पटना की किरण सिंह जी ने जरा देर कलम थामी पर जब से थामी तब से लगातार एक से बढ़कर एक कवितायों की झड़ी लगा दी | अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रतिभा को बस अवसर मिलने की जरूरत होती है फिर वो अपना रास्ता स्वयं खोज लेती है | सावन में जब पूरी धरती क्या मानव ,क्या पशु -पक्षी ,क्या पेड़ -पौधे सब भीगते है तो कवि मन न भीगे ऐसा तो हो ही नहीं सकता | ऐसी ही सावन की बारिश से भीगती किरण सिंह जी की कविताएं हम आज ‘अटूट बंधन ” ब्लॉग पर ले कर आये हैं ………. जहाँ विभिन्न मनोभाव बड़ी ही ख़ूबसूरती से पिरोये गए हैं | तो आइये भीगिए भावनाओ की बारिश से …………
आया सावन बहका बहका
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बीत गए दिन रैन तपन .के
आया सावन बहका बहका
आया सावन बहका बहका
झेली बिरहन दिन रैन दोपहरी
अग्नि समीर का झटका
खत्म हो गई कठिन परीक्षा
भीगत तन मन महका
अग्नि समीर का झटका
खत्म हो गई कठिन परीक्षा
भीगत तन मन महका
आया सावन……………..
आसमान का हृदय पसीजा
अश्रु नयन से छलका
प्रिय के लिए सज गई प्रिया
हरी चूनरी घूंघट लटका
अश्रु नयन से छलका
प्रिय के लिए सज गई प्रिया
हरी चूनरी घूंघट लटका
आया सावन……………….
देख प्रणय धरती अम्बर का
बदरी का मन चहका
बीच बदरी के झांकते रवि का
मुख मंडल भी दमका
बदरी का मन चहका
बीच बदरी के झांकते रवि का
मुख मंडल भी दमका
आया सावन……………………
रिमझिम बारिश की बूंदो में
भीगी लता संग लतिका
झुक धरणी को नमन कर रहीं
खुशी से खुशी मिले हैं मन का
भीगी लता संग लतिका
झुक धरणी को नमन कर रहीं
खुशी से खुशी मिले हैं मन का
आया सावन……………….
चली इठलाती पवन पुरवैया
तरु नाचे कमरिया लचका
रुनक झुनुक पायलिया गाए
संग संग कंगन खनका
तरु नाचे कमरिया लचका
रुनक झुनुक पायलिया गाए
संग संग कंगन खनका
आया सावन……………..
इन्द्रधनुष का छटा सुहाना
सतरंगी रंग ….छलका
हरियाली धरती पर बिखरी
अम्बर का फूटा मटका
सतरंगी रंग ….छलका
हरियाली धरती पर बिखरी
अम्बर का फूटा मटका
आया सावन…………………..
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मन आँगन झूला पड़ गयो रे
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हरित बसन पहन सुन्दरी
बहे बयार उड़ जाए चुन्दरी
गिरत उठत घूंघट पट हट गये
सजना से नयना लड़ गयो रे
मन आँगन……………………..
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हरित बसन पहन सुन्दरी
बहे बयार उड़ जाए चुन्दरी
गिरत उठत घूंघट पट हट गये
सजना से नयना लड़ गयो रे
मन आँगन……………………..
लतिकाएं खुशी से झूम उठीं
झुकी झुकी धरती को चूम उठीं
मेघ गरज कर शंख नाद कर
मिलन धरा अम्बर भयो रे
मन आँगन…………………….
झुकी झुकी धरती को चूम उठीं
मेघ गरज कर शंख नाद कर
मिलन धरा अम्बर भयो रे
मन आँगन…………………….
पीहु पीहु गाए पपीहरा
मन्त्रमुग्ध भये जुड़ गए जियरा
पुरवाई भी बहक रही
छम छम बरखा बरस गयो रे
मन आँगन………………………..
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मन्त्रमुग्ध भये जुड़ गए जियरा
पुरवाई भी बहक रही
छम छम बरखा बरस गयो रे
मन आँगन………………………..
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सखि सावन बड़ा सताए रे
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जबसे उनसे लागि लगन
म्हारो तन मन में लागि अगन
नयन करे दिन रैन प्रतीक्षा
अब दूरी सहा नहीं जाए रे
सखि सावन…………………
म्हारो तन मन में लागि अगन
नयन करे दिन रैन प्रतीक्षा
अब दूरी सहा नहीं जाए रे
सखि सावन…………………
भीग गयो तन भी मन भी
उर की तपन रह गई अभी भी
बहे पुरवाई लिए अंगड़ाई
अचरा उड़ी उड़ी जाए रे
सखि सावन…………………..
उर की तपन रह गई अभी भी
बहे पुरवाई लिए अंगड़ाई
अचरा उड़ी उड़ी जाए रे
सखि सावन…………………..
बगियन में झूला डारी के
सखि संग झूलें कजरी गाई के
रिमझिम बरखा बरस बरस
नैनों से कजरा बही बही जाए रे
सखि संग झूलें कजरी गाई के
रिमझिम बरखा बरस बरस
नैनों से कजरा बही बही जाए रे
सखि सावन बड़ा……………….
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आज फिर से मन मेरा……
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आज फिर से मन मेरा भीग जाना चाहता है
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आज फिर से मन मेरा भीग जाना चाहता है
तोड़ कर उम्र का बन्धन
छोड़कर दुनिया का क्रंदन
गीत गा बरखा के संग संग
नृत्य करना चाहता है
आज फिर से मन मेरा………………….
छोड़कर दुनिया का क्रंदन
गीत गा बरखा के संग संग
नृत्य करना चाहता है
आज फिर से मन मेरा………………….
पगडंडियों पर चलो चलें
अपने कुछ मन की करें
सज संवर सजना के संग मन
फिसल जाना चाहता है
आज फिर से मन मेरा…………….
अपने कुछ मन की करें
सज संवर सजना के संग मन
फिसल जाना चाहता है
आज फिर से मन मेरा…………….
सपनों का झूला लगाकर
बहे पुरवाई प्रीत पिया संग
सखियों के संग सुर सजाकर
संग कजरी गाना चाहता है
आज फिर से मन मेरा……………..
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बहे पुरवाई प्रीत पिया संग
सखियों के संग सुर सजाकर
संग कजरी गाना चाहता है
आज फिर से मन मेरा……………..
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!!! बूँदें और बेटियाँ !!!
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बारिश की बूंदो
और बेटियों में कितनी समानता है
वो भी तो बिदा होकर
बादलों को छोड़ चल पड़ती हैं
नैहर से
सिंचित करने पिया का घर
बेटियों की
तरह
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बारिश की बूंदो
और बेटियों में कितनी समानता है
वो भी तो बिदा होकर
बादलों को छोड़ चल पड़ती हैं
नैहर से
सिंचित करने पिया का घर
बेटियों की
तरह
अपने पलकों में स्वप्न सजाकर
सुन्दर और सुखद
उनका भी
भयभीत मन सोंचता होगा
कैसा होगा पीघर
डरता होगा
बेटियों की
तरह
सुन्दर और सुखद
उनका भी
भयभीत मन सोंचता होगा
कैसा होगा पीघर
डरता होगा
बेटियों की
तरह
मिले सीप सा अगर पिया का घर
ले लेती हैं बूंदें आकार
मोतियों का
और
इठलाती हैं अपने भाग्य पर
बेटियों की
तरह
ले लेती हैं बूंदें आकार
मोतियों का
और
इठलाती हैं अपने भाग्य पर
बेटियों की
तरह
पर यदि
दुर्भाग्य से कहीं
गिरती हैं नालों में
खत्म हो जाता उनका भी अस्तित्व
वो भी
रोतीं हैं अपने भाग्य पर
बेटियों की
तरह
दुर्भाग्य से कहीं
गिरती हैं नालों में
खत्म हो जाता उनका भी अस्तित्व
वो भी
रोतीं हैं अपने भाग्य पर
बेटियों की
तरह
किरण सिंह
संक्षिप्त परिचय ………………
साहित्य , संगीत और कला की तरफ बचपन से ही रुझान रहा है !
याद है वो क्षण जब मेरे पिता ने मुझे डायरी दिया.था ! तब मैं कलम से कितनी ही बार लिख लिख कर काटती.. फिर लिखती फिर……… ! जब पहली बार मेरे स्कूल के पत्रिका में मेरी कविता छपी उस समय मुझे जो खुशी मिली थी उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती ….!
मेरा विवाह १८ वर्ष की उम्र जब मैं बी ए के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ही की थी कि १७ जून १९८५ में मेरा विवाह सम्पन्न हो गया ! २८ मार्च १९८८ में मुझे प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तथा २४ मार्च १९९४ में मुझे द्वितीय पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई..!
घर परिवार बच्चों की परवरिश और पढाई लिखाई मेरी पहली प्रार्थमिकता रही ! किन्तु मेरी आत्मा जब जब सामाजिक कुरीतियाँ , भ्रष्टाचार , दबे और कुचले लोगों के साथ अत्याचार देखती तो मुझे बार बार पुकारती रहती थी कि सिर्फ घर परिवार तक ही तुम्हारा दायित्व सीमित नहीं है …….समाज के लिए भी कुछ करो …..निकलो घर की चौकठ से….! तभी मैं फेसबुक से जुड़ गई.. फेसबुक मित्रों द्वारा मेरी अभिव्यक्तियों को सराहना मिली और मेरा सोया हुआ कवि मन फिर से जाग उठा …..फिर करने लगी मैं भावों की अभिव्यक्ति..! और मैं चल पड़ी इस डगर पर … छपने लगीं कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी अभिव्यक्तियाँ ..! पुस्तक- संयुक्त काव्य संग्रह काव्य सुगंध भाग २ , संयुक्त काव्य संग्रह सहोदरी सोपान भाग 2
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याद है वो क्षण जब मेरे पिता ने मुझे डायरी दिया.था ! तब मैं कलम से कितनी ही बार लिख लिख कर काटती.. फिर लिखती फिर……… ! जब पहली बार मेरे स्कूल के पत्रिका में मेरी कविता छपी उस समय मुझे जो खुशी मिली थी उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती ….!
मेरा विवाह १८ वर्ष की उम्र जब मैं बी ए के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ही की थी कि १७ जून १९८५ में मेरा विवाह सम्पन्न हो गया ! २८ मार्च १९८८ में मुझे प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तथा २४ मार्च १९९४ में मुझे द्वितीय पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई..!
घर परिवार बच्चों की परवरिश और पढाई लिखाई मेरी पहली प्रार्थमिकता रही ! किन्तु मेरी आत्मा जब जब सामाजिक कुरीतियाँ , भ्रष्टाचार , दबे और कुचले लोगों के साथ अत्याचार देखती तो मुझे बार बार पुकारती रहती थी कि सिर्फ घर परिवार तक ही तुम्हारा दायित्व सीमित नहीं है …….समाज के लिए भी कुछ करो …..निकलो घर की चौकठ से….! तभी मैं फेसबुक से जुड़ गई.. फेसबुक मित्रों द्वारा मेरी अभिव्यक्तियों को सराहना मिली और मेरा सोया हुआ कवि मन फिर से जाग उठा …..फिर करने लगी मैं भावों की अभिव्यक्ति..! और मैं चल पड़ी इस डगर पर … छपने लगीं कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी अभिव्यक्तियाँ ..! पुस्तक- संयुक्त काव्य संग्रह काव्य सुगंध भाग २ , संयुक्त काव्य संग्रह सहोदरी सोपान भाग 2
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atoot bandhan ………हमारा फेस बुक पेज
मन को भिंगोती , शब्दों में नाचती झूमती कविताओं को पढ़कर मन सावन के झूले झूलने लगा। आदरणीया किरणजी बहुत ही सुन्दर सुन्दर कविताये धन्यवाद हम सभी के साथ साझा करने के लिए। सादर नमन 🙂
धन्यवाद
बहुत सुंदर कविताएँ है।