अखबारों के पन्नों पर
हम सब रोज अखबार पढ़ते हैं | अखबार की खबरें हमारी मानसिक खुराक होती है | पर ये खबरे किसी दर्द किसी अत्याचार या किसी अन्याय की सूचना होती हैं |अखबारों के पन्ने पर पन्ना दर पन्ना लिखी होती हैं शोषण की दस्ताने |आइए इस विषय पर पढ़ते हैं डॉ. पूनम गुज़रानी की महत्वपूर्ण गजल अखबारों के पन्नों पर पढ़ते पढ़ते कितना रोई अखबारों के पन्नों पर, सांझ हुई तो अक्सर सोई अखबारों के पन्नों पर। जाने वाले सैनिक का मासूम सा बच्चा भूखा था, नेताओं ने आंख भिगोई अखबारों के पन्नों पर। अरबों की खरबों की दौलत रहती बंद तिजोरी में, बस वादों की फसलें बोई अखबारों के पन्नों पर। लालकिले के सब गलियारे कानाफूसी करते हैं, किसने कितनी लाशें ढोई अखबारों के पन्नों पर। अपने हिस्से की खुशियां जो ‘पूनम’ जग को दे जाता, उसके खातिर सदियां रोई अखबारों के पन्नों पर। डॉ पूनम गुजरानी सूरत यह भी पढ़ें …. मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा कविता सिंह जी की कवितायें गीता के कर्मयोग की काव्यात्मक व्याख्या आपको गजल “अखबारों के पन्नों पर कैसी लगी ? अपने विचार हमें अवश्य बताएँ |अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |