सविता मिश्रा
“बुढऊ देख रहें हो न हमारे हँसते-खेलते घर की हालत!” कभी यही
आशियाना गुलजार हुआ करता था! आज देखो खंडहर में तब्दील हो गया|”
“हा बुढिया चारो लड़कों ने तो अपने-अपने आशियाने बगल में ही बना लिए
है! वह क्यों भला यहाँ की देखभाल करते|”
है! वह क्यों भला यहाँ की देखभाल करते|”
“रहते तो देखभाल करते न” चारो तो लड़लड़ा अलग-अलग हो गये|”
“उन्हें क्या पता उनके माता-पिता की रूह अब भी भटक रही है! यही
खंडहर में वे अपने लाडलो के साथ बीते समय को भला कैसे भुला यहाँ से विदा होतें!
दुनिया से विदा हो गये तो क्या?”
लम्बी सी आह भरी आवाज गूंजी
खंडहर में वे अपने लाडलो के साथ बीते समय को भला कैसे भुला यहाँ से विदा होतें!
दुनिया से विदा हो गये तो क्या?”
लम्बी सी आह भरी आवाज गूंजी
“और जानते हो जी,
कल इसका कोई खरीदार आया था, पर बात न बनी चला
गया! बगल वाले जेठ के घर पर भी उसकी निगाह लगी थी|”
कल इसका कोई खरीदार आया था, पर बात न बनी चला
गया! बगल वाले जेठ के घर पर भी उसकी निगाह लगी थी|”
“अच्छा बिकने तो ना दूंगा जब तक हूँ …..!” खंडहर से भढभडाहट
की आवाज गूंज उठी वातावरण में
की आवाज गूंज उठी वातावरण में
“शांत रहो बुढऊ काहे इतना क्रोध करते हो”
“सुना है वह बड़का का बेटा शहर में कोठी बना लिया है! अपने बीबी
बच्चों को ले जाने आया है …!”
बच्चों को ले जाने आया है …!”
“हा बाप बेटे में बहस हो रही थी ..! अच्छा हुआ हम दोनों समय से चल
दिए वर्ना इस खंडहर की तरह हमारे भी …..|”
दिए वर्ना इस खंडहर की तरह हमारे भी …..|”