हिंदी कविता में आम आदमी
हिंदी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस बात की पुष्टि हर युग के कवियों द्वारा की गई कृत्यों से प्रतीत होती रही है। हिंदी कविता ने रामधारी सिंह दिनकर की क्षमता का उपयोग कर के राष्ट्र आह्वान का मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही साथ आम आदमियों की दिक्कतों और रोज़मर्रा की समस्याओं को भी बेहद गंभीरता से उजागर किया है। अगर कोई साहित्य उस वर्ग की बात नहीं कर पाता जो मूक और बधिर है तो फिर साहित्य को अपने नज़रिये को बदलने की महती आवश्यकता होती है। रामधारी सिंह दिनकर सरीखे कवियों ने अपनी लेखनी में जनमानस की विपरीत परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही नहीं किया बल्कि धनाढ्य और रसूखदारों पर करारा प्रहार भी किया और यह प्रश्न अक्षुण्ण रखा कि गरीबी और लाचारी के लिए क्या गरीब स्वयं जिम्मेदार है या फिर वह वर्ग भी जमीदार है जिसकी वजह से वे गरीब हैं। प्रजातंत्र में राजतंत्र को हावी होते देख कर वह बोलते हैं- “अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली !तू क्या कहती है ? तू रानी बन गई , वेदना जनता क्योँ सहती है ? सबके भाग दबा रक्खे है किसने अपने कर में ? उतरी थी जो विभा , हुई बंदिनी ,बता , किस घर में ?” हिंदी कविता में आम आदमी जब आज़ादी की खुमार में देश के माई-बाप खुशी से फूले नहीं समा रहे थे, तब उन्हें इस बात का बिलकुल भी अहसास नहीं था कि आज़ादी सिर्फ किसी ख़ास वर्ग की जागीर नहीं है और इस विसंगति से उत्पन्न रोष और असंतोष में कितने ही लोग दो जून की रोटी की तलाश करने के लिए बाध्य हैं। इसी श्रेणी में सुदामा पांडेय धूमिल आम आदमी की पीड़ा को आम आदमी की भाषा में ही लिखते हैं और शासक वर्ग पर कुशाग्र व्यंग्य भी करते हैं। उनकी कविता में राजनीति पर जबरदस्त आघात है। आजादी के बाद सालों गुजरे पर आम आदमी के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, अतः सारा देश मोहभंग के दुःख से पीड़ित हुआ। इन पक्तियों में धूमिल की मूल काव्य संवेदना में से समानता की मांग, आम आदमी का नजरिया, सजग होने का आवाहन, परिवर्तनीयता, शोषित-पीड़ित व्यक्ति का बयान, सामनेवाले व्यक्ति को आंकने की क्षमता, अनुभव से परिपूर्णता है। आम आदमी के सामने धूमिल की कविता जीवन सत्य उघाड़कर रख देती है। “आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है, फिर भी मुझे ख़याल यह रहता है कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच कहीं न कहीं एक आदमी है।” धूमिल की वाणी में दम गोंडवी के तेवर ने और ज्यादा तेज़ और धार प्रदान की। हिंदी कविता को आम आदमी के चबूतरे तक ले जाने वाले कवियों में दम गोंडवी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अदम गोंडवी ने अपने जज़्बातों के इजहार के लिए ग़ज़ल का रास्ता चुना। अदम की कालजयी रचनाएं, बेबाक शैली, सामंतवाद के खिलाफ बगावत की लेखनी तथा शोषितों की आवाज को बुलंद करने का जज्बा जीवन पर्यंत याद आती रहेंगी। अदम जी में जितनी छटपटाहट थी, गरीबी और मुफलिसी के प्रति चिंता थी, जितना जोश था, वह उनके काव्य में भी है। उनकी शायरी, आम आदमी के सुख-दुख की मुखर अभिव्यक्ति है। इसी कारण वे बगावती तेवर भी अपनाते हैं। वास्तव में यह इस देश की जनता ही है जिसने गोरखनाथ, चंडीदास, कबीर, जायसी, तुलसी, घनानंद, सुब्रमण्यम भारती, रबींद्रनाथ टैगोर, निराला, नागार्जुन और त्रिलोचन की रचनाओं को बहुत प्यार से सहेज कर रखा है। वह अपने सुख-दुख में इनकी कविताएं गाती है। अदम गोंडवी भी ऐसे ही कवि थे। उन्होंने कोई महाकाव्य नहीं लिखा, कोई काव्य नायक सृजित नहीं किया बल्कि अपनी ग़ज़लों में इस देश की जनता के दुख-दर्द और उसकी टूटी-फूटी हसरतों को काव्यबद्ध कर उसे वापस कर दिया। आज़ादी के बाद के भारत का जो सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अनुभव है, वह अदम की कविता में बिना किसी लाग-लपेट के चला आता है। उन्होंने अपने कहन के लिए एक सरल भाषा चुनी, इतनी सरल कि कुछ ही दिनों में उत्तर भारत में किसी भी कवि सम्मेलन की शोभा उनके बिना अधूरी होती। उन्होंने लय, तुक और शब्दों की कारस्तानी से हटकर जनता के जीवन को उसके कच्चे रूप में ही सबके सामने रख दिया। वे जनता के दुख-दर्द को गाने लगे। “आइए, महसूस करिए ज़िंदगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी इक कुएं में डूब कर” कविता के द्वारा सटीक व्यंग्य करने की ताकत क्या होती है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है बाबा नागार्जुन की विद्रोह के स्वर में लिपटी कविताओं में। बाबा का व्यंग्य ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी और व्यंग्य आसान नहीं है। कहा जाता है कि बाबा को इस दिशा में महारथ हासिल थी। व्यंग्य का इससे अच्छा स्वरुप क्या होगा कि जब कोई आपसे मिलने आए तो आप मेहमान का स्वागत व्यंग्य से करिए। स्वागत और व्यंग्य पर भी बाबा से सम्बंधित एक प्रसंग जुड़ा है। कहते हैं कि जब आजादी के बाद ब्रिटेन की महारानी अपने भारत के दौरे पर आई तो उनके स्वागत में बाबा ने एक कविता लिखी थी जिसमें उन्होंने तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पर निशाना साधा था। बाबा ने कहा था कि “रानी आओ हम ढोयेंगे पालकी यही हुई है राय जवाहर लाल की रफू करेंगे फटे पुराने जाल की आओ रानी हम ढोएंगे पालकी” बाबा नागार्जुन को एक कड़वा कवि माना जा सकता है। बाबा नागार्जुन की कवितों का मूल स्वर जनतांत्रिक है, जिसे उन्होंने लोक संस्कार, मानवीय पीड़ा और करुणा से लगातार सींचा है। वे ऐसे कवि थे जो अपने स्वरों को खेतों-खलिहानों, किसानों–मजदूरों तक ले गए हैं। जिसने उनके दर्द को जिया और उसे कागज पर उकेरा। बाबा अपनी रचनाओं से बार बार हम पर चोट करते दिखे. उन्होंने बार- बार हमारी मरी हुई संवेदना को जगाने का प्रयास किया। आम आदमी को हिंदी कविता में सशक्त पहचान देने में दुष्याणी कुमार का योगदान अविस्मरणीय रहा है। दुष्यंत की ग़ज़लों की मूलतः दो उपलब्धियां रहीं। एक तो यह कि उन्होंने शायरी को मुल्क से जोड़ा और मुल्क की हालिया परिस्थितियों पर शायर की … Read more