चिर शांति प्रदान करें। उन्हें उनके अगले जन्म में अपनों का बेहद स्नेह मिले। वैसे तो जो बात मैं लिखने जा रही हूँ, कोई नई नहीं है; फिर भी आपको बता दूँ कि हिंदी की प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश में मंदसौर ज़िले के भानुपुरा गाँव में हुआ था। उनका बाल्यकाल भानुपुरा की मिट्टी ने ही सिरजा था। आज जब लेखिका हमारे बीच नहीं हैं तो हम सबके साथ-साथ उनकी जन्मभूमि भी कितनी उदास होगी क्योंकि उसने भी तो अपनी लाड़ली बेटी को खोया है। दिल्ली की हवा ने मंदसौर भानुपुरा की हवा को जब उनके जाने की चिट्ठी सुनाई होगी तो सारे वायु मंडल में कैसा शोक व्याप्त गया होगा। कभी वहाँ की आबोहवा को अपने होने की महक से मन्नू जी ने ही महकाया था। वह स्थान भी महान होता है जिस पर महान आत्माएँ जन्म लेती हैं। ऐसा सुना जाता है कि मन्नू जी के बचपन का नाम ‘महेंद्र कुमारी’ था। उनके पिता का नाम सुख संपत राय था। सुख संपत राय जी उस दौर के विचारवान व्यक्ति थे। जब स्त्रियों को सात कोठे के भीतर उनकी खाल सड़ने के लिए बंद रखा जाता था। सीधे मुँह स्त्रियों से कोई बात नहीं करना चाहता था। उस समय के जाने-माने लेखक और समाज सुधारक संपत राय ने स्त्री शिक्षा पर बल देते हुए लड़कियों को ये चेताया कि उनकी जगह रसोई नहीं विद्यालय में है। उनकी दृष्टि में लडकियाँ सिर्फ वंश-बेल बढ़ाने का माध्यम न होकर शिक्षा की अधिकारिणी भी हैं, बताया गया। ये बातें सुनते-समझते हुए तो यही लगता है कि मन्नू जी के दबंग और प्रखर व्यक्तित्व निर्माण में उनके पिता का भरपूर योगदान रहा होगा। वहीं मन्नू जी की माता का नाम अनूप कुँवरी था। जो धीर-गम्भीर स्त्रीगत स्वाभाव की धनी महिला थीं। उदारता, स्नेहिलता, सहनशीलता और धार्मिकता जैसे गुण जो लेखिका के अंतर्मन को हमेशा सहेजते रहे, उन्हें अपनी माँ से ही मिले होंगे। इस सब के अलावा मन्नू जी के परिवार में उनके चार-बहन भाई थे। बचपन से ही उन्हें, प्यार से ‘मन्नू’ पुकारा जाता था इसलिए उन्होंने अपनी लेखनी के लिए जो नाम चुना वह ‘मन्नू’ था। पुस्तकें ऐसा बताती हैं कि मन्नू भंडारी ने अजमेर के ‘सावित्री गर्ल्स हाई स्कूल’ से शिक्षा प्राप्त की और कोलकाता से बी.ए. की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने एम.ए.तक शिक्षा ग्रहण की और वर्षों-वर्ष तक अध्यापनरत रहते हुए कितनी ही महिलाओं को स्त्री की अपनी भूमिका में सशक्त रहने की प्रेणना दी है। अंगेज़ी हुकूमत के बाद देश आज़ाद तो हुआ था लेकिन रूढ़ीवादी सोच के साथ आंतरिक रूप से जकड़ता चला गया। स्त्री दुर्दशा की झंडे गढ़ गये। जाति-धर्म और लैंगिक असमानता जैसे चंगुल में फँकर शारीरिक स्वतंत्र समाज फिर से कराहने लगा। शारीरिक गुलामी से ज्यादा मानसिक दासता खटकती है। और भयाभय मानसिक दैन्यता से उबरने का साधन यदि कुछ है तो वह है साहित्य। उस कठिन रूढ़िवादी समय में जब क्रांतिकारी लेखकों ने अपनी कलमें उठाईं और समाज की अंधी दम घोंटू … Read more